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ये मेरे हाथ मे क्या है 🙏

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सामाजिक - धार्मिक - आर्थिक - शैक्षणिक - वैचारिक समरसता - समानता एवं बिना किसी विभेद के हर वर्ग व् समुदाय के सर्वांगीण उत्थान के पक्षधर , महान स्वतंत्रता सेनानी व् समाज सुधारक , भारतीय संविधान के शिल्पी भारत - रत्न बाबा साहेब डॉ . भीमराव अंबेडकर जी को उनकी जयंती के अवसर पर कोटि - कोटि नमन व् श्रद्धांजलि 🙏

आप सबों को अंबेडकर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

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आप सबों को लोक - संस्कृति , स्वस्थ जीवन के सांस्कृतिक संकेत , सामाजिक एकात्मकता व् नवीन फसल के पर्व सतुआन / सतुआनी की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏

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प्रमाणिक तांत्रिक साधनाएं कहाँ मिल सकती हैं
जैसे योगिनी यक्षिणी साधना क्षेत्रपाल साधना बेताल साधना आदि
ऐसे विषयों में गहराई से जानकारी लेना बहुत सोच-समझ कर किया जाना चाहिए क्योंकि तांत्रिक साधनाएं अत्यंत संवेदनशील, रहस्यमयी और प्रभावशाली मानी जाती हैं। फिर भी यदि आप प्रामाणिक तांत्रिक साधना जैसे योगिनी, यक्षिणी, क्षेत्रपाल, बेताल आदि की खोज में हैं, तो निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए:
1. प्राचीन तांत्रिक ग्रंथ और शास्त्र
रुद्रयामल, कालिकापुराण, तंत्रसार, शिवतंत्र रत्नाकर, योगिनी तंत्र, यक्षिणी साधनासार जैसे ग्रंथों में इन साधनाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है।
आप इन्हें संस्कृत या हिंदी अनुवाद में विशेष पुस्तक विक्रेताओं या आध्यात्मिक संस्थानों से प्राप्त कर सकते हैं।
2. कश्मीरी शैव मत, कामाख्या पीठ (असम), तारा पीठ (बंगाल), और नाथ संप्रदाय
ये वो परंपराएं हैं जहां आज भी तांत्रिक साधनाएं जीवित रूप में चल रही हैं।
कामाख्या देवी मंदिर (गुवाहाटी, असम) विशेष रूप से योगिनी और यक्षिणी साधनाओं के लिए विख्यात है।
तारापीठ (बीरभूम, बंगाल) भी बेताल और तांत्रिक मार्ग के लिए प्रसिद्ध है।
3. योगिनी साधना के लिए स्थान
मध्यप्रदेश के मितावली और भद्रावती में 64 योगिनी मंदिर स्थित हैं, जहां ध्यान व साधना की ऊर्जा आज भी महसूस की जाती है।
4. गुरु परंपरा से जुड़ना सबसे जरूरी है
तंत्र सिर्फ किताबों से नहीं सीखा जा सकता। यह गुरु-शिष्य परंपरा में ही सुरक्षित और प्रभावी होता है।
किसी प्रामाणिक, अनुभवी और सिद्ध गुरु से दीक्षा लिए बिना इन साधनाओं का अभ्यास करना खतरनाक हो सकता है।
चेतावनी:
तंत्र साधनाएं बहुत गहरी और शक्तिशाली होती हैं। अगर सही मार्गदर्शन न हो, तो मानसिक, शारीरिक और आत्मिक समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए जिज्ञासा से नहीं, श्रद्धा और पूर्ण मार्गदर्शन से ही इनका अभ्यास करें।
हर हर महादेव

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मातङ्ग्यै ते नमो नमः।।
शुंभ-निशुंभसे पीड़ित होकर देवता भगवती दुर्गाकी दशविद्यात्मक स्तुति ही शिवपुराणमें करते हैं। इसी स्तुति
में वे माताका मातंगी नाम भी लेते हैं। सर्वविदित कथानुसार भगवती पार्वती आकर देवताओंके दुःखका कारण पूछती हैं। पीड़ित देवताओंकी दयनीय दशा देखकर देवीके शरीरसे एक कुमारी प्रकट होती है।
ततो गौरीतनोरेका प्रादुरासीत् कुमारिका।।
गौरीके तनसे कुमारी प्रकट हुई। गौरी कौन हैं? सबकी माता। जगन्माता। वेद-पुराण पग-पगपर इसकी घोषणा करते हैं।
जगत्पिता शिव: शक्तिर्जगन्माता च सा सती।।
शिव जगत्पिता और पार्वती जगज्जननी हैं। पार्वती, जो कि माता हैं, उन माताके अंगसे प्रकट होनेके कारण वह कन्या #मातंगी कहलाई।

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