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प्रधानमंत्री
@narendramodi
ने बाबा साहब के सम्मान में दस साल में जो बनाया और जो एक बन रहा है वो लिस्ट लंबी है। कुछ की तस्वीर यहाँ लगा रहा हूँ।
कांग्रेस अपनी 55 साल की लिस्ट लाए। बाबा साहब के नाम पर उसके पास सिर्फ़ टूटे, अधूरे मकान हैं। इसलिए वह दिखा नहीं सकती। उसका पूरा ध्यान अपने राज परिवार पर था।
बाबा साहब के नाम पर पंच तीर्थ कांग्रेस की सोच से बहुत ऊपर की बात है।
शिक्षा क्षेत्र में वामपंथ और गंगा-जमुनी का दबदबा आज भी इतना भयानक है कि बाबा साहब का ये सब लेखन कभी पढ़ाया ही नहीं गया।
सिर्फ़ जाति संबंधी उनके शुरुआती लेखन को ही स्कूल और कॉलेज में आज भी पढ़ाया जाता है।
राष्ट्र निर्माता आंबेडकर को स्कूल और कॉलेज के बच्चे आज भी नहीं जानते।
खाना पचेगा या सड़ेगा-
खाना खाने के बाद पेट में खाना पचेगा या खाना सड़ेगा, यह जानना बहुत जरूरी होता है। हमने रोटी खाई, हमने दाल खाई, हमने सब्जी खाई, हमने दही खाया लस्सी पी, दूध, दही छाछ, लस्सी फल आदि यह सब कुछ भोजन के रूप में हमने ग्रहण किया। यह सब कुछ हमें उर्जा देते हैं और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है।
पेट में एक छोटा सा स्थान होता है, जिसको हम हिन्दी में "आमाशय" कहते हैं। इसका संस्कृत नाम है "जठर"। यह एक थैली की तरह होता है। यह जठर हमारे शरीर में सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी में आता है। यह बहुत छोटा सा स्थान है। हम जो कुछ भी खाते हैं, वह सब इस आमाशय में आ जाता है। आमाशय में जो अग्नि प्रदीप्त होती है उसे जठराग्नि कहते हैं।
यह जठराग्नि आमाशय में प्रदीप्त होने वाली आग है। जैसे ही हम खाना खाना खाते हैं, जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है। यह ऑटोमेटिक है,जैसे ही हमने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह में डाला, कि इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई। यह अग्नि तब तक जलती है जब तक खाना पचता है। अब हमने खाना खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया।अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी, वह बुझ गयी। आग अगर बुझ गयी, तो पचने की जो क्रिया है वह रुक जाती है।
अब हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि खाना पेट में जाने पर पेट में दो ही क्रियाएं होती हैं, एक क्रिया है जिसको हम कहते हैं पचना, और दूसरी है, सड़ना।
आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा, खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा। रस से मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डियां, मल, मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत में मेद बनेगा। यह तभी होगा जब खाना पचेगा। खाना सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वह है यूरिक एसिड। यूरिक एसिड बढ़ने से ही घुटने, कंधे, कमर में दर्द होता है। जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जैसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हैं एलडीएल ( खराब कोलस्ट्रॉल )। खराब कोलस्ट्रॉल के बढ़ने से ही ब्लड प्रेशर ( बीपी ) बढ़ता है। ये सभी बीमारियां तब आती हैं जब खाना पचता नहीं है, बल्कि सड़ता है।
खाना पचने पर किसी भी प्रकार का कोई भी जहर नहीं बनता है। खाना पचने पर जो बनता है वह है मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डियां, मल, मूत्र, अस्थि और खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल, एलडीएल, वीएलडीएल और यही हमारे शरीर को रोगों का घर बनाते हैं। पेट में बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़कर खून में आता है, तो खून दिल की नाड़ियों में से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून में आया है, इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है। इसी से हार्ट अटैक होता है।
अतः हमें ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि जो हम खा रहे हैं, वह ठीक से पचना चाहिए, इसके लिए पेट में ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए, क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं है और खाना पकता भी नहीं है। महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है। हमने क्या खाया, कितना खाया यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया है-
"भोजनान्ते विषं वारी" (खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है )। इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी कभी नहीं पीना चाहिए। जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे में मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट में बदलता है। पेस्ट में बदलने की क्रिया होने तक एक घंटा ४८ मिनट का समय लगता है। उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है। बुझती तो नहीं, लेकिन बहुत धीमी हो जाती है। पेस्ट बनने के बाद शरीर में रस बनने की प्रक्रिया शुरू होती है, तब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती है।
प्रस्तुति- जितेन्द्र रघुवंशी
जय हिंद जय भारत