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113 साल की पर्यावरणविद् थिमक्का को 'अम्‍मा' और 'वृक्षमाता' के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्‍म कर्नाटक के तुमकुरु जिले में हुआ था और केवल 12 साल की उम्र में इनकी शादी रामनगर जिले के चिक्कैया नाम के शख्‍स के साथ हुई। आर्थिक तंगी के कारण अम्‍मा ने शुरुआती दौर में खदान में एक मजूदर की तरह काम किया और शिक्ष‍ित नहीं हो सकीं।
इनके कोई बच्‍चे नहीं थे, लेकिन हमेशा से पौधों से काफी लगाव था, पेड़ लगाने में ही इन्हें सुकून मिलता था। इसलिए 80 सालों में इन्होंने 8 हज़ार से ज़्यादा पेड़ लगाए हैं और उनकी देखभाल करती आ रही हैं।
इस दंपती ने मिलकर बरगद के पेड़ लगाने शुरू किए; इसकी शुरुआत 10 पौधों से हुई और यह संख्या हर साल बढ़ती गई। धीरे-धीरे पौधेरोपण का कारवां दूसरे गाँवों तक फैल गया।
सूखा क्षेत्र होने के बावजूद, ये दिन-रात पेड़ लगाने में लगे रहे। चिक्कैया गड्ढा खोदते थे और थिमक्का पौधों को पानी देतीं। इस तरह उन्हें 'वरुषा माते' यानी Mother of Trees के नाम से सम्बोधित किया जाया जाने लगा। दोनों ने मिलकर 400 पेड़ लगाए और अपने बच्‍चों की तरह इनकी देखभाल की।
1991 में पति के निधन के बाद भी थिमक्का ने पर्यावरण संरक्षण का सफर जारी रखा।
पर्यावरण में उनके योगदान को पहली बार 1995 में पहचान मिली और राष्‍ट्रीय नागरिक पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया। 2019 में उन्‍हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 2020 में इन्‍हें केंद्रीय विश्‍वविद्यालय कर्नाटक की ओर से मानक डॉक्‍टरेट की उपाधि से सम्‍मानित किया गया।
पौधों से लगाव के कारण थ‍िमक्‍का के पास उपलब्‍ध‍ियों की एक लम्‍बी लिस्‍ट है। वह हर देशवासी, खासकर युवा पीढ़ी को पर्यावरण को बचाकर अपना भविष्य खुद संवारने की ज़िम्मेदारी लेना सिखाती हैं।

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