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IPL के दौरान एक बड़ा तबका पंड्या को नीचता के निम्नतर स्तर से भी नीचे जाकर गालियाँ दे रहा था

उसके बाद फिर जिंदगी में ऐसा जलजला आया कि सब खत्म होने की कगार पर आगया

न फिटनेस साथ दे रही थी, न लोग और न ही समय

तब किसने सोचा था कि वो आदमी जिसे हर तरह के मेंटल स्ट्रेस से होकर गुजरना पड़ा हो वो ऐसा बेहतरीन कम बैक करेगा

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ब्राह्मण भूखा तो सुदामा
समझा तो चाणक्य
रूठा तो रावण
और क्रोधित हुआ तो परशुराम
ब्राह्मण शेर कप्तान रोहित गुरुनाथ शर्मा को विश्वकप जीतने की हार्दिक शुभकामनाएं

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हाल फिलहाल में देखी गयी सबसे बेहतरीन मूवी 'डू नॉट लुक अप', सत्ता और मीडिया के ऊपर लिअनार्डो डिकैप्रियो की एक शानदार सटायर मूवी।
नेताओं का गैसलाइटिंग के जरिये जनता को बेवकूफ बनाना हो या फिर मीडिया का TRP के लिए पागल कुत्ते की तरह व्यवहार करना हो, जो किसी को भी काट लेना या कहीं भी बिन बात भौकते रहना, मौजुदा दौर के मीडिया और सत्ता के गठजोड़ को भी बहुत बारीकी स्तर पर दिखाया गया है।
मेरा सजेशन है कि एक बार ये सभी को देखनी चाहिए।

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ओवैसी ने शपथ समारोह के समय जय फिलिस्तीन कहा और हंगामा हो गया। हंगामा होना भी वाजिब था क्योंकि भारत माता की जय से उन्हें उतनी ही आपत्ति है जितनी मोदी को एक जालीदार टोपी पहनने से है। दोनों व्यक्ति सिर्फ इन्हीं दो बातों से बचकर निकल लेते हैं।

2019 में ओवैसी ने अल्लाहु अकबर का नारा संसद में पहली बार लगाया था और इस बार जय फिलीस्तीन। मैंने ओवैसी के राजनीतिक इतिहास को जानने की कोशिश की तो यह ज्ञात हुआ कि ओवैसी 2004 से लोकसभा सांसद हैं और पहले ऐसी कोई जयकार नहीं हुई।

संसद में पहली बार 2014 में धार्मिक नारे गूंजे और 2019 में भाजपाइयों ने हिंदुराष्ट्र से लेकर जयश्री राम, राधा–कृष्ण इत्यादि जाने क्या–क्या जोड़ अथवा बोल आए। याद रहे "हिन्दूराष्ट्र कहना असंवैधानिक है"। बहुमत आने पर सत्ता कैसे बेलगाम होती है 2019 उसका उदाहरण है।

ओवैसी शपथ लेने उठे तो जमकर हूटिंग हुई और जय श्रीराम के नारे चिढ़ाने के लिए लगाए गए। ओवैसी खुद उसी श्रेणी के लेकिन दुसरी तरफ के नेता हैं जो धर्म को सदा तवज्जो में रखते आए और उन्होंने अल्लाहु अकबर कहकर सबको उल्टा सुलगा दिया। इतना करते ही सारी लाइमलाइट भी लूट ले गए।

इस बार भी उनका पूरा प्लान था कि सारी जगह उनकी ही चर्चा हो इसलिए उन्होंने जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना और जय फिलिस्तीन कह दिया। सब जगह उनकी चर्चा है। भाजपा को वही टक्कर दे सकते हैं और सारे भाजपाई उनको ही टक्कर देती है। दोनों विचारधारों में अधिक अंतर नहीं है बस पहचान भिन्न है।

होना यह चाहिए था कि लगाम सभी पर लगे। कोई बहुसंख्यक विचार के नाम पर उदंडता करे तो अल्पसंख्यक अनुसरण करेगा और यदि अल्पसंख्यक की गलती अनदेखी होगी तो बहुसंख्यक के मन में असंतोष पनपेगा। अभी वर्तमान के जो धूम झगड़े चल रहे हैं वह इतिहास के इन्हीं घटनाओं पर केंद्रित है।

हम धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, समतावादी देश के समर्थक हैं। हमें हर गैर जरुरी नारों और जयकारों से आपत्ति है। भारत की सदा जय हो और अराजकों की सदा क्षय हो ऐसी उम्मीद के साथ इस देश को बेहतर बनाना है जो नारों, जयकारों से संभव नहीं है। अपने हों या बेगाने सबके लिए लगाम की आवश्यकता है।

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कुछ ऐसे फोटो रात के बारह- एक बजे फेसबुक पर दिख जाते हैं, मुझे देखते ही भूख लग आती है, और फ़िर मजबूरी में मुझे मैग्गी खा के ख़ुद के लिए ही संतोष करने का दिखावा करना पड़ता है।

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रोते हुए बाल संगीतकार की छवि को आधुनिक इतिहास की सबसे भावनात्मक तस्वीरों में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

यह तस्वीर एक 12 वर्षीय ब्राजीलियाई लड़के (डिएगो फ्रैज़ो तुर्काटो) की ली गई थी, जो अपने शिक्षक के अंतिम संस्कार में वायलिन बजा रहा था, जिसने उसे गरीबी और अपराध के वातावरण से बचाया था जिसमें वह रहता था।

इस तस्वीर में मानवता दुनिया की सबसे मजबूत आवाज में बोलती है: "करुणा के बीज बोने के लिए एक बच्चे में प्यार और दया पैदा करें। और तभी आप एक महान सभ्यता, एक महान राष्ट्र का निर्माण करेंगे"। (फोटोग्राफर: मार्कोस ट्रिस्टाओ)

©Lakshmi Pratap Singh

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ईश्वर मर चुका है हमने उसकी हत्या कर दी। हम हत्यारों के हत्यारे कैसे खुद को दिलासा देंगे। इस समय में जो सबसे पवित्र और सबसे ताकतवर था, उसे हमने अपने चाकू से गोद कर मार डाला। क्या इस कृत्य की महानता हमसे परे नहीं? सिर्फ इस लायक दिखने के लिए ही सही क्यों ना हम खुद ईश्वर बन जाए।

ये एक एक मशहूर क्वोट है फ्रेडरिक नित्शे का, जिसे आपने भी कहीं ना कहीं पढ़ा होगा, हो सकता है आप इससे प्रभावित भी हुए होंगे। लेकिन कम बार ही होता है कि ऐसी किसी हैरतअंगेज बात पर ठहर हम सोचें।

हम दफ्तर जाने वाले लोग हैं, ईएमआई भरने वाले लोग हैं, मेहनत मजदूरी करने वाले, सोशल मीडिया पर जिंदगी भुना देने वाले लोग हैं।

कोई हमें बता रहा है कि हम ईश्वर का कत्ल करके ख़ुद ईश्वर बनने की कोशिश कर रहे हैं।

अगर फ्रेडरिक नीत्से ट्विटर, फेसबुक या यूट्यूब पर होते तो आज कम्युनिटी गाइडलाइंस का उल्लंघन करने के एवज में उनका अकाउंट जरूर सस्पेंड हो जाता, कोई ना कोई लीगल सम्मन आजाते कि नीत्से भैया ने शांति व्यवस्था में दखल डाल दिया है, मासूम ब्रेनवॉश्ड लोगों की भावनाएं तार तार कर दी हैं।

उन्हें अगर अमेरिका में तूल मिलता तो कैंसिल कर दिए जाते,

भारत में तूल मिलता तो कूट दिए जाते,

पाकिस्तान में तूल मिलता तो ईशनिंदा में मृत्यु की सजा दे दी जाती,

और मुमकिन है फ्रांस, इटली और इजरायल में भी कुछ यही होता।

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हाल में ही मालदीव की दो मिनिस्टर को इसलिए अरेस्ट किया है क्योंकि उन्होंने वहाँ के प्रेसिडेंट के ऊपर कुछ इसी तरह का काला जादू किया था।

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ये वीर रस से ओत प्रोत कवि लोग अगर तलवार भाला रख के अपनी नींद पूरी करते तो इनके लिए ज्यादा बेहतर होता।

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