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मन कानन राघव राम बसैं।
मन मधुकर पंकज पाद जुगल पीयूष पदारथ काम लसैं।।
हरि गुन अरनव अवगाहन हित हरिनाम तरनि साधन एकै।
पद भगति सरिस पतवार एक हरि भजन डांड़ खेवन एकै।।
प्रभु चरनन चित्त लगन एकै प्रभु पावन विह्वल मन एकै।
प्रभु के चितवन चिंतन एकै प्रभु आठहुं जाम मनन एकै।।
प्रभु के पद गुन सुमिरन एकै प्रभु लीला गान करन एकै।
प्रभु के पद ध्यान नयन में धरि पद ध्यावन तन सिहरन एकै।।
प्रभु के पद चन्दन सुरभित मन तन रोम रोम गुंजन एकै।
कण कण जगजीवन राम लखैं जड़ चेतन राम रमन एकै।।
जब लौं तन धारण प्राण करै मोरे रसना में प्रभु नाम रसै।
मन कानन राघव राम बसैं।।
श्री हरि ॐ
.दिल भरा भरा सा है, ख़ुद में एक खालीपन..
अज़ीब सन्नाटा है, ना जाने क्या चाहे यह मन..
रोने को बहुत मन है, और रोना भी आता नहीं अब..
क्या हुए हालत के ख़ुद को ना समझे खुद का मन..
चलते जाना है ज़िंदगी और चलती ही जाएगी..
क्यूँ पहचान कर भी किसी को ना पहचानें यह मन..
ना खुशी का एहसास ना ग़मों का कोई दुख..
फिर किस दुविधा में है आज, मेरा यह मन.. !!