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राजपूतों से अपनत्व बनाए रखने के लिए निम्नलिखित बातों का अन्य जातियों को सावधानी से पालन करना चाहिए। यह सबका दायित्व है कि उनकी असंतुष्टि का लाभ राष्ट्र विघातक तत्त्व न ले पाएं।
1.जयचंद और मानसिंह को लेकर ताने देना बंद करना चाहिए। यह अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है। राजपूत कोई जनप्रतिनिधि या सरकारी नौकर नहीं है कि आप इन्हें जब जैसे चाहे बार बार कोसें और वे तथाकथित इतिहास आधारित आपके व्यंग्य वचनों को सहते जाएं। अतीत में सभी से गलतियां हुई भी होंगी तो वर्तमान में उनका नाम लेकर हरेक ऐरा गेरा, जब जी चाहे उनकी बात केवल इसलिए उठाता है ताकि राजपूतों को नीचा दिखाया जा सके और उसकी छाया में खुद को बहुत ऊपर दर्शा सकें। राजनेता और अधिकारी तो हो सकता है इसे सहन भी करे, आम राजपूत क्यों सुने, क्यों सहन करे?
इन दोनों महान राजाओं ने तत्कालीन हिन्दू समाज को सुरक्षित रखने के लिए अपने अपने तरीके से प्रयत्न किए। दोनों ही योद्धा, त्यागी और पर्याप्त शक्तिशाली थे। इनके वंशजों की संख्या करोड़ों में हैं। और उनमें से अनेक ने राष्ट्र जीवन के लिए अतुल त्याग और पुरुषार्थ किया है। इनको गाली देकर वैसे भी आप लाखों करोड़ों को न केवल अपमानित करते हैं, उनके सद्कार्यों की लंबी सूची है, उससे कृतघ्नता भी व्यक्त करते हैं। यह राजा गद्दार थे, यह स्थापना और इसको लेकर इनके वर्तमान वंशजों का अपमान, स्वयं का अपमान, हिन्दुओं में हीनग्रंथि, यह दोनों ही वामपंथी नैरेटिव है। आइए थोड़ा बिंदुवार समझते हैं।
2. जयचंद ने मुहम्मद गौरी को आक्रमण के लिए आमंत्रित किया इसके कोई भी प्रमाण नहीं हैं, यह एक निहायत बेवकूफी भरा तर्क है। तत्कालीन राजपूत शासकों में परस्पर छोटी छोटी बातों को लेकर तनातनी होती थी। स्वयं पृथ्वीराज में भी कई दुर्बलताएँ रहीं होंगी। सबकुछ भविष्य के गर्भ में था। जयचंद की स्थिति समझिये, पुत्री संयोगिता के अपहरण से वह नाराज था और जब गौरी ने पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया तो वह तटस्थ रहा और यही तटस्थता, उसकी गद्दारी बताई जाती है।
हमें परिस्थितियों को समझना चाहिए, उस समय न पृथ्वीराज ने इनसे सहायता मांगी न ही उन्हें इसकी जरूरत हुई। उससे पहले कई बार पृथ्वीराज चौहान गौरी को धूल चटा चुका था। पृथ्वीराज की पराजय में उसकी स्वयं की गलतियां भी रहीं जिनमें उसके द्वारा बार बार गौरी को माफ करना भी प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण राठौड़ राजपूत, वर्तमान जोधपुर, बीकानेर, ईडर, नागौर, इत्यादि सभी महाराजा जयचंद के ही वंशज हैं। अनायास ही इनके मूलपुरुष को गाली देने का कुकृत्य न करें।
3. महाराजा मानसिंह ने अकबर के प्रति एक अलग नीति बनाई जिससे उसकी प्रजा अत्यंत समृद्ध हुई और आमेर राज्य की उन्नति हुई। आमेर (वर्तमान जयपुर) को युद्ध में झोंके जाने का अर्थ था, जयपुर के किसान, पशुपालक, दलित, ब्राह्मण, व्यापारी, सबकी दुर्गति होना। उनकी बहिन बेटियों का मुगलों द्वारा अपहरण और धिन्ड बनाकर, यौन दासियों के रूप में भेड़ बकरियों की तरह बल्ख बुखारा तक हांककर मंडियों में बेचना। वे सब की सब बचा ली गईं। आश्चर्य कि जिस युक्ति द्वारा जिन जातियों के पूर्वजों की मां बेटियों की रक्षा की गयी, वही आज इन राजाओं महाराजाओं को गुलाम कहें, अपमानित करें, ताने दें, यह संसार में कितनी बड़ी कृतघ्नता कही जाएगी।
तत्कालीन जयपुर शासक की स्थिति समझिए, उसे लगा छोटा त्याग करने से यदि बृहद प्रजा को शान्ति मिलती है और हित होता है तो वह सब स्वीकार है। इसलिए उन्होंने अकबर के अफगान दमन अभियान में उसका साथ दिया यह भी एक प्रकार से म्लेच्छ उन्मूलन कार्यक्रम ही था और ज्यादा चतुराई भरा था। प्राकृतिक रूप से मैदानी असुरक्षित आमेर की छोटी सी रियासत को बर्बर आक्रांताओं की सेना रौंद कर रख देती, उनके पास मेवाड़ के पहाड़ों और किलों जैसा सुरक्षा कवच नहीं था। मंदिरों का संरक्षण, शेष स्वाभिमानी शासकों, यथा महाराणा प्रताप और शिवाजी को बचाने के लिए उनकी अप्रत्यक्ष सहायता की सूची बनाई जाए तो आश्चर्य होगा कि वर्तमान भारत और हिन्दू धर्म बचाने में उनका महान योगदान रहा है।
जा मानसिंह के प्रयासों से प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थलों द्वारिकाधीश मंदिर, जगन्नाथपुरी मंदिर उड़ीसा को बचाया जा सका। वृंदावन में महाभारतकालीन गोविंददेवजी के 7 मंजिला भव्य मंदिर का निर्माण किया। हिन्दुओं को जजिया कर से मुक्ति राजा मानसिंह के कारण ही उस समय मिली। गयाजी, बिहार के मंदिरों, पठानों द्वारा उजाड़ी गयी काशी और काशी विश्वनाथ का जीर्णोद्धार बिना मानसिंह जी के प्रयासों के असम्भव था। मानसिंह की बिहार बंगाल उड़ीसा की जंग बहुत लाभदायक रही। इन तीनों जगह अफगानी पठान दाऊद खान का राज था जिसका सेनापति 'काला पहाड़' कोर्णाक मंदिर तोड़ने के बाद जगन्नाथ मंदिर को हानि पहुंचाने की हिमाकत कर चुका था।

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जिंदगी रूखी सुखी चल रही थी।
एक स्टॉप का जन्मदिन मनाकर कुछ माहौल हल्का किये।।

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जिंदगी रूखी सुखी चल रही थी।
एक स्टॉप का जन्मदिन मनाकर कुछ माहौल हल्का किये।।

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जिंदगी रूखी सुखी चल रही थी।
एक स्टॉप का जन्मदिन मनाकर कुछ माहौल हल्का किये।।

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𝐄𝐦𝐩𝐨𝐰𝐞𝐫 𝐲𝐨𝐮𝐫 𝐣𝐨𝐮𝐫𝐧𝐞𝐲 𝐰𝐢𝐭𝐡 𝐝𝐚𝐢𝐥𝐲 𝐩𝐫𝐞𝐩𝐚𝐫𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧. 𝐄𝐥𝐞𝐯𝐚𝐭𝐞 𝐲𝐨𝐮𝐫 𝐛𝐮𝐬𝐢𝐧𝐞𝐬𝐬 𝐠𝐚𝐦𝐞 𝐰𝐢𝐭𝐡 𝐟𝐨𝐜𝐮𝐬𝐞𝐝 𝐝𝐞𝐝𝐢𝐜𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧. 𝐒𝐮𝐜𝐜𝐞𝐬𝐬 𝐚𝐰𝐚𝐢𝐭𝐬 𝐭𝐡𝐨𝐬𝐞 𝐰𝐡𝐨 𝐩𝐫𝐞𝐩𝐚𝐫𝐞 𝐝𝐢𝐥𝐢𝐠𝐞𝐧𝐭𝐥𝐲
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