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हिंदू समाज पुतला भी नहीं फूक सकता पर मुस्लिम समझ घर, शहर, मंदिर और देश फूंक कर निकल जाते है। सेक्युलर भारत की ये एक श्वेत सचाई है जो देश के पत्तलकर और भारत विरोधी पार्टी नहीं बताती।
मुस्लिम मुक्त भारत अब जरूरत है।
#nagpur
*औरंगजेब अपनी बेटी दे तो सोचेंगे...*
उस समय भारत में मुगलों का आतंक था. औरंगजेब के अत्याचार चरम पर थे. दिल्ली और आगरा मुगल साम्राज्य के दो पांव थे. इस दौर में दिल्ली और आगरा के मध्य ब्रज क्षेत्र में जाट मुखिया वीर योद्धा गोकुला (गोकुल सिंह) ने क्रांति की मशाल जलाई. वीर गोकुल के शौर्य के आगे मुगल हाकीम और अफसर थर-थर कांपने लगे. आखिर में औरंगजेब को खुद गोकुला से युद्ध लड़ने के लिए विशाल सेना के साथ रणभूमि में उतरना पड़ा. यह पहला अवसर था जब औरंगजेब को एक किसान योद्धा की वजह से युद्ध में भाग लेना पड़ा.
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने अपनी 'भरतपुर का इतिहास' एवं 'जाटों का गौरवशाली इतिहास' पुस्तकों में वीर गोकुला के शौर्य और पराक्रम को विस्तार से बताया है. इसके अनुसार वीर गोकुला का जन्म भरतपुर जिले के सिनसिनी गांव में हुआ था
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि छत्रपति शिवाजी के गुरु साधु समर्थ गुरु रामदास महाराष्ट्र से चलकर ब्रज प्रदेश में आए. यहां उन्होंने एक विशाल सभा आयोजित की, जिसमें अधिकतम संख्या जाटों की थी. उन्होंने कहा कि मुगल साम्राज्य को तोड़ना जरूरी है और इसके लिए जाट का बेटा चाहिए. गुरु रामदास के आह्वान पर गोकुला अपने पंचायती योद्धाओं के साथ आगे आये और मुगल सल्तनत के खिलाफ क्रांति का ऐलान किया.
वीर गोकुला ने किसानों से शाही कर (टैक्स) नहीं देने की घोषणा कर दी. दिल्ली और आगरा के मध्य क्षेत्र में मुगलों के कोश लूटना और छापामार युद्ध करना शुरू कर दिया. कई मुस्लिम हकीमों को मौत के घाट उतार दिया. मुगल हाकिम और अफसरों में वीर गोकुला का भय बैठ गया. गोकुला की वीरता और प्रभाव आगरा, मथुरा, सादाबाद, महावन परगनों तक जम गया
वीर गोकुला के पराक्रम से मुगलों का प्रभाव और आतंक कम होने लगा. औरंगजेब को अपनी सल्तनत हिलती हुई महसूस हुई. आखिर में 28 नवंबर 1669 के दिन मुगल बादशाह औरंगजेब विशाल सेना और तोपखाने के साथ वीर गोकुला से युद्ध करने के लिए तिलपत के मैदान में जा पहुंचा. दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. हजारों सैनिक मारे गए और हजारों घायल हो गए. भारतीय इतिहास में औरंगजेब पहली बार एक किसान योद्धा की वजह से युद्ध के मैदान में आने को विवश हुआ. घमासान युद्ध के बीच घायल वीर गोकुला और उसके दादा सिंघा (उदय सिंह) को मुगल सैनिकों ने बंदी बना लिया और दोनों को आगरा ले गए.
रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि औरंगजेब ने वीर गोकुला के आगे इस्लाम धर्म कबूल करने और छोड़ देने पर फिर कभी विद्रोह नहीं करने का प्रस्ताव रखा. देशभक्ति वीर गोकुला ने औरंगजेब को कड़े शब्दों में मुसलमान धर्म अपनाने से स्पष्ट मना कर दिया.
कुछ इतिहासकार यह भी लिखते हैं कि औरंगजेब का मजाक उड़ाते हुए गोकुला जाट ने कहा था कि अगर वो अपनी बेटी देने को तैयार हो जाए तो उसके किसी प्रस्ताव पर विचार हो सकता है ! यह सुनकर औरंगजेब गुस्से से पागल हो गया था! गोकल जाट ने हजारों हिंदू महिलाओं के शील की रक्षा के लिए शस्त्र उठाया था , वह कभी किसी मुगल स्त्री के बारे में इस तरह की बात नहीं कर सकते थे लेकिन फिर भी उन्होंने औरंगजेब का मखौल उडाने के लिए, औरंगजेब को सबक सिखाने के लिए, यह भी कहा !
इसके बाद वीर गोकुला और उसके दादा सिंघा को आगरा की कोतवाली के सामने एक ऊंचे चबूतरे पर बांधकर जल्लादों ने निर्दयता के साथ उनके सभी अंगों को एक-एक करके काट डाला. वीर गोकुला ने देशभक्ति और धर्म की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए. जहां गोपाल जाट का वरदान हुआ उसे जगह को आज फवारा के नाम जाना जाता है क्योंकि यहां पर खून के फव्वारे छूटे थे