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इम्फाल का इतिहास –
इम्फाल का इतिहास 1 शताब्दी ईस्वी पूर्व से शुरू होता है जब मणिपुर मूल रूप से बर्मा का एक हिस्सा था; राजा जय सिंह द्वारा इस क्षेत्र में आक्रमणों की एक श्रृंखला के बाद संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद 1826 में यह भारत का हिस्सा बन गया।

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इम्फाल का इतिहास –
इम्फाल का इतिहास 1 शताब्दी ईस्वी पूर्व से शुरू होता है जब मणिपुर मूल रूप से बर्मा का एक हिस्सा था; राजा जय सिंह द्वारा इस क्षेत्र में आक्रमणों की एक श्रृंखला के बाद संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद 1826 में यह भारत का हिस्सा बन गया।

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इम्फाल का इतिहास –
इम्फाल का इतिहास 1 शताब्दी ईस्वी पूर्व से शुरू होता है जब मणिपुर मूल रूप से बर्मा का एक हिस्सा था; राजा जय सिंह द्वारा इस क्षेत्र में आक्रमणों की एक श्रृंखला के बाद संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद 1826 में यह भारत का हिस्सा बन गया।

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नागालैंड भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित एक भारतीय राज्य है, यह 1 दिसम्बर 1963 को भारत का 16वाँ राज्य बना। इसकी राजधानी कोहिमा है। इस राज्‍य के पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में असम, उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, और दक्षिण में मणिपुर से घिरा हुआ है। और इसे 'पूरब का स्विट्जरलैंड' भी कहा जाता है।

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मिजोरम नाम का मतलब ही “पहाड़ों की भूमि” होता है। मिजोरम पहले असम राज्य का जिला था लेकिन फरवरी 1987 में इसके असम से अलग करके भारत के 23वें राज्य के रूप में दर्जा दिया गया। सन 1954 तक मिजोरम को “लुशाई पर्वतीय जिले” के नाम से जाना जाता था। मिजोरम पहाड़ों की भूमि होने के कारन बहुत ही आकर्षक राज्य है।

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मिजोरम नाम का मतलब ही “पहाड़ों की भूमि” होता है। मिजोरम पहले असम राज्य का जिला था लेकिन फरवरी 1987 में इसके असम से अलग करके भारत के 23वें राज्य के रूप में दर्जा दिया गया। सन 1954 तक मिजोरम को “लुशाई पर्वतीय जिले” के नाम से जाना जाता था। मिजोरम पहाड़ों की भूमि होने के कारन बहुत ही आकर्षक राज्य है।

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मिजोरम नाम का मतलब ही “पहाड़ों की भूमि” होता है। मिजोरम पहले असम राज्य का जिला था लेकिन फरवरी 1987 में इसके असम से अलग करके भारत के 23वें राज्य के रूप में दर्जा दिया गया। सन 1954 तक मिजोरम को “लुशाई पर्वतीय जिले” के नाम से जाना जाता था। मिजोरम पहाड़ों की भूमि होने के कारन बहुत ही आकर्षक राज्य है।

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ये भी देखें: प्राचीन मणिपुर, मध्यकालीन मणिपुर, आधुनिक मणिपुर का इतिहास, और मणिपुर राज्य


विष्णुपुर का प्राचीन विष्णु-मन्दिर

राजर्षि भाग्यचन्द्र
प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मणिपुर का अपना एक प्राचीन एवं समृद्ध इतिहास है। इसका इतिहास पुरातात्विक अनुसंधानों, मिथकों तथा लिखित इतिहास से प्राप्त होता है। इसका प्राचीन नाम कंलैपाक् है। मणिपुर के नामकरण के सन्दर्भ में जहाँ पौराणिक कथाओं से उसका संबंध जोड़ा जाता है, वहीं प्राप्त तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि प्राचीन काल में पड़ोसी राज्यों द्वारा मणिपुर को विभिन्न नामों से पुकारा जाता था, जैसे बर्मियों द्वारा 'कथे', असमियों द्वारा 'मोगली', 'मिक्ली' आदि। इतिहास से यह भी पता चलता है कि मणिपुर को मैत्रबाक, कंलैपुं या पोंथोक्लम आदि नामों से भी जाना जाता था।

ईसवी युग के प्रारम्भ होने से पहले से ही मणिपुर का लम्बा और शानदार इतिहास है। यहां के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ई. में पाखंगबा के राज्याभिषेक के साथ शुरू होता है। उसने इस भूमि पर प्रथम शासक के रूप में १२० वर्षों (33-154 ई ) तक शासन किया। उसके बाद अनेक राजाओं ने मणिपुर पर शासन किया। आगे जाकर मणिपुर के महाराज कियाम्बा ने 1467, खागेम्बा ने 1597, चराइरोंबा ने 1698, गरीबनिवाज ने 1714, भाग्यचन्द्र (जयसिंह) ने 1763, गम्भीर सिंह ने 1825 को शासन किया। इन जैसे महावीर महाराजाओं ने शासन कर मणिपुर की सीमाओं की रक्षा की।

मणिपुर की स्वतंत्रता और संप्रभुता 19वीं सदी के आरम्भ तक बनी रही। उसके बाद सात वर्ष (1819 से 1825 तक) बर्मी लोगों ने यहां पर कब्जा करके शासन किया। 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध (अंग्रेज-मणिपुरी युद्ध ) हुआ जिसमें मणिपुर के वीर सेनानी पाउना ब्रजबासी ने अंग्रेजों के हाथों से अपने मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की। इस प्रकार 1891 में मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया और 1947 में शेष देश के साथ स्वतंत्र हुआ।

1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा तब से मणिपुर का शासन महाराज बोधचन्द्र के कन्धों पर पड़ा। 21 सितम्बर 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का अंग बना। 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने पर यह एक मुख्य आयुक्त के अधीन भारतीय संघ में भाग ‘सी’ के राज्य के रूप में शामिल हुआ। बाद में इसके स्थान पर एक प्रादेशिक परिषद गठित की गई जिसमें 30 चयनित तथा दो मनोनीत सदस्य थे।

इसके बाद 1962 में केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत 30 चयनित तथा तीन मनोनीत सदस्यों की एक विधानसभा स्थापित की गई। 19 दिसंबर, 1969 से प्रशासक का दर्जा मुख्य आयुक्त से बढ़ाकर उपराज्यपाल कर दिया गया। 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और 60 निर्वाचित सदस्यों वाली विधानसभा गठित की गई। इसमें 19 अनुसूचित जनजाति और 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। राज्य में लोकसभा में दो और राज्यसभा में एक प्रतिनिधि है।

मैतई मणिपुर के मूलनिवासी हैं।

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मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मन्दिर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
मीनाक्षी अम्मा मन्दिर

धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धता सनातन हिन्दू धर्म
देवता सुन्दरेश्वरर (शिव) एवं मीनाक्षी (पार्वती)
अवस्थिति जानकारी
अवस्थिति मदुरई, तमिल नाडु, भारत
वास्तु विवरण
शैली दक्षिण भारतीय स्थापत्यकला
निर्माता पाण्ड्या राजा
स्थापित 17वीं शताब्दी
मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर या मीनाक्षी अम्मां मन्दिर या केवल मीनाक्षी मन्दिर (तमिल: மீனாக்ஷி அம்மன் கோவில்) भारत के तमिल नाडु राज्य के मदुरई नगर, में स्थित एक ऐतिहासिक मन्दिर है। यह हिन्दू देवता शिव (“‘सुन्दरेश्वरर”’ या सुन्दर ईश्वर के रूप में) एवं उनकी भार्या देवी पार्वती (मीनाक्षी या मछली के आकार की आंख वाली देवी के रूप में) दोनो को समर्पित है। यह ध्यान योग्य बात है कि मछली पांड्य राजाओं का राजचिह्न था। यह मन्दिर तमिल भाषा के गृहस्थान 2500 वर्ष पुराने मदुरई नगर[1], की जीवनरेखा है।

हिन्दु पौराणिक कथानुसार भगवान शिव सुन्दरेश्वरर रूप में अपने गणों के साथ पांड्य राजा मलयध्वज की पुत्री राजकुमारी मीनाक्षी से विवाह रचाने मदुरई नगर में आये थे। मीनाक्षी को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। इस मन्दिर को देवी पार्वती के सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है।

।। कांची तु कामाक्षी,

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देवी पद्मावती को समर्पित यह सुंदर मंदिर तिरुपति के पास एक छोटे से शहर तिरुचनूर में स्थित है। अल्मेलुमंगापुरम के रूप में भी लोकप्रिय यह मंदिर को हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि देवी पद्मावती को बहुत दयालु कहा जाता है जो अपने भक्तों को आसानी से क्षमा कर देती हैं।

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