पर्दा गिरा कर क्या होगा।
राज छुपा कर क्या होगा।।
ज़ख़्म लगा हो दिल पर-
दवा पिला कर क्या होगा।
हवा तुम्हारे ख़िलाफ़ हो-
धूआँ उड़ा कर क्या होगा।
कोई तुम्हें अनसुना कर दे-
फिर चिल्ला कर क्या होगा।
जब झूठ नंगा हो जाये तो-
नज़र बचा कर क्या होगा।
जिसका हल साधारण है-
घुमा फिरा कर क्या होगा।
अपने मतलब की ख़ातिर-
अपने बिखरा कर क्या होगा-
ख़ुद को आगे ले जाने में-
ग़ैरों को गिरा कर क्या होगा।
‘शेखर’ चलो फ़ैसला कर लें-
बात बढ़ा कर क्या होगा।