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अभी एक लोग बता रहे थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक क्रिशयन प्रोफेसर भगवान कृष्ण जेल में भेजने को कह रहे थे।
हमको हँसी छूट गई।
वह बोले आप हँस रहे है।
हम कहे मुझे रामधारी सिंह दिनकर कि कविता याद आ गई।
हाँ हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख गगन मुझमें लय है
यह देख पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल,
अमरत्व झूलता है मुझमें
संहार झूलता है मुझमें
दृग हो तो अकाण्ड देख
मुझमें सारा ब्रह्मांड देख----
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जंजीर बढ़ा साध इन्हें
हाँ हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
हर युग मे रावण, दुर्योधन होते है।।
तीन दिन तक मैं इसके सामने विनय, याचना कर रहा हूँ। यह सठ अपने अभिमान में इतना चूर है। कि सुन ही नही रहा है।
मेरे बाणों से तुम्हारी रक्षा इस ब्रह्मांड में कोई नही कर सकता है।
राजराजेश्वर मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम अपनी प्रत्यंचा पर बाण चढ़ा लिये।
वह कभी क्रोध नही करते। कहते है, उनको दो ही बार क्रोध आया था।
युद्ध के पहले ही दिन एक बार जब रावण ने सुग्रीव को बंदी बना लिया था।
दूसरी बार जब समुद्र ने उनका विनय नही सुना।
मर्यादापुरुषोत्तम भगवान जो भी कर रहे हैं। वह हमारे लिये जीवन मूल्य है! होना भी चाहिये।
क्रोध दो परिस्थितियों में ठीक है।
एक जब आपके सरंक्षण में कोई हो। उसका जीवन असुरक्षित हो जाय।
दूसरा तब जब आप सक्षम हो। याचना, विनय दूसरा सुनने को तैयार न हो।
भगवान ने जैसे ही धनुष संधान किया। समस्त लोको में हाहाकार मच गया।
समुद्र त्राहिमाम त्राहिमाम प्रभो। कहते हुये उनके चरणों मे गिर पड़ा।
दशहरा कि आप सभी को शुभकामनाएं।