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फाँसी के पहले का ठहाका
11 अगस्त 1908 को सुबह छह बजे खुदीराम बोस को फांसी के फंदे पर झुलाया जाने वाला था । रात को उनके पास जेलर पहुँचा । जेलर को खुदीराम से पुत्रवत् स्नेह हो गया था । वह 10 अगस्त की रात को चार रसीले आम लेकर उसके पास पहुँचा ओर बोला " खुदीराम , ये आम मैं तुम्हारे लिए लाया हूँ । तुम इन्हें चूस लो । मेरा एक छोटा सा उपहार स्वीकार करो । मुझे बड़ा संतोष होगा । " खुदीराम ने जेलर से वे आम लेकर अपनी कोठरी में रख लिये और कह दिया कि " थोड़ी देर बार मैं अवश्य इन आमों को चूस लूंगा । " 11 अगस्त को सुबह जेलर फाँसी के लिए खुदीराम बोस को लेने पहुंच गया । खुदीराम तो पहले से ही तैयार थे । जेलर ने देखा कि उसके द्वारा दिए गए आम वैसे - के - वैसे रखे हुए हैं । उसने खुदीराम से पूछा " क्यों खुदीराम ! तुमने ये आम चूसे नहीं । तुमने मेरा उपहार स्वीकार क्यों नहीं किया ? " खुदीराम ने बहुत भोलेपन से उत्तर दिया " अरे साहब ! जरा सोचिए तो कि सुबह ही जिसको फाँसी के फंदे पर झूलना हो , क्या उसे खाना - पीना सुहाएगा ? " जेलर ने कहा - " खैर , कोई बात नहीं , मैं ये आम खुद उठाए लेता हूँ और अब इन्हें तुम्हारा उपहार समझकर मैं चूस लूँगा । ' ' यह कहकर जेलर ने वे चारों आम उठा लिये । उठाते ही आम पिचक गए । खुदीराम बोस जोर से ठहाका मारकर हँसे और काफी देर तक हँसते रहे । उन्होंने जेलर साहब को बुद्धू बनाया था । वास्तव में उन्होंने उन आमों का रस चूस लिया था और हवा भरकर उन्हें फुलाकर रख दिया था । जेलर महोदय उसकी मस्ती को देखकर मुग्ध और आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सके । वे सोच रहे थे कि कुछ समय पश्चात् मृत्यु जिसको अपना ग्रास बना लेगी , वह अट्टहास करके किस प्रकार मृत्यु की उपेक्षा कर रहा है ।
वह कौन सी मस्ती थी कैसा उनका अद्भुत ज्ञान था वास्तव में आप जैसे महापुरुषों का जीवन चरित्र जानकर हृदय गदगद हो उठता है और बार बार एक ही प्रार्थना मां भारती से निकलती है कि मां यह मातृभूमि रत्नगर्भा है और खुदी राम जी जैसे लोग इस मातृभूमि के रत्न है ! ऐसे महापुरुष बार-बार हमारी मातृभूमि और संस्कृति में अवतरण ले ऐसी मंगल कामना है ! एक बार पुनः हृदय से नमन !
चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाते हुए कुम्हार की यह 8 फीट 6 इंच ऊँची कांस्य प्रतिमा - पद्मश्री से सम्मानित महान मूर्तिकार आदरणीय स्व0 श्री अर्जुन प्रजापति जी के सुपुत्र राजेंद्र प्रजापति जी के द्वारा बनाई गई है। जो कि जयपुर - दिल्ली नेशनल हाईवे स्थित कुण्डा ग्राम, आमेर में राजस्थान सरकार द्वारा स्थापित की गई है। इसके अलावा अन्य 5 प्रतिमाएँ भी कुम्हार बाहुल्य कुण्डा ग्राम में राजस्थान सरकार द्वारा स्थापित की गई हैं। जयपुर के राजेंद्र प्रजापति जी भी अपने पिता की तरह ही काफी अच्छे मूर्तिकार आर्टिस्ट हैं। इनकी यह कलाकारी वाकई में बहुत ही सुंदर और हृदय को छूने वाली है।
राजस्थान के जैसलमेर में वैज्ञानिकों ने शाकाहारी डायनासोर के संबंध में एक बड़ी खोज की है. आईआईटी रुड़की और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने जैसलमेर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर जेठवाई क्षेत्र में 16.7 करोड़ साल पुराना दुनिया का सबसे पुराना शाकाहारी डायनासोर का जीवाश्म ढूंढ निकाला है.
इससे यह पुष्टि हुई है कि कच्छ बेसिन से सटे इस क्षेत्र में 16.7 करोड़ साल पहले शाकाहारी डायनासोर रहते थे. जैसलमेर के थार रेगिस्तान में मिले इस जीवाश्म को 'थारोसोरस इंडिकस यानी भारत के थार का डायनासोर नाम दिया गया है. इससे पहले भी 2014 और 2016 में जैसलमेक के इसी जेठवाई व थैयात गांव में करोड़ों साल पहले डायनोसोर के जीवाश्म मिले थे.
वैज्ञानिकों के अनुसार जैसलमेर का ये क्षेत्र डायनासोर बेसिन हो सकता हैं, यहां पर लगातार मिल रहे जीवाश्मों के अवशेषों के को देखते हुए कच्छ बेसिन से लगते इस सिस्टर बेसिन में और भी डायनासोर की प्रजातियों के अवशेष मिल सकते है. वैसे डायनासोर की प्रजातियों का रंग ब्राउन होता था और ये छोटे-बड़े शतुमुर्ग की तरह दिखते थे..
असल में जैसलमेर के जेठवाई क्षेत्र में में वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे पुराने शाकाहारी डायनासोर 'थारोसोरस इंडिकस' के जीवाश्म खोजने का दावा किया है. वैज्ञानिकों ने बताया कि रेगिस्तान में मिले थारोसोरस की रीढ़ लंबी थी और सिर पर ठोस नोक होती थी. ये जीवाश्म चीन में मिले जीवाश्म से भी पुराने हैं.
एक बार की बात है -
एक संत जग्गनाथ पूरी से मथुरा की ओर
आ रहे थे, उनके पास बड़े सुंदर ठाकुर जी थे ।
वे संत उन ठाकुर जी को हमेशा
साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना कर लाड़ लड़ाया करते थे ।
ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने ठाकुर जी को अपनें बगल की सीट पर रख दिया और
अन्य संतो के साथ हरी चर्चा में मग्न हो गए ।
जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे
तब वे सत्संग में इतनें मग्न हो चुके थे कि
झोला गाड़ी में ही रह गया !
उसमें रखे ठाकुर जी भी वहीं गाड़ी में रह गए । संत सत्संग की मस्ती में भावनाओं में
ऐसा बहे कि ठाकुर जी को साथ लेकर
आना ही भूल गए ।
बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर
सब संत पहुंचे और भोजन प्रसाद पाने का
समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा कि-
हमारे ठाकुर जी तो हैं ही नहीं ।
संत बहुत व्याकुल हो गए,
बहुत रोने लगे परंतु ठाकुर जी मिले नहीं ।
उन्होंने ठाकुर जी के वियोग में अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया ।
संत बहुत व्याकुल होकर विरह में
अपने ठाकुर जी को पुकारकर रोने लगे ।
तब उनके एक पहचान के संत ने कहा - महाराज मै आपको बहुत सुंदर चिन्हों से
अंकित नये ठाकुर जी दे देता हूँ ,
परंतु उन संत ने कहा कि हमें अपने
वही ठाकुर चाहिए जिनको हम अब तक
लाड़ लड़ाते आये हैं।
तभी एक दूसरे संत ने पूछा -
आपने उन्हें कहा रखा था ?
मुझे तो लगता है गाड़ी में ही छूट गए होंगे।
एक संत बोले - अब कई घंटे बीत गए है ।
गाड़ी से किसी ने निकाल लिए होंगे और
फिर गाड़ी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी ।
इस पर वह संत बोले -
मैं स्टेशन मास्टर से बात करना चाहता हूँ
वहाँ जाकर ।
सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे । स्टेशन मास्टर से मिले और ठाकुर जी के
गुम होने की शिकायत करने लगे ।
उन्होंने पूछा कि कौन-सी गाड़ी में
आप बैठ कर आये थे ।
संतो ने गाड़ी का नाम स्टेशन मास्टर को
बताया तो वह कहने लगा - महाराज !
कई घंटे हो गए,
यही वाली गाड़ी ही तो यहां खड़ी हो गई है,
और किसी प्रकार भी आगे नहीं बढ़ रही है ।
न कोई खराबी है न अन्य कोई दिक्कत,
कई सारे इंजीनियर सब कुछ चेक कर चुके हैं, परंतु कोई खराबी दिखती है नहीं ।
महात्मा जी बोले - अभी आगे बढ़ेगी,
मेरे बिना मेरे प्यारे कही अन्यत्र
कैसे चले जायेंगे ?
वे महात्मा अंदर ट्रेन के डिब्बे के अंदर गए
और ठाकुर जी वहीं रखे हुए थे
जहां महात्मा ने उन्हें पधराया था ।
अपने ठाकुर जी को महात्मा ने गले लगाया और जैसे ही महात्मा जी उतरे-
गाड़ी आगे बढ़ने लग गयी ।
ट्रेन का चालक,
स्टेशन मास्टर तथा सभी इंजीनियर
सभी आश्चर्य में पड़ गए और बाद में
उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो
वे गद्गद् हो गए ।
उसके बाद वे सभी जो वहां उपस्थित
उन सभी ने अपना जीवन संत और
भगवन्त की सेवा में लगा दिया...
भगवान जी भी खुद कहते है ना....
भक्त जहाँ मम पग धरे, तहाँ धरूँ में हाथ !
सदा संग लाग्यो फिरूँ, कबहू न छोडू साथ !!
मत तोला कर इबादत को अपने हिसाब से,
ठाकुर जी की कृपा देखकर
अक्सर तराज़ू टूट जाते हैं !!
जय जय लड्डू गोपाल जी की जय जय...