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ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸ਼ਹੀਦੀ ਪੁਰਬ ਮੌਕੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਕੋਟਾਨਿ ਕੋਟਿ ਪ੍ਰਣਾਮ। ਆਓ, ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਪਾਵਨ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦੇ ਅਸਲ ਮਨੋਰਥ ਅਨੁਸਾਰ ਆਪਣੀਆਂ ਜੀਵਨ ਸੇਧਾਂ ਨਿਰਧਾਰਤ ਕਰੀਏ ਅਤੇ ਸੱਚ ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਰਹਿਣ ਤੇ ਝੂਠ, ਅਨਿਆਂ ਆਦਿ ਦੀ ਜੜ੍ਹ ਪੁੱਟਣ ਲਈ ਕਦੇ ਵੀ ਪਿੱਛੇ ਨਹੀਂ ਹਟਣ ਦਾ ਪ੍ਰਣ ਕਰੀਏ।

#sriguruarjandevji #martyrdomday #shikhdharam #gurbani #gurugranthsahib #fifthguru

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ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸ਼ਹੀਦੀ ਪੁਰਬ ਮੌਕੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਕੋਟਾਨਿ ਕੋਟਿ ਪ੍ਰਣਾਮ। ਆਓ, ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਪਾਵਨ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦੇ ਅਸਲ ਮਨੋਰਥ ਅਨੁਸਾਰ ਆਪਣੀਆਂ ਜੀਵਨ ਸੇਧਾਂ ਨਿਰਧਾਰਤ ਕਰੀਏ ਅਤੇ ਸੱਚ ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਰਹਿਣ ਤੇ ਝੂਠ, ਅਨਿਆਂ ਆਦਿ ਦੀ ਜੜ੍ਹ ਪੁੱਟਣ ਲਈ ਕਦੇ ਵੀ ਪਿੱਛੇ ਨਹੀਂ ਹਟਣ ਦਾ ਪ੍ਰਣ ਕਰੀਏ।

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ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸ਼ਹੀਦੀ ਪੁਰਬ ਮੌਕੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਕੋਟਾਨਿ ਕੋਟਿ ਪ੍ਰਣਾਮ। ਆਓ, ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਪਾਵਨ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦੇ ਅਸਲ ਮਨੋਰਥ ਅਨੁਸਾਰ ਆਪਣੀਆਂ ਜੀਵਨ ਸੇਧਾਂ ਨਿਰਧਾਰਤ ਕਰੀਏ ਅਤੇ ਸੱਚ ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਰਹਿਣ ਤੇ ਝੂਠ, ਅਨਿਆਂ ਆਦਿ ਦੀ ਜੜ੍ਹ ਪੁੱਟਣ ਲਈ ਕਦੇ ਵੀ ਪਿੱਛੇ ਨਹੀਂ ਹਟਣ ਦਾ ਪ੍ਰਣ ਕਰੀਏ।

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हाँ,मेरा चेहरा बड़ा है 😂थोड़ा नहीं, बहुत कुछ

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रोती बेटी को घूँघट में रोकर नकारते देखा है।
एक माँ को जमीं पर आसमां उतारते देखा है।।
मजबूरियों की बेड़ियाँ ऐसी ही होती हैं साहिब-
इन बेड़ियों में भी ज़िन्दगी को गुज़ारते देखा है।
चढ़े थे जो अपनो के कंधों का सहारा ले ऊपर-
उसी ऊँचाई से उन्हें अपनो को दुत्कारते देखा है।
देकर के जिसने धक्का लहुलुहान कर दिया-
उसी को फ़िर ज़ख्मों पर फूंक मारते देखा है।
कहते थे वो पत्थर हो गई बेटे को खो कर के-
उसे अकेले,चुपके से चाँद को दुलारते देखा है।
वो पिता एक ग़ज़ब का कलाकार भी निकला-
उसे बच्चों के वास्ते भूखे पेट भी डकारते देखा है।
माफ़ कर के तमाम ग़लतियाँ अब तक जो हुई-
झुर्रियों वाले हाथों को औलादें पुचकारते देखा है।

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एक वीर को याद कर रही है उसकी वीरांगना...😥🇮🇳🙏🏻
एक साल हो गया तुम्हें,
मुझसे बात किए हुये।
अब तुम्हारा फ़ोन बंद आता है।
फिर भी सोने से पहले,
उठने के बाद तुम्हें फ़ोन
मिलाती हूँ।
दिन में ये सिलसिला बहुत बार
चलता रहता है।
तुम्हारे नाम की ज्योत
अमर जवान ज्योति पर ही नही,
एक दिया मेरे दिल में भी
जलता रहता है।
माँ तीर्थ पर नही गईं,
वो जो बंदूक़ वाली तस्वीर है,
उसे लिये घुमती है।
बहन राखी पर आती है,
तुम्हारे बेटे की कलाई
चूमती है।
पिताजी अब पार्क में नही जाते,
रोज़ सुबह
तुम्हारा वो गोल बिस्तर,
खोलते हैं,सिमेटते हैं।
....और तुम बिल्कुल बदल गये हो,
अब तुम्हारे वादे बड़े
दिल को कचोटते है।
तुम्हारे तिरंगे में लिपट कर
आने के वक़्त जो मजमा लगा था,
अब वो नही है।
घोषणायें थी,सुविधाओं का वादा था,
अब वो नही है।
बाबा की पेंशन अटकी पड़ी है।
बेटे की पढ़ाई और
जीवनयापन के लिये मिली धनराशि का,
अभी तक इंतज़ार है।
खैर जाने दो,मेरे दिल में,
अमर तुम हो और ज़िंदा,
अभी तक प्यार है।
तुमने अपना फ़र्ज़ निभाया,
मैं अपना निभा रही हूँ,
हिम्मत रखती हूँ,रोती नही हूँ,
बेटे को भी तुम्हारी
तरह बना रही हूँ।
पर तुम फ़ोन को ऑन कर लो,
ख़त्म अपना मोन कर लो,
एक बार तुम्हारी आवाज़ सुना दो,
कहाँ हो जरा बता दो!
वो रोज़ मुझे मुंडेर से,
निहारता परिंदा कहीं तुम ही तो नही हो!
जब आसमां मे मेरी नजर
जाती है तो,
एक नया तारा मुझे तकता है,
क्या तुम वही हो...!
कभी कभी हवा मे एक अलग,
एहसास होता है,
शायद वो तुम्हारी शरारत होगी!
कभी तुम्हारे पसंद का खाना,
बनाती हूँ तो लगता है,
तुम जानपूछकर कमी निकाल रहे हो।
लेकिन तुम हम सबकी आंखोँ से,
नमी नही निकाल सकते,
नही निकाल सकते,नही निकाल सकते....!
शत शत नमन सारे अमर शहीदों को 🙏🙏

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