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टाइटन पनडुब्बी से टाइटैनिक के मलवे देखने गए पांचों अरबपति हादसे का शिकार हुए और डूब कर मर गए।लोग इसपर अलग-2 अपनी राय दे रहे हैं। सबकी राय अपनी परिस्थितियों के अनुसार और अनुरूप है। पर सच ये है कि साहसिक यात्राओं की जोख़िम का हिम्मत कम लोग उठा पाते हैं.....
हर साल पर्वतारोहीयों के साथ हादसे होते हैं और वो हर फिर से नए पर्वतारोही फिर निकल पड़ते हैं। पुराने हादसों से सीखते हैं, संभलते हैं, हिम्मत करते हैं, जुनून पैदा करते हैं, अपनो का साथ खोने से डरते हैं पर फिर भी अपने अंदर पनप रहे जुनून को चिंगारी देते हैं और फिर दुर्गम यात्राओं पर निकल पड़ते हैं। पहाड़ों की दुर्गम चोटियां ऐसे ही फतह नहीं की गई है। सैकड़ों जाने गई हैं वहां पहुंचने से पहले। चांद का पहला सफर इतना आसान नहीं रहा होगा न ही उसके लिए हिम्मत बांधना इतना आसान रहा होगा।ये सब इतना आसान नहीं होता पर करने वाले करते ही हैं। राय देना आसान है कि वो स्कूल खोल सकते थे, हॉस्पिटल खोल सकते थे या कोई सामाजिक संस्थान खोल सकते थे पर वो उनका जुनून नहीं था।
मरना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है यहां कोई अमर नहीं है सबको एक न एक दिन जाना ही पड़ता है। दुर्गम यात्राओं को करना जोख़िम भरा काम होता है पर हिम्मत करने वालें ने, इस छोर से उस छोर तक सफ़र करने वालों ने, जान जोखिम में डाल दुर्गम यात्राओं करने वालों ने दुनिया वालों को अकूत ज्ञान से नवाजा है।
उन यात्रियों के हिम्मत भरी यात्रा से अनन्त के सफ़र पर निकल जाने के लिए बिग सैल्यूट.....