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“Fortunate are those who have had a chance to read the wonderful masterpieces of Rabindranath Tagore….. Sending you warm wishes on the birthday of the legend Shri Rabindranath Tagore!!!” #rabindranathtagore #tagore #rabindranath #poetry #art #santiniketan #rabindrajayanti #gitanjali #literature #poet

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“Let us celebrate the pious occasion of Rabindranath Tagore Jayanti by promising ourselves to read more of his creations to keep them alive for generations to come….. Warm wishes to you on this special day.” #rabindranathtagore #tagore #rabindranath #poetry #art #santiniketan #rabindrajayanti #gitanjali #literature #poet

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“Rabindranath Tagore has not been the face of Bengal but of India on the international platform….. Let us make Rabindranath Tagore Jayanti more memorable for everyone by reading his wonderful books and poems.” #rabindranathtagore #tagore #rabindranath #poetry #art #santiniketan #rabindrajayanti #gitanjali #literature #poet

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विश्व का पहला‌ विश्वविद्यालय -
तक्षशिला विश्वविद्यालय को विश्व का सबसे पहला विश्वविद्यालय माना जाता है. ये तक्षशिला शहर में था, जो प्राचीन भारत में गांधार जनपद की राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था. माना जाता है विश्वविद्यालय छठवीं से सातवीं ईसा पूर्व में तैयार हुआ था. इसके बाद से यहां भारत समेत एशिया से विद्वान पढ़ने के लिए आने लगे. इनमें चीन, सीरिया, ग्रीस और बेबीलोनिया भी शामिल हैं. फिलहाल ये पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले की एक तहसील है और इस्लामाबाद से लगभग 35 किलोमीटर दूर है.
तक्षशिला का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. कहा जाता है कि इसकी नींव श्रीराम के भाई भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर रखी थी. बाद के समय में यहां कई सारे नई-पुराने राजाओं का शासक रहा. इसे गांधार नरेश का राजकीय संरक्षण मिला हुआ था और राजाओं के अलावा आम लोग भी यहां पढ़ने आते रहे. वैसे ये गुरुकुल की शक्ल में था, जहां पढ़ने वाले नियमित वेतनभोगी शिक्षक नहीं, बल्कि वहीं आवास करते और शिष्य बनाते थे.
पहली बार साल 1863 में जमीन के नीचे दबे इस महान विश्वविद्यालय के अवशेष मिले. इसके बाद से इस जगह की भव्यता के बारे में कई बातें सामने आ चुकी हैं.
सोचने की बात है कि जिसे दुनिया की सबसे पहली यूनिवर्सिटी कहते हैं, वो आखिर कैसे खत्म हो गया. लेकिन इससे पहले थोड़ा वहां की समृद्धि के बारे में जानते हैं. ये पूरी तरह से विकसित शहर था, जहां पक्के मकान, पानी के निकासी की व्यवस्था, बाजार और मठ, मंदिर थे. ये व्यापार का भी बड़ा केंद्र था और मसालों, मोतियों, चंदन, रेशम जैसी चीजों का व्यापार हुआ करता.
अब विश्वविद्यालय की बात करें तो यहां छात्र वेद, गणित, व्याकरण और कई विषयों की शिक्षा लेते थे. माना जाता है कि यहां पर लगभग 64 विषय पढ़ाए जाते हैं, जिनमें राजनीति, समाज विज्ञान और यहां तक कि राज धर्म भी शामिल था. साथ ही युद्ध से लेकर अलग-अलग कलाओं की शिक्षा मिलती. ज्योतिष विज्ञान यहां काफी बड़ा विषय था. इसके अलावा अलग-अलग रुचियां लेकर आए छात्रों को उनके मुताबिक विषय भी पढ़ाए जाते थे.
बाद में अनेकों आक्रमणों से ये भव्य विश्वविद्यालय खत्म हो गया. इसका पता 1863 में लगा, जब पुरातात्विक खुदाई के दौरान जनरल कनिंघम को यहां के अवशेष मिले. इससे शहर के अलग-अलग पहलू खुलते गए. बता दें 5वीं ईस्वीं में चीन से बौद्ध भिक्षु फाहियान यहां आए थे और उन्होंने शहर के साथ विश्वविद्यालय को अपने पूरे वैभव में देखा. हालांकि 7वीं ईस्वीं में चीन के एक अन्य भिक्षु श्यानजांग को शहर में वीरानी और मलबा ही दिखा. इस बीच क्या हुआ, इसके बारे में कई बातें प्रचलित हैं.
एक के बाद एक कई आक्रांताओं ने शहर को पूरी तरह से खत्म कर दिया. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि मध्य-एशियाई खानाबदोश जनजातियों ने यहां आक्रमण करके शहर को खत्म कर डाला. इस कड़ी में शक और हूण का जिक्र आता है. हालांकि बहुत से इतिहासकार कुछ और ही बताते हैं. उनके मुताबिक शक और हूण ने भारत पर आक्रमण को किया था लेकिन उसे लूटा था, नष्ट नहीं किया था. उनके मुताबिक अरब आक्रांताओं ने ज्ञान के इस शहर को पूरी तरह से खत्म कर दिया ताकि इससे विद्वान न निकल सकें. छठवीं सदी में यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरू किए और बड़ी संख्या में तबाही मची. आज भी यहां पर तोड़ी हुई मूर्तियों और बौद्ध प्रतिमाओं के अवशेष मिलते हैं.
यूनेस्को ने साल 1980 में तक्षशिला को विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया. इसके बाद से यहां बड़ी संख्या में सैलानी और खासकर स्थानीय पाकिस्तानी पर्यटक आते हैं.

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