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रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूँछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।
दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहाँ पहुँचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे। जो हिम्मत करके पहुँचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं" !!
रही-सही कसर हाईस्कूल में पंचवर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो...
और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं,सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट"
पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले #अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नम्बर पूछा जाता और रिजल्ट सुनाया जाता...पाँच हजार एक सौ तिरासी ...फेल, चौरासी..फेल, पिचासी..फेल, छियासी..सप्लीमेंट्री !!
कोई मुरव्वत नहीं..पूरे मुहल्ले के सामने बेइज्जती।
रिजल्ट दिखाने की फीस भी डिवीजन से तय होती थी,लेकिन फेल होने वालों के लिए ये सेवा पूर्णतया निःशुल्क होती।
जो पास हो जाता, उसे ऊपर जाकर अपना नम्बर देखने की अनुमति होती। टोर्च की लाइट में प्रवेश-पत्र से मिलाकर नम्बर पक्का किया जाता, और फिर 10, 20 या 50 रुपये का पेमेंट कर पिता-पुत्र एवरेस्ट शिखर आरोहण करने के गर्व के साथ नीचे उतरते।
जिनका नम्बर अखबार में नहीं होता उनके परिजन अपने बच्चे को कुछ ऐसे ढाँढस बँधाते... अरे, कुम्भ का मेला जो क्या है, जो बारह साल में आएगा, अगले साल फिर दे देना एग्जाम...
पूरे मोहल्ले में रतजगा होता।चाय के दौर के साथ चर्चाएं चलती, अरे ... फलाने के लड़के ने तो पहली बार में ही ...
आजकल बच्चों के मार्क्स भी तो #फारेनहाइट में आते हैं।
99.2, 98.6, 98.8.......
और हमारे जमाने में मार्क्स #सेंटीग्रेड में आते थे....37.1, 38.5, 39
हाँ यदि किसी के मार्क्स 50 या उसके ऊपर आ जाते तो लोगों की खुसर -फुसर .....
नकल की होगी ,मेहनत से कहाँ इत्ते मार्क्स आते हैं।
वैसे भी इत्ता पढ़ते तो कभी देखा नहीं । (भले ही बच्चे ने रात रात जगकर आँखें फोड़ी हों)
सच में, रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था।
"नफरत " एक जहरीली मानसिकता।
लेखिका जान्हवी किन्नौर
इस संसार में सभी मनुष्य जीव-जन्तु को प्रेम चाहिए। कहते है की नफरत से कुछ हासिल नही होता सिवाए पछतावा के। इसलिए हमारे मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना होना आवश्यक है। प्रेम से जग जीता जा सकता है।
मेरे लेखन में प्रेम का मतलब प्रेमी -प्रेमिका से नही अपितु समाज में जो नफरत धर्म ,जाति ,अमीर ,गरीब ,एक सरहद से दूसरे सरहद एक इंसान का दूसरे इंसान के प्रति एक ऐसी प्रेम भावना से है जो इस संसार में समस्त जीव ,मनुष्य एक दूसरे से अपेक्षा रखता है ।
आज हिंदुस्तान अपने इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। आज खतरे में सिर्फ हिंदु-मुस्लिम दलित नहीं है बल्कि पूरा हिंदुस्तान है।
मेरा देश महान है इसमें कोई शक नहीं पर इसमें रहने वाले लोगो के मन में कितनी महानता है? इसके अंदर की तस्वीर क्या है ?आप अब मणिपुर की बात लीजिये जहाँ इंसान दरिंदों की तरह एक दूसरे से मार काट रहे , अभी की बात हरियाणा के नूह की जहाँ धार्मिक जुलूस में हिंसा हो रही है।
अभी कल सुबह की चलती ट्रेन की घटना भी आप सभी ने सुनी होगी जहां एक रक्षा करने वाला सिपाही राक्षस बन गया। आज का युवा किस और जा रहा है। देश में और भी सोचनीय मुद्दे है जैसे महंगाई , बेरोजगारी ,अच्छी शिक्षा ,बेहतर स्वास्थ्य सुविधा। पर आज की युवा पीढ़ी पढ़ क्या रही है ?इतनी नफरत क्यों ? उसकी मानसिक सिथति किस दिशा में जा रही है।
एक बूढ़ा मुस्लिम व्यक्ति ट्रेन में नमाज अदा करता है और वहीं कुछ युवा जोर जोर से जानबूझ कर हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे है। में यहाँ किसी मुस्लिम का समर्थन नहीं करती ना हिन्दू के हनुमान चालीसा से आपति जता रही यहाँ बात सही और गलत की है एक ऐसी सोच की जो आज की युवा पीढ़ी को इस नफरत की जहरीली मानसिकता ने जकड़ रखा है।
ये सामाजिक मुद्दा भी है और एक सामाजिक आईना भी। भारत एक धर्मनिपेक्ष देश है ये उस बगिया की तरह है जिसमें तरह तरह के फूल खिलते है और जितने प्रकार के फूल उतनी उसकी सुंदरता।
हमारा धर्म ये नहीं सिखाता की दूसरे धर्म का अपमान करे। हम मानते है हम दूसरे धर्म को नहीं अपनाते इसका मतलब ये तो नहीं उसका अपमान भी ना करे।
भारत का संविधान, भारत का लोकतंत्र ,भारत का भविष्य। वो संविधान जिसे स्वतंत्रा संग्राम के शूरवीरों ने अपने खून से सींचा था और धर्मनिपेक्ष लोकत्रांत्रिक गणराज्य की बुनियाद रखी थी। आज इसी गणराज्य की जड़ों में नफरत का तेजाब डाला जा रहा है।
अभी हाल में ही रचोली में किन्नौर की बेटी के साथ बदसुलूकी की घटना हुई थी। जिस साहिल सागर ने किन्नौर की बेटियों की मदद की उसे भी समाज में नफरत का सामना करना पड़ा।
कहाँ तो उसे सम्मान देने की बात होनी चाहिये थी और कहाँ उसे धमकियों का सामना करना पड़ा। अब यहाँ समाज की मानसिकता भी देखिये किस आधार पर एक समाज के हितेषी को भी हमारा ही समाज अपनी तुच्छ मानसिकता से प्रताड़ित करता है। आज हमारे समाज और राजनीति में जो नफरत की आंधी चल रही है ये कोई नई बात नहीं है। दुनिया के कई देशों में ऐसे दौर आये जब नफरत मनुष्य के मन मस्तिष्क में इस कदर हावी हुआ की उसने प्रेम मुहब्बत को हमेशा हमेशा के लिये समाप्त ही कर दिया।
ये भी देखने को मिल रहा है की आज भारत की राजनीति में नफरत का बोलबाला है। हर गली ,गाँव ,मोड पर नफरत का राक्षस ऐसे खड़ा मानो कब किसको निगल ले। भाईचारे की राजनीति और संस्कृति अब लाचार नजर आती है। नफरत की राजनीति अपने चरम पर है। मेरा लिखने का उद्धेश्य किसी विशेष राजनीति पार्टी का समर्थन देना या विरोध करना नहीं है जो हालत है उसके आधार पर है।
आज देश की हालत चिंताजनक है और आमजन परेशान। एक तो महंगाई ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार से जनता परेशान है उसमें फिर नफरतों की टोली अपनी रोटी सेंकने आ जाती है।
अपने आने वाली पीढ़ी और अपना भविष्य खतरे में मत डालिये आपके पास और भी कार्य है करने के लिए। एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना आदर रखे। अपने आप को इतना मजबूत करे अपने की मस्तिष्क में ऐसी कोई गलत धारणा ही ना आये। दया ,करुणा ,आदर प्रेम से एक दूसरे का और एक दूसरे के धर्म का सम्मान करे। आप मनुष्य है मनुष्य बने रहिये अपने अंदर राक्षस प्रवृत्ती को हावी ना होने दे ।
धन्यवाद।
जहान्वी।