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रक्ताच्या नात्यापेक्षा शेवटी संस्कार महत्त्वाचे...
इकडे आजूबाजूला अनेक लोक उपस्थित होते पण ज्येष्ठ शरदचंद्रजी पवारांना आधार द्यायला राजसाहेब क्षणाचाही विलंब न करता धावले.
राजसाहेबांची शस्त्रक्रिया झाली तेव्हा आशाताई त्यांना भेटायला आल्या होत्या.शस्त्रक्रियेनंतर वाकता येत नव्हतं तरीही राजसाहेबांनी वाकून आशीर्वाद घेतले. संस्कार सुटत नसतात... अभिमान आहे मी मा.राजसाहेब ठाकरे यांचा कार्यकर्ता असल्याचा...!
बहुत समय पहले की बात है एक बुजुर्ग आदमी भुख से व्याकुल था,वो एक तालाब पर जाता है और बड़ी मशक्कत से एक मछली पकड़ता है कि चलो इससे मैं भूख मिटा सकुंगा।
तभी वहां एक लड़का आता है और उस बुजुर्ग को परेशान करने के लिए बुजुर्ग के हाथ से मछली छीन लेता है साथ ही आगे आगे भागकर परेशान करने लगता है।
बुजुर्ग में इतनी ताकत तो थी नहीं कि उस जवान लड़के के पीछे भागकर उससे मछली छिन ले, वो उस लड़के को कहते हैं, मेरी मछली दे दो मैं बहुत भुखा हूँ।
लेकिन लड़का नहीं मानता वो और अधिक परेशान करने लग जाता है,हार कर वो बुजुर्ग आंखों में आंसू लिए ऊपर की तरफ देखकर कुछ बोलते हैं और आगे बढ़ जाते हैं! तभी उस लड़के के हाथ में मछली का कांटा चुभ जाता है,वो दर्द से कराहता हुआ मछली को फेंक घर चला जाता है।
लड़का घाव पर दवा लगाता है पर उसका घाव ठीक नहीं होता, कई दिन बीत जाने पर भी घाव ठीक नहीं होता तब लड़का डॉक्टर के पास जाता है, डॉक्टर कहता है तुम्हारे अंगुठे में जहर फैल चुका है इसे काटना पड़ेगा, लड़के का अंगुठा काट दिया गया, फिर भी लड़के का अंगूठा ठीक नहीं होता ना घाव भरता है ना दर्द कम होता है,लडका बहुत परेशान रहता है।
कुछ दिनों बाद लड़का दूसरे डॉक्टर के पास जाता है वो डॉक्टर भी कहता है तुम्हारा जख्म बहुत बढ़ गया है सारे अंगों में जहर ना फैल जाए इसलिए इस पंजे को काटना पड़ेगा, लड़के का पंजा काट दिया जाता है।
जब वो लड़का अपना पंजा कटवाकर घर लौट रहा था तो रास्ते में उसे वही बुजुर्ग दिखाई देता है वो दौड़कर उसी बुजुर्ग की तरफ जाता है और अपने किए की माफी मांगता है,और पुछता है कि मेरे एक सवाल का जवाब दे दीजिए,आपने उस दिन ऊपर की तरफ देखकर मन ही मन क्या कहा कि मेरे साथ ये सब घटना घटी।
बुजुर्ग पहले तो हंसे फिर गंभीर होकर कहते हैं मैंने ईश्वर को सिर्फ यही कहा "मैं मजबूर हुं मेरे साथ बुरा करने वाले का मैं कुछ नहीं कर सकता,अब मैं इसे तेरे हवाले करता हुं, मुझे न्याय चाहिए" सच्चे दिल से निकली आह ने देखो तुम्हारा ये हाल कर दिया।
"कर्मा जरूर लौटता है, ईश्वर की अदालत में जैसा का तैसा मिलता है, हाथ के बदले हाथ, आंख के बदले आंख,धोखे के बदले धोखा, कर्म से कोई नहीं बच सकता।"
"हम अपने साथ बुरा करने वाले हर इंसान को पूरी तरह से ईश्वर/प्रकृति के हवाले कर अपने आपको मुक्त करते हैं,।"
पत्नी के अंतिम संस्कार व तेरहवीं के बाद रिटायर्ड पोस्टमैन मनोहर गाँव छोड़कर मुम्बई में अपने पुत्र सुनील के बड़े से मकान में आये हुए हैं।
सुनील बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु मां ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे यहीं ठीक है
सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे ठीक है न'
बस बाबूजी की इच्छा मर जाती पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी , इसलिए मनोहर बम्बई आ ही गए हैं
सुनील एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर है उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी है
घर में घुसते ही मनोहर ठिठक कर रुक गए गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर सुनील बोला - "आइये बाबूजी, अंदर आइये"
"बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी"
- "बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।"
सहमें हुए कदमों में चलते हुए मनोहर जैसे ही सोफे पर बैठे तो उनकी चीख निकल गयी - अरे रे! मर गया रे!
उनके बैठते ही नरम औऱ गुदगुदा सोफा की गद्दी अन्दर तक धँस गयी थी। इससे मनोहर चिहुँक कर चीख पड़े थे।
चाय पीने के बाद सुनील ने मनोहर से कहा - "बाबूजी, आइये आपको घर दिखा दूँ अपना।"
- "जरूर बेटा, चलो।"
- "बाबू जी, यह है लॉबी जहाँ हम लोग चाय पी रहे थे। यहाँ पर कोई भी अतिथि आता है तो चाय नाश्ता और गपशप होती है। यह डाइनिंग हाल है। यहाँ पर हम लोग खाना खाते हैं। बाबूजी, यह रसोई है और इसी से जुड़ा हुआ यह भण्डार घर है। यहाँ रसोई से सम्बंधित सामग्री रखी जाती हैं। यह बच्चों का कमरा है।"
- "तो बच्चे क्या अपने माँ बाप के साथ नहीं रहते?"
- बाबूजी, यह शहर है और शहरों में मुंबई है। यहाँ बच्चे को जन्म से ही अकेले सोने की आदत डालनी पड़ती है। माँ तो बस समय समय पर उसे दूध पिला देती है और उसके शेष कार्य आया आकर कर जाती है।"
थोड़ा ठहर कर सुनील ने आगे कहा,"बाबूजी यह आपकी बहू और मेरे सोने का कमरा है और इस कोने में यह गेस्ट रूम है। कोई अतिथि आ जाए तो यहीं ठहरता है। यह छोटा सा कमरा पालतू जानवरों के लिए है। कभी कोई कुत्ता आदि पाला गया तो उसके लिए व्यवस्था कर रखी है।"
सीढियां चढ़ कर ऊपर पहुँचे सुनील ने लम्बी चौड़ी छत के एक कोने में बने एक टीन की छत वाले कमरे को खोल कर दिखाते हुए कहा - "बाबूजी यह है घर का कबाड़खाना। घर की सब टूटी फूटी और बेकार वस्तुएं यहीं पर एकत्र कर दी जाती हैं। और दीवाली- होली पर इसकी सफाई कर दी जाती है। ऊपर ही एक बाथरूम और टॉइलट भी बना हुआ है।"
मनोहर ने देखा कि इसी कबाड़ख़ाने के अंदर एक फोल्डिंग चारपाई पर बिस्तर लगा हुआ है और उसी पर उनका झोला रखा हुआ है। मनोहर ने पलट कर सुनील की तरफ देखा किन्तु वह उन्हें वहां अकेला छोड़ सरपट नीचे जा चुका था।
मनोहर उस चारपाई पर बैठकर सोचने लगे कि 'कैसा यह घर है जहाँ पाले जाने वाले जानवरों के लिए अलग कमरे का विधान कर लिया जाता है किंतु बूढ़े माँ बाप के लिए नहीं। इनके लिए तो कबाड़ का कमरा ही उचित आवास मान लिया गया है। नहीं.. अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ। सुनील की माँ की सोच बिल्कुल सही था। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।'
अगली सुबह जब सुनील मनोहर के लिए चाय लेकर ऊपर गया तो कक्ष को खाली पाया। बाबू जी का झोला भी नहीं था वहाँ। उसने टॉयलेट व बाथरूम भी देख लिये किन्तु बाबूजी वहाँ भी नहीं थे वह झट से उतर कर नीचे आया तो पाया कि मेन गेट खुला हुआ है उधर मनोहर टिकट लेकर गाँव वापसी के लिए सबेरे वाली गाड़ी में बैठ चुके थे उन्होंने कुर्ते की जेब में हाथ डाल कर देखा कि उनके 'अपने घर' की चाभी मौजूद थी उन्होंने उसे कस कर मुट्ठी में पकड़ लिया चलती हुई गाड़ी में उनके चेहरे को छू रही हवा उनके इस निर्णय को और मजबूत बना रही थी और घर पहुँच कर चैन की सांस ली
💐💐#शिक्षा??
दोस्तों,जीवन मे अपने बुजुर्ग माता पिता का उसी प्रकार ध्यान रखे जिस प्रकार माता पिता बचपन मे आपका ध्यान रखते थे,क्योकि एक उम्र के बाद बचपन फिर से लौट आता है इसलिए उस पड़ाव पर व्यस्त जिंदगी में से समय निकाल कर उन्हें भी थोड़ा समय दीजिये,अच्छा लगेगा।
सदैव प्रसन्न रहिये जो प्राप्त है, पर्याप्त है...🙏
Rahul Chahar
राहुल चाहर को जन्मदिन की शुभकामनाएं
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