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चिड़िया को फिर से लौट जाना है अपने घोंसले की ओर...दिन जैसे पंख लगाकर उड़ गए और रातें अल सुबह 4 बजे तक बहनों की हँसी मज़ाक और अनगिनत बातों में गुलज़ार रही!
भागते समय को रोक पाने की हर नाकाम कोशिश के बाद, आज सुबह जल्दी ट्रेन पकड़ने के लिए रात की किस्सागोई उर्फ चिटचेट महफ़िल 3 बजे ही समाप्त कर दी गई। मैने मोबाइल में 5 बजे का अलार्म लगाकर माँ को 4:45 पर जगाने का कहा, और कहकर खुद सो गई।
4 बजकर 44 मिनट पर मेरी अलार्म क्लॉक ने आकर कहा; उठ जा पाँच हो गए! मुझे लगा था कि माँ भी थकी हुई हैं, हो सकता है वह न उठा पाए, पर पता चला कि मुझे जगाने के चक्कर मे खुद सोई नहीं! अब मैं क्या ही कहती...जानती थी कि मेरी पर्सनल अलार्म क्लॉक अपना काम करेगी ही।
और यह भी तय है कि, चाहे आपकी ट्रेन में ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब सर्व होता हो, फिर भी सुबह जल्दी उठकर आपके लिए सब्जी पूड़ी बनाकर बांधने वाली और यह कहने वाली;
'क्या पता तुझे भाए न भाए वहां का खाना...अपने साथ खाना हो तो परेशान नहीं होना पड़ता!'
बस माँ ही हो सकती है❤️
ब्रेकफास्ट को देखकर माँ की बात सही प्रतीत होती लग रही..और लंच में माँ के हाथ की पूड़ी और आलू की सब्जी खाने का विचार बन गया है!
फिलहालहम चाय प्रेमी दो दो डिब डिब वाली चाय के टेस्ट परीक्षण में असफल होने के बाद... ब्रेकफास्ट के साथ ब्लैक कॉफी का कॉम्बिनेशन बिठाए फ्यूजन में सन्तुष्टि की संभावना तलाश रहे! और खिड़की के नज़ारे ताक रहे।
ख़ैर...सुपरफ़ास्ट ट्रेन में बैठकर जल्दी जल्दी मायके गई हुई चिड़िया यही गा रही;
गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हाँक रे...इत्ती भी तुझे जल्दी क्या है रे...??
बाकी तो...आल इज वेल!
चिड़िया को फिर से लौट जाना है अपने घोंसले की ओर...दिन जैसे पंख लगाकर उड़ गए और रातें अल सुबह 4 बजे तक बहनों की हँसी मज़ाक और अनगिनत बातों में गुलज़ार रही!
भागते समय को रोक पाने की हर नाकाम कोशिश के बाद, आज सुबह जल्दी ट्रेन पकड़ने के लिए रात की किस्सागोई उर्फ चिटचेट महफ़िल 3 बजे ही समाप्त कर दी गई। मैने मोबाइल में 5 बजे का अलार्म लगाकर माँ को 4:45 पर जगाने का कहा, और कहकर खुद सो गई।
4 बजकर 44 मिनट पर मेरी अलार्म क्लॉक ने आकर कहा; उठ जा पाँच हो गए! मुझे लगा था कि माँ भी थकी हुई हैं, हो सकता है वह न उठा पाए, पर पता चला कि मुझे जगाने के चक्कर मे खुद सोई नहीं! अब मैं क्या ही कहती...जानती थी कि मेरी पर्सनल अलार्म क्लॉक अपना काम करेगी ही।
और यह भी तय है कि, चाहे आपकी ट्रेन में ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब सर्व होता हो, फिर भी सुबह जल्दी उठकर आपके लिए सब्जी पूड़ी बनाकर बांधने वाली और यह कहने वाली;
'क्या पता तुझे भाए न भाए वहां का खाना...अपने साथ खाना हो तो परेशान नहीं होना पड़ता!'
बस माँ ही हो सकती है❤️
ब्रेकफास्ट को देखकर माँ की बात सही प्रतीत होती लग रही..और लंच में माँ के हाथ की पूड़ी और आलू की सब्जी खाने का विचार बन गया है!
फिलहालहम चाय प्रेमी दो दो डिब डिब वाली चाय के टेस्ट परीक्षण में असफल होने के बाद... ब्रेकफास्ट के साथ ब्लैक कॉफी का कॉम्बिनेशन बिठाए फ्यूजन में सन्तुष्टि की संभावना तलाश रहे! और खिड़की के नज़ारे ताक रहे।
ख़ैर...सुपरफ़ास्ट ट्रेन में बैठकर जल्दी जल्दी मायके गई हुई चिड़िया यही गा रही;
गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हाँक रे...इत्ती भी तुझे जल्दी क्या है रे...??
बाकी तो...आल इज वेल!