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ये नहीं होते तो आज भी किसी न किसी महिला की सतीप्रथा के नाम पर होली जल रही होती।
हमारे यहां ठंडी होली की पूजा होती है। पूजा का इतना सब सामान लेकर नीचे सोसायटी गेट तक जाना भी बड़ा टास्क है। साहब को कहा नीचे चलने को तो मुझे ऐसे घूर के देखा जैसे टोंटी भैया, टोंटी सुनकर देखते हैं। और मैं निरीह जनता की तरह सर झुकाकर निकल गई।
खैर...जैसे तैसे मैनेज कर के नीचे पूजा करने गई। मन बड़ा प्रसन्न था। अच्छे से पूजा हुई, और बस जाने ही वाली थी कि, एक बन्दी अपने 'लाव लश्कर' के साथ पूजा करने आई। यहाँ पर लाव लश्कर का मतलब बिल्कुल वही ( उनके पति ) है जो आप समझ रहे हैं!
हाँ तो वो आगे आगे फोन पर सेल्फी लेती चल रही थी...और उनके पतिदेव पीछे पीछे पूजा का सारा सामान उठाए आ रहे थे। बन्दी पूजा करने बैठी और बन्दा हाथ बांध कर वहीं खड़ा रहा। ' जल का लोटा ' कहते ही वो हाजिर...लच्छा दो तो वो हाजिर...अरे तुमने पुए तो दिए नहीं...अरे उपले तो पकड़ाओ।
इतना सब करने के बाद बीच बीच मे मेडम की फोटो भी खींचता जा रहा था।
यह भव्य और दिव्य दृश्य देखकर मुझे एहसास हुआ कि मेरी लिस्ट के कुछ 'योद्धा' कितनी मेहनत के बाद दुइ टाइम का खाना खा पाते हैं। और बन्दियाँ कितनी मेहनत के बाद कुछ फोटोज अपलोड कर पाती हैं। अब आदेश देना इतना भी तो आसान नहीं!
बाकी तो...