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किसी के पास बहुत कुछ है प्रभु का दिया हुआ,
किसी के पास सिवाए प्रभु के कुछ भी नहीं है !!

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जहां में किसको क्या मिला इसका कोई हिसाब नहीं,
किसी के पास रूह नहीं किसी के पास लिबास नहीं ।।

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मुफलिसी भी तोहमत है बेटियो के लिए,
बाप "ग़रीब" हो तो "रिश्ते" नही आते !!

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बाबा अपनी रचना के जरिए समाज को जिस भाव से चित्रित किए हैं वो अलौकिक है....

खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी।
जरहिं सदा पर संपति देखी॥
जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई।
हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई॥

भावार्थ यह है कि.....

दुष्टों के हृदय में बहुत अधिक संताप रहता है। वे दूसरों की संपत्ति (सुख) देखकर सदा जलते रहते हैं। वे जहाँ कहीं दूसरे की निंदा सुनते हैं, वहाँ ऐसे प्रसन्न होते हैं जैसे कोई रास्ते में पड़े खजाने को पाकर खुश होता है।

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कुछ लोगों के निजी स्वार्थ की भेंट चढ़ भारत का विभाजन ये कहते हुए कर दिया गया कि हिंदू मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते और देश को दो हिस्सों में बाँट दिया गया।

देश की आजादी के समय बंटवारा के उपरांत जो मुसलमान भारत में रह गए वो आज दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक सुख शांति से जी रहे हैं और जो मजहब के नाम पर पाकिस्तान चले गए, वे आज आटे के लिए लड़कर मर रहे हैं। पाकिस्तान में हिन्दुओं का अस्तित्व तो मिटने के कगार पर पहुंच चुका है।

भारत के विभाजन के समय 9.5 करोड़ मुसलमानों में से 6 करोड़ मुसलमान पाकिस्तान के नागरिक बन गए और 3.5 करोड़ मुसलमान भारत में ही रह गए, जिससे हिंदुस्तान एक गैर-मुस्लिम देशों में सबसे बड़ा मुसलमान अल्पसंख्यक देश बन गया।

आज पाकिस्तान की कुल जनसंख्या 24 करोड़ है, इसमें से 21 करोड़ मुसलमान हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में मुसलमानों की कुल संख्या 20 करोड़ है और इनकी गिनती हिंदुस्तान में अल्पसंख्यक में होती है। इसके अलावा करोड़ों रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत पाल रहा है। अल्पसंख्यक दर्जा की वजह से इस देश में 17% आबादी के लिए 33% बजट खर्च किया जा रहा है।

UN चार्टर के अनुसार किसी भी देश की कुल जनसंख्या का मात्र 2% ही अल्पसंख्यक समुदाय कहलाता है फिर भारत में मुस्लिम समुदाय अल्पसंख्यक श्रेणी में है।क्या धरा का कोई कानूनविद या बुद्धिजीवी बता सकता है कि इस संख्या के साथ उन्हें देश में अल्पसंख्यक कैसे कहा जाता है ? 🤔

और तो और लोकतंत्र और संविधान की महिमा गाने वाले देश में बहुमत की इतनी सरकारें चुनी गईं लेकिन देश के हर कोने में मिशनरी और वफ्फ बोर्ड ने लाखों एकड़ भूमि बलात कब्जा कर चर्च और मस्जिदें बना व्यवहारिक व्यवस्थाओं को तहस नहस कर रहीं लेकिन इस देश में इतने वर्षों से वक्फ बोर्ड और चर्चो के इस कुकृत्य के खिलाफ कोई कानून नहीं आया।

अगर "मोदी है तो मुमकिन है" यथार्थ है तो इन मुद्दों पर भी कोई न कोई स्पष्ट और तार्किक समाधान देश को मिलना चाहिए ऐसी मेरी अपेक्षा है।

और तो और सोचिये भारत में (20 करोड़ कागज वाले,5करोड़ बिना कागज वाले), बांग्लादेश (कुल आबादी 15.89 करोड़ है जिसमें में हिंदुओं की जनसंख्या 1.70 करोड़ है), पाकिस्तान (21 करोड़), अफगानिस्तान (4 करोड़) को मिला कर अखण्ड भारत बनाने का मंसूबा पालने वालो के जानिब समझे तो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानितान के मुसलमानों का जोड़ 64 करोड़ पहुंचता है जो सभी अपने मजहब के लिए किसी हद तक कट्टर हैं। ये अखंड भारत का स्वप्न हिंदुस्तान के चुनिंदा कट्टर हिंदुओं को कहां लाकर छोड़ेगा ??🤔

इसलिए अखंड भारत के सपना देखने वालों ऐसा सपना जरूर देखिए, लेकिन जमीनी सच्चाई को ध्यान में रख कर सोचिए वरना कहने के लिए 90 करोड़ हिंदुओं वाला हिंदुस्तान, अखंड भारत बनने पर किस दशा में होगा इसे इतिहास भी किसी को न बता पाएगा। सरकारें या संस्थान हिंदू राष्ट्र न बनातीं उन्हे जनमानस बनाता है और उसके लिए 90 करोड़ हिंदुओं में विशुद्ध हिंदू चिन्हित कीजिए फिर देखिए आप कहां खड़े हैं।

सनातन धर्म ध्वजा वाहकों बड़ी बड़ी बातों से पेट भरने की आदत छोड़िए और वास्तविकता से नाता जोड़िए। जो है वही बचाइए वरना अस्तित्व मिटने में देर नहीं दिख रही।

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झुमके से कह दो गालों को चूमना छोड़ दे,
"इश्क रुस्वा हुआ तो कत्ल हजार होंगे...!!"

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कभी बे ख़्याल होकर यूं छू लिया जिंदगी ने,
हजारों लाख ख़्वाब देख डाले यहां बेख़ुदी ने ।।

कभी कभी लिखने को तो बहुत कुछ होता है पर समझ ही नहीं आता क्या लिखूं.....

दिल का दर्द लिखूं या दिल में भरा प्यार लिखूं, जिंदगी की गहराई लिखूं या जिंदगी के उतार चढ़ाव लिखूं, खुला आसमान लिखूं या धरती में दफ़न कोई राज लिखूं,समझ ही नहीं आता क्या लिखूं...दिल कहता है चल थोड़ा सुकून लिख, दिमाग कहता है किसी क्रांति का जुनून लिख लेकिन मुझे लिखना तो बकवास ही रहता है....

कभी उलझाती, कभी सुलझाती ये जिंदगी प्रतिदिन एक नई सीख देती जाती है। इंसान की औकात कुछ नहीं है, जो घट रहा ईष्ट का फरमान जानकर भी इंसान अनजान बन रहा है। जिंदगी जीने की जद्दोजहद में हलकान है, दर्द का चहुंओर बिखरा पड़ा समान है। थोड़ा ग़म और थोड़ी सी खुशी ही जिंदगी की पहचान है। वो तो हौसलों का सहारा है वरना जिंदगी कहां आसान है।

भावनात्मक मन से बंधा व्यवहारिक जीवन किसी भी जिंदगी की सबसे बड़ी विडंबना है और जिंदगी के प्रदत्त पाठ्यक्रम में ज्ञानी होकर अनुभवविहीन रह जाना सबसे दुखद पहलू है।

जीवन के भिन्न भिन्न पड़ाव बहुत से सबक सिखा कर जाते हैं, उनमें से कुछ अच्छे पड़ाव होते हैं और कुछ अच्छे नहीं होते हैं। जो पड़ाव अच्छे नहीं होते उनमें एक बात जरूर अच्छी होती है, वो मुलाक़ात कराते हैं उन इंसानो से जो ज़िंदगी के अहम किरदार बन जाते हैं।

ज़िन्दगी में ज़िन्दगी को खोजना ही ज़िन्दगी की सबसे बड़ी जद्दोजहद है। बहुत कम जिन्दा लोगों में ज़िन्दगी को देखा है, ज्यादातर तो बस सांसों की गिरहें खोलने में ही मसरूफ़ हैं।

पता है जिंदा होना क्या है, जिंदगी क्या है ?

“काफी कुछ करने के बाद भी लगे कि अभी भी कुछ करना बाकी है”।

मन में उत्पन्न वह असंतोष का भाव, सब कुछ पाने के बाद भी कुछ पीछे छूट जाने से मिलता अपूर्णता का एहसास, समग्र जिंदगी अपनो के साथ बिताई हो फिर भी एक छूट चुके का सहवास (साथ) पाने की वह एषणा।

“उस हरेक भाव को अपने अंत तक जी पाने की जिजीविषा है जिंदगी। टूटे धागो को जोड़ कर ख्वाब बुन लेने की हिम्मत है जिंदगी"

“अनंत महासागर की लहरों को कागज़ की नाव से एकलवीर की तरह पार करने की कोशिश में होना जिंदा होना है। कठिन से कठिन परिस्थिति में अपनी ही परछाई को मित्र बनाकर उसके कंधे पर रो लेना जिंदा होना है।”

मध्याह्न के सूर्य में स्वयं की परछाई को क्षीण करते तीव्र प्रकाश में अपने अंधकार को भूलता मन जब असीम शांति से बोल उठे कि,“ अबे! अभी जिंदा हो तुम"। यही जिंदा होना है, यही जिंदगी है, यही जीवन है।

और ये जीवन एक अजीब सा रंगमंच है, जहां सूत्रधार और कठपुतली दोनों की भूमिकाओं का निर्धारण परिस्थितियां करती हैं। किसी की भूमिका निश्चित और स्थाई नहीं है, आज जो कठपुतली है क्या पता कल वो ही सूत्रधार बन जाए इसलिए...

गुज़रते दौड़ते लम्हे, हिसाब में लिखिए,
हक़ीक़तों की तमन्ना भी ख्वाब में लिखिए।

सवाल बन कर उभरते हैं दर्द के सूरज,
सुकूँ का चाँद ही सब के जवाब में लिखिए।

हर एक हर्फ़ से जीने का फ़न नुमायाँ हो,
कुछ इस तरह की इबारत निसाब में लिखिए।

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#मीरा का मार्ग था प्रेम का, पर कृष्ण और मीरा के बीच अंतर था पाच हजार साल का। फिर यह प्रेम किस प्रकार बन सका प्रेम के लिए न तो समय का कोई अंतर है और न स्थान का। प्रेम एकमात्र कीमिया है, जो समय को और स्थान को मिटा देती है। जिससे तुम्हें प्रेम नहीं है वह तुम्हारे पास बैठा रहे, शरीर से शरीर छूता हो, तो भी तुम हजारों मील के फासले पर हो और जिससे तुम्हारा प्रेम है वह दूर चांद-तारों पर बैठा हो, तो भी सदा तुम्हारे पास बैठा है।
प्रेम एकमात्र जीवन का अनुभव है जहां टाइम और स्पेस, समय और स्थान दोनों व्यर्थ हो जाते हैं। प्रेम एकमात्र ऐसा अनुभव है जो स्थान की दूरी में भरोसा नहीं करता और न काल की दूरी में भरोसा करता है, जो दोनों को मिटा देता है। परमात्मा की परिभाषा में कहा जाता है कि वह काल और स्थान के पार है, कालातीत। प्रेम परमात्मा है, इसी कारण। क्योंकि मनुष्य के अनुभव में अकेला प्रेम ही है जो कालातीत और स्थानातीत है। उससे ही परमात्मा का जोड़ बैठ सकता है।
इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कृष्ण पाच हजार साल पहले थे। प्रेमी अंतराल को मिटा देता है। प्रेम की तीव्रता पर निर्भर करता है। मीरा के लिए कृष्‍ण समसामयिक थे। किसी और को न दिखायी पड़ते हों, मीरा को दिखायी पड़ते थे। किसी और को समझ में न आते हों, मीरा उनके सामने ही नाच रही थी। मीरा उनकी भाव- भंगिमा पर नाच रही थी। मीरा को उनका इशारा-इशारा साफ था। यह थोड़ा हमें जटिल मालूम पड़ेगा, क्योंकि हमारा भरोसा शरीर में है। शरीर तो मौजूद नहीं था।
जिस कृष्‍ण को मीरा प्रेम कर रही थी, वे देहधारी कृष्ण नहीं थे। वह देह तो पाच हजार साल पहले जा चुकी। वह तो धूल-धूल में मिल चुकी। इसलिए जानकार कहते हैं कि मीरा का प्रेम राधा के प्रेम से भी बड़ा है। होना भी चाहिए।अगर राधा प्रसन्न थी कृष्ण को सामने पाकर, तो यह तो कोई बड़ी बात न थी। लेकिन मीरा ने पांच हजार साल बाद भी सामने पाया, यह बड़ी बात थी। जिन गोपियों ने कृष्‍ण को मौजूदगी में पाया और प्रेम किया प्रेम करने योग्य थे वे, उनकी तरफ प्रेम सहज ही बह जाता, वैसा उत्सवपूर्ण व्यक्तित्व पृथ्वी पर मुश्किल से होता है-तो कोई भी प्रेम में पड़ जाता।
लेकिन कृष्ण गोकुल छोड़कर चले गए द्वारका, तो बिलखने लगीं गोपियां, रोने लगी, पीड़ित होने लगीं। गोकुल और द्वारका के बीच का फासला भी वह प्रेम पूरा न कर पाया। वह फासला बहुत बड़ा न था। स्थान की ही दूरी थी, समय की तो कम से कम दूरी न थी। मीरा को स्थान की भी दूरी थी, समय की भी दूरी थी; पर उसने दोनों का उल्लंघन कर लिया, वह दोनों के पार हो गयी।
प्रेम के हिसाब में मीरा बेजोड़ है। एक क्षण उसे शक न आया, एक क्षण उसे संदेह न हुआ, एक क्षण को उसने ऐसा व्यवहार न किया कि कृष्ण पता नहीं, हों या न हों। वैसी आस्था, वैसी अनन्य श्रद्धा : फिर समय की कोई दूरी-दूरी नहीं रह जाती। दूरी रही ही नहीं।
आत्मा सदा है। जिन्होंने प्रेम का झरोखा देख लिया, उन्हें वह सदा जो आत्मा है, उपलब्ध हो जाती है। जो अमृत को उपलब्ध हुए व्यक्ति हैं-कृष्ण हों, कि बुद्ध हों, कि क्राइस्ट हों-जौ भी उन्हें प्रेम करेंगे, जब भी उन्हें प्रेम करेंगे, तभी उनके निकट आ जाएंगे। वे तो सदा उपलब्ध हैं, जब भी तुम प्रेम करोगे, तुम्हारी आख खुल जाती है।
ओशो

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सच मे बहुत खट्टा है...।।

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