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यह गद्दारी तो हमारे अपनों ने ही की है।
हमारे गौरवान्वित इतिहास को छुपाकर, इतिहास को बदलकर, जो सच्चाई थी उसे छुपाया गया और जो बुराई थी उसका महिमामंडन (ग्लोरिफाई) किया गया।
इससे हुआ क्या.... हम अंतर्मुखी होते गये।
देश के प्रति जवाबदेही हमारी लगभग शून्य हो गई और हम स्वार्थी होकर सिर्फ अपना और अपने परिवार के बारे में ही सोचने लगे। समाज और देश हमारी सोच से दूर होता गया।
लेकिन अब एक बार फिर से चेतना जागृत हो रही है।
लोग अपने से पहले समाज और समाज से पहले देश के बारे में सोचने लगे हैं, और यह सोच ही हमको विश्वगुरु बनाएगी, ऐसा ना सिर्फ मेरा मानना है बल्कि इस पर मुझे पूरा विश्वास भी है।
दुनियाँ का महानतम खिलाड़ी अगर उस समय से जबसे खेलों के आधुनिक स्वरूप का जन्म हुआ मुझसे चुनने को आप कहें... तो मैं बिना हिचक कहूंगा Michael Phelps
न इस खिलाड़ी सा चैंपियन हुआ..... न शायद आसानी से आगे हो.... अद्भुत.... अद्वितीय... अतुल्य...
एक बंदा जिसके नाम इतने ओलंपिक मेडल्स हैं जितने हमारे अपने देश भारत सहित दुनियाँ के आधे से ज्यादा देशों ने कुल मिलाकर अपने खेल इतिहास में नहीं जीते..
28 पदक..... जिनमें 23 स्वर्ण.... सिर्फ #ओलिंपिक में
WC के 33 जिनमें 26 #स्वर्ण_पदक हैं जोड़ दें तो.....
#michael_phelps की एक हुक्का पीते तश्वीर वायरल होती है...... #अमेरिकन_तैराकी_संघ उनपर तीन महीने के लिए बैन लगाता है..... और Michael देश से मांफी मांगता है
Michael Phelps शराब पीकर गाड़ी चलाता पकड़ा जाता है... क़ानून के अनुरूप उसे अदालती प्रक्रिया झेलनी पड़ती है और सज़ा भी होती है.... वो उस सज़ा को काटता भी है।
कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं..... बैन झेलता है वो अलग...
Michael अपने किए पर शर्मिंदा है.... देश का सर झुकाने पर मांफी मांग रहा है..... अपने चैंपियन होने की दुहाई नहीं दे रहा....
अब भारत आ जाते हैं....
साहब ओलंपिक में पहले राउंड में नाक रगड़ कर बाहर कर दी गयी...
या रो गाकर रेपचेज के जरिये ब्रोँज पाए। कथित चैंपियन मानते हैं के उन्ने साब देश के नाम पर चौबीस चाँद लगा दिए उन्हें
◆ क़ानून, देश, संविधान सबसे ऊपर माना जाये...
◆ उन्हें हक़ है कि खेल के नियम अपनी सुविधा से देश में तय करें.... ◆ उन्हें हक़ है कि जब देश की संसद में 90 देशों के प्रतिनिधि बैठ कर देश के प्रधानमंत्री का भाषण सुन रहे हों, वे वहाँ जाकर प्रदर्शन करें
और कोई रोके भी नहीं...
◆ अदालत, थाना, जाँच कुछ नहीं, वे जिसे कहें तुरंत फाँसी पर चढ़ाओ..
वर्ना देश को जब दिल करेगा ये बेज्जत करेंगे और कोई उन्हें रोकेगा भी नहीं....
पांच वर्ष से भाग रहा था मैं अपनी बेटी के लिए लड़का तलाशने। रस्ता चलते चाहें जो बता देता मुझे कि उस गांव में है एक लड़का बिटिया के लायक एक बार देख लो तो अगले दिन ही निकल पड़ता। कहीं लड़के में कुछ कमी दिखती तो कहीं घर परिवार मीठ मच्छी दारू वाला निकलता, कहीं मांग रख देते ज्यादा तो कहीं हमारी बिटिया के बराबर पढाई ही न मिलती।
इस साल मिल गया हमारी बच्ची के लिए घर और मुझे विस्वास भी बहुत था कि इस बार भोले बाबा जरूर हमारी मनोकामना पूरी कर देंगे। बहुत धूम धाम से कर रहे हैं अपनी गुड़िया को व्याह।😊
ये लो साहब कार्ड और आना जरूर बिटिया को अपना आशीर्वाद देने। आप आओगे हमारे आंगन में तो हमारे भाग्य खुल जाएंगे, बिटिया को आप जैसे बड़े लोगों को आशीर्वाद मिल जायगो (उन्होंने मुझे एक पीले रंग का कार्ड दिया मुस्कराते हुए बड़ी आशा भरी नजरों से हाँथ जोड़ते हुए, जिसपर न लिफ़ाफ़ा था और न कोई धागा, क़ीमत यही कोई 3 या 4 रुपए रही होगी )
पूरे 100 लोगों को कार्ड बांटे हैं साहब, अगर सब जने आ जाएंगे तो बहुत अछो लगेगो। और हां आप सबके लय रुकन के लय खटिया और पंखा अलग से व्यवस्था कर रहे हैं। चार पंखा बरायत के लय और चार पंखा हमारी तरफ के रिश्तेदारों के लय लगवाए रहे हैं, हवा ही हवा हो जाएगी😊। पूरी रात जननेटर चलबाउंगो। ( वो पिता कार्ड बांटते हुए बहुत खुश था, जो कल अपनी बेटी के बिना घर में अकेला सोएगा, जिसको दवाई गोली देने वाली गुड़िया चली जाएगी)
अच्छा हां, भाई साहब सुनो, हमने लड़की के लय एक नथनी एक लर एक मंगलसूत्र पायलें सब तरह के वर्तन पंखा सिंगल बेड सिंगारदानी और एक बड़ो बक्शा कर दओ है। मतलब अपनी तरफ से सब कुछ कर दओ है कपड़ा लित्ता के अलावा, कोई कमी नाय राखी। बस बिटिया दुखी नाय रहाय बस। अच्छा सुनो साहब आना जरूर, हमारी बालकी की किस्मत खुल जाएगी अगर आप हमारे द्वारे हमारी बिटिया को आशीर्वाद देने आ जाओगे साहब तो। ( हाँथ जोड़ते हमारा विस्वास लेते मुस्कराते बाबा को देख मैं सहम सा रहा था )
नीत्से ने गॉड का पुतला बनाकर
बर्लिन के चौराहे पर फूँक दिया।
बोला कि गॉड मर चुका है।
बताओ अब क्या करोगे ?
वास्तव में नीत्से ने गॉड को नहीं फूंका था। उसने नियतिवाद से उपजी झूठी उम्मीदों को फूंक दिया।
नीत्से ने मनुष्य के साहस, कर्मठता को चुनौती दी थी।
यही कारण है, नास्तिक होते हुये नीत्से को गीता बहुत प्रिय थी। वह व्यक्तित्व विकास में हर बाधा को हटा देना चाहता था।
इधर यही बात कुछ बड़े आश्वासन और
समाधान के साथ कही जा रही है।
दुख, पीड़ा, असफलता, जय, पराजय से मैं किसी को बचा नहीं सकता। इतना कह सकता हूँ, सभी परिस्थितियों में 'समत्व ' भाव रखो।
सूखे दुखे समेकृत्वा लाभा लाभो जया जैयो - गीता।
मैं सारथी बन सकता हूँ,
लेकिन युद्ध तुम्हें ही लड़ना है।
ततो युद्धाय यूजस्य।
नीत्से दार्शनिक होते हुये मन की पीड़ा नहीं पकड़ सके।
वह इसका समाधान नहीं दे सके, विजय या पराजय के बाद क्या होगा।
जगतगुरू जय पराजय के पार जाते हुये कहते हैं... समत्व हर परिस्थिति में श्रेष्ठ है। वह इसका समाधान करते हैं। व्यक्तित्व कितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो, भटक सकता है।
क्योंकि जीवन में जय, पराजय साथ साथ चलती है। कहीं हम हार रहे होते हैं, तो उसी समय कहीं जीत भी रहे होते हैं। यह तभी समझ सकते हैं जब समत्व भाव हो।।