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"जब माँ-बेटी एक साथ पढ़ें, तो सपनों की उड़ान भी दुगनी हो जाती है।''
मुंबई की रहने वाली 35 साल की स्वाती चन्ना-गजपकर और उनकी 15 साल की बेटी रूतिका ने इस साल एक साथ हाई स्कूल की परीक्षा पास की। स्वाती ने शिवाजी नाइट हाई स्कूल से पढ़ाई की, जबकि रूतिका ने ऑक्सिलियम कॉन्वेंट, वडाला से परीक्षा दी।
स्वाती बताती हैं ––
“2005 में पारिवारिक समस्याओं के कारण मुझे पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। कई सालों तक मन में यही कसक रही कि काश मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर पाती।”
लेकिन इस साल बेटी के साथ उन्होंने दोबारा कोशिश की और 51.80% अंक हासिल किए। वहीं रूतिका ने 81.40% अंक प्राप्त कर शानदार प्रदर्शन किया।
सबसे खास बात यह रही कि माँ-बेटी ने एक-दूसरे को पढ़ाई में मदद की।
यह कहानी है लुधियाना के 12वीं के छात्र जयवीर सिंह की, जो सेरेब्रल पाल्सी जैसी चुनौतीपूर्ण स्थिति के साथ जीते हुए भी हार नहीं माने।
जयवीर ने न केवल 77% अंकों के साथ मास मीडिया स्ट्रीम से 12वीं की परीक्षा पास की, बल्कि अपने पसंदीदा विषय मल्टीमीडिया में 90 अंक भी हासिल किए। उनका सपना है फिल्म डायरेक्टर और प्रोड्यूसर बनना — और इस दिशा में उन्होंने पहला कदम बड़ी हिम्मत और लगन से बढ़ाया है।
जयवीर पिछले 15 सालों से BCM आर्य मॉडल स्कूल, शास्त्री नगर, लुधियाना में पढ़ रहे हैं। शारीरिक सीमाओं के चलते वे सीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकते थे, लेकिन स्कूल ने उनकी पढ़ाई में कोई रुकावट न आए, इसके लिए उनका क्लासरूम ग्राउंड फ्लोर पर शिफ्ट कर दिया।
उनकी मां अरविंदर कौर बताती हैं कि स्कूल ने हर कदम पर जयवीर को शामिल करने और सहयोग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिता हरप्रीत सिंह, जो ऑटो पार्ट्स का बिजनेस करते हैं, कहते हैं कि जयवीर की सफलता इस बात का सबूत है कि सच्ची मेहनत, आत्मविश्वास और परिवार के सहयोग से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।
जयवीर का कहना है कि उनकी इस सफलता में माता-पिता, शिक्षकों के साथ-साथ उनके दोस्तों का भी अहम योगदान है।
"मेरे दोस्तों ने मुझे कभी अलग महसूस नहीं होने दिया। उनका साथ मेरे लिए सब कुछ है," वे कहते हैं।
सेरेब्रल पाल्सी एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जो शरीर की मूवमेंट, पॉश्चर और मांसपेशियों के समन्वय को प्रभावित करती है। यह एक जीवनभर चलने वाली स्थिति होती है, जिसके लिए निरंतर थेरेपी और समर्थन की आवश्यकता होती है। लेकिन जयवीर की कहानी यह साबित करती है कि अगर जज़्बा हो, तो कोई भी शारीरिक सीमा सपनों की उड़ान नहीं रोक सकती।
आज जयवीर न केवल एक विद्यार्थी के रूप में बल्कि एक प्रेरणा के रूप में हमारे सामने खड़े हैं — यह साबित करते हुए कि सपने देखना और उन्हें पूरा करना सभी का हक है। वह उन हजारों युवाओं के लिए मिसाल हैं जो किसी न किसी चुनौती से जूझ रहे हैं।