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"भीड़ को उदाहरण समझ नही आता हैं।"
कल मैंने 750 रु किलो की दर से घी लिया।
पिताजी अचंभित 🤔 हो कर बोले कि हमारे समय में तो इतने रुपए में 'ढ़ेर सारा' घी आ जाता।
मैंने कहा, पिताजी ढ़ेर सारा यानी कितना 🤔 ? उदाहरण देकर समझाइये।
मेरी बात सुन पिताजी शांत रह गए।
मैंने फिर पूछा, पिताजी ढ़ेर सारा मतलब कितना ?
पिताजी कुछ नहीं बोले, बस चुपचाप छत पर आ गए। ऊपर आकर वो शांति से बैठे, पानी पिया फिर बोले...
बेटा, 'ढ़ेर सारा' यानि बहुत ज्यादा...
उदाहरण देकर कहूँ तो हमारे समय में इतने रुपए में इतना घी आ जाता कि पूरा मोहल्ला एक एक कटोरी घी पी लेता ।
मैं बोला... पिताजी, ये उदाहरण तो आप नीचे भी दे सकते थे🤔 ?
बेटा, नीचे बहुत भीड़ थी और "भीड़ को उदाहरण समझ नही आता हैं।"
मैं बोला, पिताजी में कुछ समझा नही...😯
'भीड़ को उदाहरण' क्यों समझ में नही आता है क्या ?
पिताजी बोले...
एक बार मोदी जी ने कहा था कि "विदेशों में हमारे देश का बहुत सारा काला धन जमा है।"
भीड़ ने कहा कि... कितना ?
तो मोदी जी ने उदाहरण देकर समझाया, "इतना कि पूरा पैसा अगर वापस आ जाए तो सभी के हिस्से में 15-15 लाख आ जाए।"
बस सुनने वालों की भीड़ तभी से "15 लाख" मांग रही है ।
और ये उदाहरण अगर मैं नीचे देता तो हो सकता है कि कल कई लोग अपनी-अपनी कटोरी लेकर घी मांगने आ जाते।
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Mica Powder is a natural mineral powder that is commonly used as a pigment in paint to provide a metallic or shimmering effect. It is also used as a filler to add bulk to the paint and to improve its flow properties. Mica powder is a non-toxic and non-reactive ingredient that is safe for use in paint.
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जंगल का राजा कहे जाने वाला शेर शिकार के लिए किए गए अपने 75% आक्रमणों में असफल हो जाता है। मतलब वह सौ में 75 बार फेल होता है। अब आप इससे अपने जीवन की तुलना कीजिये, क्या हम 75% असफलता झेल पाते हैं? नहीं! इतनी असफलता तो मनुष्य को अवसाद में धकेल देती है। पर शेर अवसाद में नहीं जाता है। वह 25% मार्क्स के साथ ही जंगल का राजा है।
इसी घटना को दूसरे एंगल से देखिये! शेर अपने 75% आक्रमणों में असफल हो जाता है, इसका सीधा अर्थ है कि हिरण 75% हमलों में खुद को बचा ले जाते हैं। जंगल का सबसे मासूम पशु शेर जैसे बर्बर और प्रबल शत्रु को बार बार पराजित करता है और तभी लाखों वर्षों से जी रहा है। उसका शत्रु केवल शेर ही नहीं है, बल्कि बाघ, चीता, तेंदुआ आदि पशुओं के अलावा मनुष्य भी उसका शत्रु है और सब उसे मारना ही चाहते हैं। फिर भी वह बना हुआ है। कैसे?
वह जी रहा है, क्योंकि वह जीना चाहता है। हिरणों का झुंड रोज ही अपने सामने अपने कुछ साथियों को मार दिए जाते देखते हैं, पर हार नहीं मानते। वे दुख भरी कविताएं नहीं लिखते, हिरनवाद का रोना नहीं रोते। वे अवसाद में नहीं जाते, पर लड़ना नहीं छोड़ते। उन्हें पूरे जीवन में एक क्षण के लिए भी मनुष्य की तरह चादर तान कर सोने का सौभाग्य नहीं मिलता, बल्कि वे हर क्षण मृत्यु से संघर्ष करते हैं। यह संघर्ष ही उनकी रक्षा कर रहा है।
जंगल में स्वतंत्र जी रहे हर पशु का जीवन आज के मनुष्य से हजार गुना कठिन और संघर्षपूर्ण है। मनुष्य के सामने बस अधिक पैसा कमाने का संघर्ष है, पर शेष जातियां जीवित रहने का संघर्ष करती हैं। फिर भी वे मस्त जी रहे होते हैं, और हममें से अधिकांश अपनी स्थिति से असंतुष्ट हो कर रो रहे हैं।
अच्छी खासी स्थिति में जी रहा व्यक्ति अपने शानदार कमरे में बैठ कर वाट्सप पर अपनी जाति या सम्प्रदाय के लिए मैसेज छोड़ता है कि "हम खत्म हो जाएंगे"। और उसी की तरह का दूसरा सम्पन्न मनुष्य झट से इसे सच मान कर उसपर रोने वाली इमोजी लगा देता है। दोनों को लगता है कि यही संघर्ष है। वे समझ ही नहीं पाते कि यह संघर्ष नहीं, अवसाद है।
मनुष्य को अभी पशुओं से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।