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एक महानतम सैन्य जनरल की 363 वीं जयंती।
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सितंबर 1689 से 1696 वर्ष अर्थात सात वर्ष के भीतर मराठा सैन्य कमांडर संताजी घोरपड़े का बर्बर मुगलिया बादशाह औरंगजेब के साथ 11 बार घनघोर संघर्ष हुआ और इसमें से 9 बार औरंगजेब की सेना का जनाजा निकाला था सत्रहवीं सदी के सबसे महानतम सैन्य जनरल संता जी ने।
लेकिन इतिहास की पुस्तकें, मुख्यधारा के वामपंथी इतिहासकारों के इतिहास लेखन से एकदम गायब अध्याय !
ऐसा ही किया गया है !
कुत्सित, भ्रष्ट, विकृत और अर्द्धसत्यों का तम्बू खड़ा किए ये मक्कार इतिहास के इस सर्वाधिक रोमांचक व प्रेरक अध्याय को इग्नोर करके चलते हैं !
लेकिन सत्य तो तदयुगीन कृतियों में, ऐतिहासिक वृत्तांतों के भीतर मुकम्मल तस्वीर लेकर प्रस्तुत हुआ है।
आज 363 वीं जयंती है इस अतुलनीय जनरल की।
देखिए उस महासूरमा के कारनामे -----
1) सितंबर 1689 --- औरंगजेब के जनरल शेख निजाम को रौंदा।
2) 25 मई 1690 को सरजाखान उर्फ रुस्तम खान को सतारा के पास घसीट घसीट कर मारा।
3) 16 दिसंबर 1692 को औरंगजेब के जनरल अली मर्दान खान को पराजित करके जिंजी के दुर्ग में बंधक बना दिया।
4) 27 दिसंबर 1692 में मुगल सेनापति जुल्फिकार अली खान को जमकर रगड़ा संताजी ने और 5 वर्ष से जिन्जी दुर्ग की घेराबंदी करने वाले इस मुगलिया सेनापति को उसकी औकात दिखाई।
5) 5 जनवरी 1693 ईस्वी में देसूर स्थित औरंगजेब की विशाल सैन्यवाहिनी को 2000 चपल मराठा घुड़सवारों के साथ लैस होकर संताजी ने पूरी तरह ध्वस्त कर डाला था।
बादशाह किस्मत के संयोग और ईश्वरीय दुआ से उस रात अपने शिविर में मौजूद न होकर अपनी बेटी के तम्बूखाने में आराम फरमा रहा था, नहीं तो उसी दिन मुगलों का तबेला निकल जाता पूरे देश से !
6) 21 नवम्बर 1693 ईस्वी को मुगल जनरल हिम्मत खान को विक्रमहल्ली, कर्नाटक में बुरी तरह रौंदा संताजी घोरपड़े ने...
7) जुलाई 1695 में खटाव के पास घेरा डाले उछल रही मुगल सेना का कचमूर निकाला इस महान जनरल ने।
😎 20 नवम्बर 1695 ईस्वी को कर्नाटक में तैनात औरंगज़ेब के शक्तिशाली जनरल कासिमखान को चित्रदुर्ग के पास डाडेरी में घेरकर उसका सिर उतार लिया। मुगल राजकोष के 60 लाख रुपए संताजी ने हथियाए।
9) 20 जनवरी 1696 को कासिम खान के सहायतार्थ तैनात किए गए मुगल सैन्य कमांडर हिम्मत खान बहादुर को बसवपाटन(डाडेरी से 40 मील पश्चिम) के युद्ध में अभिभूत करते हुए जन्नत प्रदान किया।
1 26 फरवरी 1696 को मुगल जनरल हामिद-उद्दीन खान ने संता जी को हराने में सफलता पाई थी।
11) अप्रैल 1696 में जुल्फिकार खान ने अरनी, कर्नाटक के पास एक बार युद्ध मैदान में संताजी को हराने में सफलता प्राप्त की थी।
आजीवन हिन्दू पद पादशाही और मराठा स्वाधीनता आन्दोलन के अपराजेय स्वर को ऊंचाई देने वाले इस अप्रतिम मराठा सेनानी से मुगल कितना भय और खौफ खाते थे तथा उनके मन में एशिया के इस सर्वोच्च सैन्य जनरल के प्रति कितनी नफरत भरी थी, इसका प्रमाण मुगलों के दरबारी इतिहासकार खाफी खान के शब्दों में पढ़िए :
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जैसे एक चिंगारी लगा देती है पूरे जंगल में आग, ऐसे थे वीरो के वीर महाराण प्रताप,
नही भुलेगें रणभूमि में लहु बहाया,
प्यारी थी इतनी आजादी, रह जंगल में जीवन बिताया
रणक्षेत्र में पलट कर बाजी, हर दुश्मन को मार भगाया
दे राणा ने प्राणो की आहुति, इस माटी का कर्ज चुकाया
उन्ही की सौगात हमें मिली थी आजादी,
अब हमें यें फर्ज निभाना है,
भारत देश अमानत है उनकी, उनकी सोच को आगे बढाना है
मेरे देश के जवानो को महाराणा प्रताप बन जाना है
और अपने वतन को उसके, दुश्मनो से हर पल बचाना है.
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