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Garuda Purana Punishments : हम अपने जिंदगी में कैसे कर्म करते है उसके अनुसार हमें फल भी मिलता है. भले ही धरती में रहते हुए इंसान पाप करता है लेकिन मृत्यु के बाद उसे हर पाप का हिसाब ऊपर देना पड़ता है. गरुड़-पुराण (Garuda Purana) में 19 हजार से भी ज्यादा श्लोक है. और सभी श्लोक के अपने-अपने अर्थ है. जो पाप और पुण्य के बारे में मनुष्य को अवगत कराते है. ज्यादातर लोग Garuda Purana अपने करीबी और रिश्तेदार की मृत्यु के बाद सुनते है. जानकारी के मुताबिक ऐसा कहा जाता है की मृत्यु के बाद Garuda Purana सुनने से आत्मा को शांति मिलती है.

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भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किये गए युद्धों के बारे में पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि उन्होंने अधिकांश युद्ध तब किया, जब किसी ने उनपर आक्रमण किया था। उन्होंने कभी भी स्वयं आगे बढ़ कर किसी पर युद्ध थोपने का प्रयास नहीं किया था। शायद यही कारण है कि सभ्यता उन्हें शान्तिदूत के रूप में स्मरण रखती है।
पर रुकिये! एक युद्ध उन्होंने स्वयं आगे बढ़ कर किया था, और वह युद्ध था दैत्य नरकासुर के विरुद्ध। नरकासुर पर श्रीकृष्ण का कोप इतना अधिक था कि जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उसका वध किसी स्त्री के हाथों ही सम्भव है, तो वे स्वयं अपनी पत्नी देवी सत्यभामा को युद्धभूमि में ले गए, पर उसका वध कर के ही रुके।
जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? नरकासुर ने ऐसा क्या अपराध किया था कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सामान्य व्यवहार के विपरीत जा कर उसके राज्य पर आक्रमण किया? नरकासुर का अपराध यह था कि वह बालिकाओं पर अत्याचार करता था। उसने असँख्य कुमारियों का अपहरण किया था।
बल या छल से किसी कन्या की इच्छा के विपरीत उनका अपहरण करना और उनसे जबरन राक्षस विवाह करना एक ऐसा अपराध है जिसके लिए कभी क्षमा नहीं मिल सकती। ऐसे दुराचारियों का वध होना ही न्याय होता है। यही भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा है।
नरकासुर का भगवान श्रीकृष्ण से कोई सीधा बैर नहीं था। उसने उनका कुछ अहित नहीं किया था। पर उस अत्याचारी के अंत के लिए उन्होंने कोई कारण ढूंढने की आवश्यकता नहीं समझी। इसे उन्होंने अपना सामाजिक कर्तव्य माना और निकल पड़े।
अब प्रश्न यह है कि भगवान श्रीकृष्ण को पूजने वाला समाज उनसे निर्णय लेना कब सीखेगा? हाथ में कलावा और गले में रुद्राक्ष पहन, गलत पहचान के साथ हिन्दू बालिकाओं को छल से फँसाने निकले ये ट्रेंड आतंकी नरकासुर के ही कलियुगी स्वरूप हैं। कृष्ण के भक्त ऐसे आतंकियों को पत्थर मारना कब सीखेंगे?
लड़कियां यदि फँस जाती हैं तो जीवन भर घुट घुट कर मरती हैं। कुछ तो दो चार वर्ष तक बलात्कार की पीड़ा भोगने के बाद काट कर फेंक दी जाती हैं। और जो नहीं फँसती उन्हें राह चलते चाकुओं से गोद कर मार दिया जाता है। और दुर्भाग्य यह कि भारतीय लोकतंत्र के यशश्वी वोटर चाकू मारते देखते हैं और आगे बढ़ कर निकल जाते हैं। और वही चुपचाप निकल जाने वाले कायरों की फौज इधर उधर कहती मिल जाती है कि लड़की इसी लायक थी, अच्छा हुआ जो मर गयी...
एक लड़की जो केवल इसलिए मार दी जाती है कि वह किसी राक्षस के जाल में फँसना नहीं चाहती, क्या उसकी हत्या जायज है? अपनी कायरता छुपाने के लिए कितने अधम तर्क गढ़ेंगे लोग?
इस आतंक के विरुद्ध सोशल मीडिया में होने वाली चर्चा अभी पूरी नहीं है। यह सच है कि अब भी टीन एज की अधिकांश बच्चियों को इस आतंक के बारे में किसी ने बताया नहीं होता है। और यदि दो लोग बताने वाले होते हैं तो दर्जनों यह कहने वाले भी होते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होता, यह सब प्रोपगेंडा है। फिर वे कैसे बचेंगी?
साक्षी और साक्षी जैसी अन्य लड़कियों की हत्या पर हल्ला होना ही चाहिये। तबतक होना चाहिये, जबतक हर लड़की यह जान न जाय कि उसकी ओर बढ़ने वाला हर विधर्मी नरकासुर ही है। तभी हल निकलेगा। इस शहरी हो चुके समाज से श्रीकृष्ण की तरह आक्रमण की आशा तो नहीं ही है मुझे...

Sarvesh Kumar Tiwari जी 🙏

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नवाबकाल
1775 में अवध के चौथे नवाब असिफुद्दोला या अशफ - उद - दुलाह ने अवध की राजधानी को फ़ैज़ाबाद से लखनऊ स्थानांतरित किया था। वास्तुकला की दृष्टि से अवध के नवाबों का इस शहर में काफी योगदान है, इसके अलावा उस समय के लखनऊ की मुग़ल चित्रकारी भी आज बहुत से संग्रहालय में सुरक्षित हैं। भवनों के स्तर पर बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, तथा रूमी दरवाज़ा मुग़ल वास्तुकला का जीता जागता उदाहरण है। हालाँकि आधुनिक प्रशासन की उपेक्षा से इन महत्त्वपूर्ण विरासतो का खंडहरों में तब्दील होने का खतरा उपस्थित हो गया है।

प्राचीन अवध राज्य का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में 1857 के सिपाही विद्रोह के फलस्वरुप हुआ था। यह शहर भारत के इस पहले व्यवस्थित स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सबसे पहले जीते गये कुछ शहरों में से था। ब्रिटिश शासकों को यह शहर अपने कब्ज़े में लेने के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ी। लखनऊ का "शहीद स्मारक" आज भी हमें उन क्रांतिकारियों की याद ताज़ा कराता है।

लखनऊ के आधुनिक वास्तुकारी में लखनऊ विधानसभा और चारबाग़ स्थित लखनऊ रेलवे स्टेशन का नाम लिया जा सकता है। विश्व के सबसे पुराने आधुनिक स्कूलों में से एक ला मार्टीनियर कॉलेज भी इस शहर में मौजूद है जिसकी स्थापना ब्रिटिश शासक क्लाउड मार्टिन की याद में की गयी थी।

अहमद शाह अब्दाली के दिल्ली पर हमले के बाद शायर मीर तकी "मीर" अवध के चौथे नवाब अशफ - उद - दुलाह या असफ़ुद्दौला के दरबार में लखनऊ चले आये थे और अपनी जिन्दगी के बाकी दिन उन्होने यहीं गुजारे थे और 20 सितम्बर 1810 को यहीं उनका निधन हुआ।

सन १९०२ में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूपी कहा गया। सन १९२० में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना रहा और् लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक् न्यायपीठ स्थापित की गयी। स्वतन्त्रता के बाद १२ जनवरी सन १९५० में इस क्षेत्र का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्य मन्त्री बने। अक्टूबर १९६३ में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश एवम भारत की प्रथम महिला मुख्य मन्त्री बनी।

लखनऊ के सांसद श्री अटल बिहारी वाजपेयी दो बार, मई 16, 1996 से June 1, 1996 तक और फिर मार्च 19, 1998 से मई 22, 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं।

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