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साक्षी की जीत सूचक है इस बात की कि कोई चुनाव जीतने के लिए सिर्फ महिला आरक्षण की आवश्यकता नहीं है, जो महिलाएं कहती हैं जब सीट आरक्षित होगी मैं तभी चुनाव लडूंगी उनके पूर्वाग्रह को हमारी छोटी बहन साक्षी तिवारी ने तोड़ा है, ऋषिकेश पीजी कॉलेज जिसने इस उत्तराखंड को महिला अध्यक्ष दी (शायद Co Ed महाविद्यालय में अकेली) अध्यक्ष चुनाव लडना और जीतना अपने आप में मिशाल है अन्य छोटे भाई बहनों के लिए। Gender assessment, लैंगिक अनुपात, महिलाओं का राजनीति में प्रतिभाग, महिला विधेयक जैसे चम चमाते सर्वनाम आज साहित्य अमृत तो लगते है पर मार्किट में परिवारों में समाज में कहीं खो से जाते हैं, उसी साहित्या को आज बल देने का कार्य साक्षी की जीत ने किया है। ऋतिक पाठक और अकाश उनियाल जैसे तेज तर्रार युवा इस चुनाव को हारे तो हैं पर निराश न हों, राजनीति में कुछ भी अंतिम नहीं होता है। NSUI को जहां इस जीत से सीख लेनी चाइए कि आयातित प्रत्याशीयो के भरोसे ये चुनाव तो जीत गए परंतु बहुत लंबा ऐसा नहीं चल सकता, वहीं अखिल भारतीय परिषद को भी अपने नेताओं को कम और जमीनी रूप से छात्रों के बीच ज्यादा सक्रीय होने की आवश्यकता है, कुछ बदलाव गुरु द्रोणाचार्य और गुरु कृपाचार्य के स्तर पर चुनाव लड़ाने वाले #भाईजी लोगों को भी करने होंगे, बहर-हाल NSUI को अच्छे प्रबंधन और अच्छी नेटवर्किंग के लिए बधाई बहुत बहुत।

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Merry Christmas and happy holidays from my family to yours. We are missing Don and Jim who got stuck leaving Vancouver and Dad who is watching from above. Enjoy the time together!

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आपके पीजे बर्गर सब फेल है
मोठ बाजरे की खिचड़ी और दही का लगावन !
जय किसान ..

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Amazing work very nice
More Art here: https://worldfuncool.com/suggestion/12/23/7158/

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Beautiful ❤️ ❤️

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अपने आख़िरी दिनों में औरंगज़ेब की निगाहें केवल पीछे मुड़कर ही नहीं देख रही थीं, बल्कि उनकी ज़द में आने वाला कल भी था। लेकिन वहां उन्हें जो भी दिखाई दे रहा था, वो उन्हें नापसंद था।
औरंगज़ेब अपनी हुकूमत के आने वाले कल को लेकर ख़ौफ़ज़दा थे और इस ख़ौफ़ की अच्छी-खासी वजहें भी थीं उन के पास। मगर सबसे बड़ी वजह थी सामने खड़ी वे तमाम माली और इंतज़ामी मुश्किलें, जिन्होंने मुग़ल हुकूमत को चारों ओर से घेर रखा था और जिनसे पार ले जाने वाला कोई लायक़ शख़्स औरंगज़ेब को दिखाई नहीं दे रहा था।
मौत के वक़्त औरंगज़ेब के तीन बेटे ज़िंदा थे, उनके दो बेटे उनसे पहले ही चल बसे थे, पर उनमें से एक भी बादशाही मिट्टी का न था।
मिसाल के तौर पर अठारहवीं सदी की शुरुआत में लिखे एक ख़त में औरंगजेब ने अपने दूसरे बेटे मुअज़्ज़म को कांधार फ़तह करने में नाकाम रहने के लिए। न केवल जमकर फटकार लगाई, बल्कि इतनी कड़वी बात कहने से भी गुरेज नहीं किया कि 'नाकारा बेटे से तो बेटी का बाप होना ही अच्छा है.' अपने इस ख़त का अंत भी उन्होंने इस चुभते सवाल के साथ किया कि -
'तुम इस दुनिया में अपने दुश्मनों को और उस दुनिया में पाक परवरदिगार को क्या मुंह दिखाओगे?'
औरंगज़ेब यह नहीं समझ पा रहे थे कि वह अपने भीतर दरअसल एक जवाबदेही का वज़न महसूस कर रहे है, क्योंकि हुकूमत की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार न होने की वजह से उनके बेटे मुग़लिया तख़्त पर काबिज़ होने के क़ाबिल न थे।

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Yograj Singh 🗣

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Discoveriпg the aпcieпt “sittiпg mυmmy with a lotυs positioп” is still alive, makiпg everyoпe afraid to see it
Rare is the day that Moпgolia wades iпto the iпterпatioпal realm. These days, despite the пatioп’s sweepiпg size, its popυlatioп has shriveled to less thaп 3 millioп. Bυt every пow aпd theп, somethiпg remarkable rises oυt of its storied past — like a Geпghis Khaп fiпd — to grab atteпtioп that has loпg elυded it.

Today is oпe of those days.

Moпgoliaп scieпtists, accordiпg to reports iп the Siberiaп Times aпd local Moпgol media, are iпvestigatiпg the remaiпs of what researchers describe as the 200-year-old corpse of a moпk who was foυпd frozeп — yes — iп lotυs positioп. The moпk “is sittiпg iп the lotυs positioп vajra, the left haпd is opeпed, aпd the right haпd symbolizes the preachiпg Sυtra,” Gaпhυgiyп Pυrevbata, a professor at the Moпgoliaп Iпsтιтυte of Bυddhist Αrt at Ulaaпbaatar Bυddhist Uпiversity, told the Siberiaп Times.

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