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“5 फरवरी हिंदू कोड़ बिल दिवस '
हिंदू कोड़ बिल- ब्राह्मणवाद के चंगुल से महिलाओं की मुक्ति का बिल
भारत की महिलाओं को डॉ. अम्बेडकर के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए
डॉ. आंबेडकर ने हिंदू कोड़ बिल (5 फरवरी 1951) के माध्यम से महिलाओं की मुक्ति और समानता का रास्ता खोलने की कोशिश किया था। उन्होंने ब्राह्मणवादी विवाह पद्धति को पूरी तरह से तोड़ देने का कानूनी प्रावधान प्रस्तुत किया। इसके तहत उन्होंने यह प्रस्ताव किया था कि कोई भी बालिग लड़का-लड़की बिना अभिवावकों की अनुमति के आपसी सहमति से विवाह कर सकता है। इस बिल में लड़का-लड़की दोनों को समान माना गया था। इस बिल का मानना था कि विवाह कोई जन्म भर का बंधन नहीं है, तलाक लेकर पति-पत्नी एक दूसरे से अलग हो सकते हैं। विवाह में जाति की कोई भूमिका नहीं होगी। कोई किसी भी जाति के लड़के या लड़की से शादी कर सकता है। शादी में जाति या अभिवावकों की अनुमति की कोई भूमिका नहीं होगी। शादी पूरी तरह से दो लोगों के बीच का निजी मामला है। इस बिल में डॉ. आंबेडकर ने लड़कियों को सम्पत्ति में भी अधिकार दिया था।
इस बिल को विरोध मे तत्कालिन राष्ट्रपति राजेंन्द्र प्रसाद, सरदार बल्लभभाई पटेल, संघ परिवार और उसके संगठन सभी एकजुट हो गए और कहने लेकिन इससे तो हिंदुओं की सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था नष्ट हो जायेगी, हिंदू संस्कृति का विनाश हो जायेगा। नेहरू भी पीछे हट गए।
आखिर आंबेडकर ने निराश होकर विधि मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
आंबेडकर का मानना है कि हिंदू महिलाओं की दासता, दोयम दर्जे की स्थिति और गरिमाहीन अपमानजनक जीवन के लिए ब्राह्मणवाद जिम्मेवार है।
महिलाओं के प्रति हिंदुओं के नजरिये का सबसे गहन और व्यापक अध्ययन डॉ. आंबेडकर ने किया है। 24 वर्ष की उम्र में 1916 में अपना पहला निबंध ‘ भारत में जातियां : उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास’ ( कॉस्ट इन इंडिया: देयर मैकेनिज्म, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट) शीर्षक से कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया था। इस निबंध में उन्होंने यह स्थापित किया था कि जाति को बनाये रखने की अनिवार्य शर्त यह है कि स्त्रियों की यौनिकता पर पूर्ण नियंत्रण कायम किया जाय। इसके लिए जरूरी था कि स्त्रियों को पूरी तरह पुरूषों की अधीनता में रखा जाय। इस निबंध में आबेडकर ने लिखा है कि सजातीय विवाह की व्यवस्था के बिना जाति की रक्षा नहीं की जा सकती है, इसीलिए जाति से बाहर विवाह पर कठोर प्रतिबंध लगाया गया। विशेषकर प्रतिलोम विवाह के संदर्भ में।

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गुलाब को लेकर चाहत उन दिनों कुछ अलग सी थी। चाहें कितना भी ना नुकुर करें पर उस दिन कॉलेज जाने वाली हर लड़की का दिल अलग सा धड़कता था।
लड़को के हाथ मे थामें उन गुलाबों को कोई लड़की मुस्कराते हुए थाम ले, इस बात का अलग ही वट हुआ करता था।
न यह कोई इकरार था और न ही कोई प्रणय निवेदन...बस पसंदीदा लड़की को इस बात का एहसास दिलाना होता था, कि वह कितनी खास है!
उन दिनों ऐसे ही किसी दिन कोई न जाने क्या सोच कर एक लड़की के लिए गुलाब का फूल ले गया। लड़की को न तो उस गुलाब और न ही उसके एहसासों की संजीदगी का अंदाज़ा था।
अपने दोस्तों के सामने खड़े होकर उसने बहुत हिम्मत से वो गुलाब उस लड़की को पकड़ाया था।
उसने गुलाब को देखा और फिर उस लड़के को। शायद पहली बार इतने करीब और गौर से देखा था। गहरी आँखों वाले उस लड़के के घुंघराले बालों की लटें उसके चेहरे पर आ रही थी, तो बहुत मासूम लगा था उसे। माथे पर पसीने की बूंदे लड़के की घबराहट को बयां कर रही थी...!
पहले उसे यह सब बातें बहुत ही फिल्मी लगती। उससे पहले हर गुलाब को उसने यूँही थाम कर सहेलियों के सामने अपने हाथ मे बढ़ते गुलाबों की गिनती को गर्व से बताया था।
पर उस समय उसे उस चेहरे को देखकर न जाने क्या हुआ? सारे दोस्तों की उस पर जमी निगाहों से झुंझलाकर उसने वो गुलाब उसके हाथों से खींचकर उसकी पत्ती पत्ती नोचकर फेंक दी, और बिना कुछ कहे चली गई।
सुना था कि उस लड़के ने घुटने के बल बैठकर एक एक पत्ती चुनकर उसे अपने हाथ की किताब में रख दिया था। उनकी महक ने जैसे पूरे वातावरण को अजीब से सन्नाटे में भर दिया था।
साल बाद लायब्रेरी में उस लड़की की पसंदीदा किताब के बीच मे उसे गुलाब के कुछ सूखे पत्ते मिले थे। शायद उन्हें यकीन था कि एक न एक बार यह किताब उसके द्वारा जरूर पढ़ी जाएगी, जिसके लिए वो गुलाब था।
जो सुर्ख गुलाब को अपना न सकी...सूखे पत्तों को सहेजे रखती है।

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जिन्होंने रामायण को हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में काल्पनिक साबित कर दिया तथा राम को ही हरा दिया और साबित कर दिया के राम -रावण युद्ध हुआ ही नहीं है; ऐसे महान क्रांतिकारी ललाई सिंह यादव के निर्वाण दिवस पर शत शत नमन 🙏🏻🙏🏻💐

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पुण्य क्या है?
आप कहेंगे भगवान का नाम लेना। गंगा नहाना। माता-पिता की सेवा करना। गरीब की मदद करना। लाचार की सहायता करना। भूखे को भोजन कराना आदि।
लेकिन तुलसीदास के मुताबिक़ -
पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा॥
सानुकूल तेहि पर मुनि देवा। जो तजि कपटु करइ द्विज सेवा॥
अर्थात्
जगत में पुण्य एक ही है, (उसके समान) दूसरा नहीं। वह है- मन, कर्म और वचन से ब्राह्मणों के चरणों की पूजा करना। जो कपट का त्याग करके ब्राह्मणों की सेवा करता है, उस पर मुनि और देवता प्रसन्न रहते हैं॥
(उत्तरकांड: 7.45)
तुलसीदास की नीचता ये है कि उन्होंने ये बात राम के मुँह से कहलवाई है ताकि भोली-भाली जनता सवाल न करे। तुलसीदास ने हिंदू समाज को खंड खंड करने में बड़ी भूमिका निभाई है और फिर ये किताब उन्होंने अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल को भेंट कर दी।

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भारत रत्न से अलंकृत, विद्वान, शिक्षाविद् एवं भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन। उन्होंने शिक्षा जगत में अग्रणी रूप से योगदान दिया। बिहार के राज्यपाल के रूप में भी उन्होंने अपनी सेवा दी। देश के निर्माण में उनका अद्वितिय योगदान रहा है।
#zakirhusain

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