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अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता
और भारत में सिर्फ एक भड़वे ने पूरा का पूरा सिस्टम तोड़ दिया ।
देश में सुप्रीम कोर्ट के एक चीफ जस्टिस हुए भूपिंदर नाथ किरपाल (बी. एन. किरपाल) भारत के 31वें मुख्य न्यायाधीश थे, जो 6 मई 2002 से 7 नवंबर 2002 को सेवानिवृत्ति हुए थे।
इन्ही जज साहब के घर पैदा हुआ एक नपुंसक बेटा सौरभ किरपाल उसके 2 भाई बहन भी हैं।
सौरभ कृपाल की पूरी शिक्षा विदेश से हुई और विदेश में रहते हुए इसके समलैंगिक संबंध एक विदेशी नागरिक से बन गए जो कि पिछले 20 सालों से अपने पार्टनर निकोलस जर्मेन बच्चन के साथ रिलेशनशिप में हैं। निकोलस एक यूरोपीय हैं और नई दिल्ली में स्विस फेडरल डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेन अफेयर्स में काम करता हैं यानि कि एक जासूस है। सौरभ कृपाल इस व्यक्ति को अपना पति और खुदको उसकी पत्नी मानता है।
यहां तक तो सब ठीक था कोई दिक्कत नहीं थी किसी को लेकिन जज साहब के इस नपुंसक बेटे ने जिद पकड़ ली कि मुझे भी जज बनना है और इसकी जिद के पीछे हैं वह विदेशी ताकतें जो हमारे कोर्ट और सिस्टम में घुसकर अपनी मनमर्जी से इस देश को चलाना चाहते हैं।
अब आप समझ सकते हैं कि सौरभ कृपाल असल में क्या बला है यही वह आदमी है जिसने भारत से धारा 377 को खत्म करवाया आपने एक NGO का नाम सुना होगा नाज फाउंडेशन इसी ngo ने धारा 377 खत्म करवाई थी।
अब आप बड़ी आसानी से समझ सकते हैं कि किस प्रकार पहले धारा 377 खत्म करवाएगी अब समलैंगिक विवाह को वैध कराने के लिए भी नाज फाउंडेशन एंड अदर ग्रुप सुप्रीम कोर्ट के जजों की एक गैंग है जिसे हम कॉलेजियम सिस्टम कहते है लिबरल, वामी,प्रोफेसर वकील और फेमनिस्ट महिलाएं भी हैं यह सब अब सौरभ किरपाल को जज बनाने पर भयकर जोर से अड़े हुए हैं
अब आप सोचेंगे कि अड़े क्यों हैं तो इसका कारण है क्यों की सरकार अब तक इस सौरव कृपाल की फाइल जो कॉलेजियम सिस्टम जज बनाने के लिए भेजता है वह केंद्र सरकार 4 बार वापस कर चुकी है। और सुप्रीम कोर्ट का जो जज नियुक्त करने का कॉलेजियम सिस्टम है वह भी जिद पर अड़ा है और बार-बार सौरभ कृपाल की फाइल को केंद्र के पास भेजता है कि आप उनको ही जज बनाने की सहमति दो केंद्र सरकार हर बार कहती है कि आप हर बार वही नाम रिपीट क्यों करते हो क्या भारत में इन लोगों के अलावा कोई भी जज बनने के लायक नहीं है और अंत में भारत सरकार ने लिख कर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम को बताया कि आप जिस सौरभ कृपाल नाम के व्यक्ति को जज बनाने पर अड़े हुए हो उसके खिलाफ भारत की गुप्तचर एजेंसियों ने जो गुप्त रिपोर्ट दी है उसमें स्पष्ट लिखा है कि यह व्यक्ति को अगर जज बनाया तो भारत के लिए बहुत खतरनाक साबित होगा क्योंकि इस व्यक्ति के संबंध एक ऐसे विदेशी नागरिक से हैं जो अपने देश की गुप्तचर एजेंसी के लिए काम करता है
और सरकार ने कहा है की हम ऐसे व्यक्ति को भारत का जज बनाने की अनुमति नहीं दे सकते ।
और इसी जवाब के साथ केंद्र सरकार ने वह रिपोर्ट भी गोपनीय दस्तावेज के रूप में सुप्रीम कोर्ट को सौप दी जो भारत की गुप्तचर एजेंसी ने सौरभ कृपाल के बारे में बहुत मेहनत से बनाई थी जिसमें उन सभी अधिकारी कर्मचारियों के नाम भी थे जिन्होंने वह गुप्त रिपोर्ट केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के लिए दी थी। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने वह रिपोर्ट पढ़ी और केंद्र सरकार ने भी उसको जवाब के रूप में पेश किया तो सुप्रीम कोर्ट ने और कॉलेजियम सिस्टम ने अपने अहंकार मैं आकर उस गोपनीय दस्तावेज में भारत के जो गुप्तचर अधिकारी और कर्मचारियों के नाम थे वह नाम पब्लिक डोमेन में डाल दीये!
उस गुप्त रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में डालने के पीछे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम की जो मनसा और उद्देश था मैं यह था कि भारत की गुप्तचर एजेंसियों के सभी अधिकारी और कर्मचारी चिंतित हो सके और साथ ही सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ किसी भी प्रकार की रिपोर्ट भविष्य में तैयार न कर सके।
यहां आप इस प्रकार समझ सकते हैं। की अगर आप या कोई भी सरकार अपनी गुप्तचर एजेंसियों के लोगों के नाम ओपन कर देंगे तो पहली बात तो वह गुप्तचर नहीं बचे, दूसरी बात उनकी जान को खतरा तीसरी बात अभी तक उन्होंने जो भी गुप्त रूप से कार्य किये होगे वह सब ओपन और जब बहुत से लोगों को यह पता चलेगा कि यह ही व्यक्ति है जो भारत सरकार का जासूस है तो उन्हें कोई भी दुश्मन देश या व्यक्ति उनको जान से निपटा देगा। ऐसे में कौन व्यक्ति होगा जो अपनी जान पर खेलकर भारत के लिए गुप्तचरी करेगा जासूस बनेगा।
सुप्रीम कोर्ट की ऐसी हरकत को कोड़ करते हुए भारत के कानून मंत्री किरण रिजूजी ने कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए एक मुहिम चला रखी है और उसी समय कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट को चेतावनी भी दी कि अगर आपने दोबारा किसी भी प्रकार की गुप्त रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में डाला तो यह ठीक नहीं होगा।
बस यहीं से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम ने अपने रुख में परिवर्तन लाते हुए आगे बढ़ने की जो निती थी वह बदल दी और जो ग्रुप और लोग धारा 377 खत्म करवाने में सफल हुय थे वही ग्रुप और लोगों को फिर से एक्टिव कर दिया गया की आप लोग सब फिर से मिलकर समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता दिलाने के लिए लग जाओ।
अब आप कहोगे की इस सब से सौरभ कृपाल जज कैसे बन जाएगा भाई यही पर सुप्रीम कोर्ट के जो मीलोर्ड साहब हैं उन्होंने पूरा ज्ञान लगा लिया कि पहले समलैंगिक संबंधों को कानूनी रूप से वैधता देंगे हम! फिर सौरभ कृपाल और विदेशी पुरुष की दोनों की शादी हो जाएगी तो कानूनी रूप से सौरभ कृपाल उस विदेशी व्यक्ति की पत्नी कहलाएगा और भारत का नागरिक तो है ही वह अब आप और भारत की सरकार उसको जज बनने से नहीं रोक सकते क्योंकि ऐसा कई मामलों में और हमारे कानून में भी संविधान में भी है कि पति या पत्नी दोनों में से कोई भी विदेशी हो तो उसे भारत में नागरिकता देने में सरकार मना नहीं कर सकती।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता
और भारत में सिर्फ एक भड़वे ने पूरा का पूरा सिस्टम तोड़ दिया ।
देश में सुप्रीम कोर्ट के एक चीफ जस्टिस हुए भूपिंदर नाथ किरपाल (बी. एन. किरपाल) भारत के 31वें मुख्य न्यायाधीश थे, जो 6 मई 2002 से 7 नवंबर 2002 को सेवानिवृत्ति हुए थे।
इन्ही जज साहब के घर पैदा हुआ एक नपुंसक बेटा सौरभ किरपाल उसके 2 भाई बहन भी हैं।
सौरभ कृपाल की पूरी शिक्षा विदेश से हुई और विदेश में रहते हुए इसके समलैंगिक संबंध एक विदेशी नागरिक से बन गए जो कि पिछले 20 सालों से अपने पार्टनर निकोलस जर्मेन बच्चन के साथ रिलेशनशिप में हैं। निकोलस एक यूरोपीय हैं और नई दिल्ली में स्विस फेडरल डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेन अफेयर्स में काम करता हैं यानि कि एक जासूस है। सौरभ कृपाल इस व्यक्ति को अपना पति और खुदको उसकी पत्नी मानता है।
यहां तक तो सब ठीक था कोई दिक्कत नहीं थी किसी को लेकिन जज साहब के इस नपुंसक बेटे ने जिद पकड़ ली कि मुझे भी जज बनना है और इसकी जिद के पीछे हैं वह विदेशी ताकतें जो हमारे कोर्ट और सिस्टम में घुसकर अपनी मनमर्जी से इस देश को चलाना चाहते हैं।
अब आप समझ सकते हैं कि सौरभ कृपाल असल में क्या बला है यही वह आदमी है जिसने भारत से धारा 377 को खत्म करवाया आपने एक NGO का नाम सुना होगा नाज फाउंडेशन इसी ngo ने धारा 377 खत्म करवाई थी।
अब आप बड़ी आसानी से समझ सकते हैं कि किस प्रकार पहले धारा 377 खत्म करवाएगी अब समलैंगिक विवाह को वैध कराने के लिए भी नाज फाउंडेशन एंड अदर ग्रुप सुप्रीम कोर्ट के जजों की एक गैंग है जिसे हम कॉलेजियम सिस्टम कहते है लिबरल, वामी,प्रोफेसर वकील और फेमनिस्ट महिलाएं भी हैं यह सब अब सौरभ किरपाल को जज बनाने पर भयकर जोर से अड़े हुए हैं
अब आप सोचेंगे कि अड़े क्यों हैं तो इसका कारण है क्यों की सरकार अब तक इस सौरव कृपाल की फाइल जो कॉलेजियम सिस्टम जज बनाने के लिए भेजता है वह केंद्र सरकार 4 बार वापस कर चुकी है। और सुप्रीम कोर्ट का जो जज नियुक्त करने का कॉलेजियम सिस्टम है वह भी जिद पर अड़ा है और बार-बार सौरभ कृपाल की फाइल को केंद्र के पास भेजता है कि आप उनको ही जज बनाने की सहमति दो केंद्र सरकार हर बार कहती है कि आप हर बार वही नाम रिपीट क्यों करते हो क्या भारत में इन लोगों के अलावा कोई भी जज बनने के लायक नहीं है और अंत में भारत सरकार ने लिख कर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम को बताया कि आप जिस सौरभ कृपाल नाम के व्यक्ति को जज बनाने पर अड़े हुए हो उसके खिलाफ भारत की गुप्तचर एजेंसियों ने जो गुप्त रिपोर्ट दी है उसमें स्पष्ट लिखा है कि यह व्यक्ति को अगर जज बनाया तो भारत के लिए बहुत खतरनाक साबित होगा क्योंकि इस व्यक्ति के संबंध एक ऐसे विदेशी नागरिक से हैं जो अपने देश की गुप्तचर एजेंसी के लिए काम करता है
और सरकार ने कहा है की हम ऐसे व्यक्ति को भारत का जज बनाने की अनुमति नहीं दे सकते ।
और इसी जवाब के साथ केंद्र सरकार ने वह रिपोर्ट भी गोपनीय दस्तावेज के रूप में सुप्रीम कोर्ट को सौप दी जो भारत की गुप्तचर एजेंसी ने सौरभ कृपाल के बारे में बहुत मेहनत से बनाई थी जिसमें उन सभी अधिकारी कर्मचारियों के नाम भी थे जिन्होंने वह गुप्त रिपोर्ट केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के लिए दी थी। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने वह रिपोर्ट पढ़ी और केंद्र सरकार ने भी उसको जवाब के रूप में पेश किया तो सुप्रीम कोर्ट ने और कॉलेजियम सिस्टम ने अपने अहंकार मैं आकर उस गोपनीय दस्तावेज में भारत के जो गुप्तचर अधिकारी और कर्मचारियों के नाम थे वह नाम पब्लिक डोमेन में डाल दीये!
उस गुप्त रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में डालने के पीछे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम की जो मनसा और उद्देश था मैं यह था कि भारत की गुप्तचर एजेंसियों के सभी अधिकारी और कर्मचारी चिंतित हो सके और साथ ही सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ किसी भी प्रकार की रिपोर्ट भविष्य में तैयार न कर सके।
यहां आप इस प्रकार समझ सकते हैं। की अगर आप या कोई भी सरकार अपनी गुप्तचर एजेंसियों के लोगों के नाम ओपन कर देंगे तो पहली बात तो वह गुप्तचर नहीं बचे, दूसरी बात उनकी जान को खतरा तीसरी बात अभी तक उन्होंने जो भी गुप्त रूप से कार्य किये होगे वह सब ओपन और जब बहुत से लोगों को यह पता चलेगा कि यह ही व्यक्ति है जो भारत सरकार का जासूस है तो उन्हें कोई भी दुश्मन देश या व्यक्ति उनको जान से निपटा देगा। ऐसे में कौन व्यक्ति होगा जो अपनी जान पर खेलकर भारत के लिए गुप्तचरी करेगा जासूस बनेगा।
सुप्रीम कोर्ट की ऐसी हरकत को कोड़ करते हुए भारत के कानून मंत्री किरण रिजूजी ने कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए एक मुहिम चला रखी है और उसी समय कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट को चेतावनी भी दी कि अगर आपने दोबारा किसी भी प्रकार की गुप्त रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में डाला तो यह ठीक नहीं होगा।
बस यहीं से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम ने अपने रुख में परिवर्तन लाते हुए आगे बढ़ने की जो निती थी वह बदल दी और जो ग्रुप और लोग धारा 377 खत्म करवाने में सफल हुय थे वही ग्रुप और लोगों को फिर से एक्टिव कर दिया गया की आप लोग सब फिर से मिलकर समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता दिलाने के लिए लग जाओ।
अब आप कहोगे की इस सब से सौरभ कृपाल जज कैसे बन जाएगा भाई यही पर सुप्रीम कोर्ट के जो मीलोर्ड साहब हैं उन्होंने पूरा ज्ञान लगा लिया कि पहले समलैंगिक संबंधों को कानूनी रूप से वैधता देंगे हम! फिर सौरभ कृपाल और विदेशी पुरुष की दोनों की शादी हो जाएगी तो कानूनी रूप से सौरभ कृपाल उस विदेशी व्यक्ति की पत्नी कहलाएगा और भारत का नागरिक तो है ही वह अब आप और भारत की सरकार उसको जज बनने से नहीं रोक सकते क्योंकि ऐसा कई मामलों में और हमारे कानून में भी संविधान में भी है कि पति या पत्नी दोनों में से कोई भी विदेशी हो तो उसे भारत में नागरिकता देने में सरकार मना नहीं कर सकती।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता
और भारत में सिर्फ एक भड़वे ने पूरा का पूरा सिस्टम तोड़ दिया ।
देश में सुप्रीम कोर्ट के एक चीफ जस्टिस हुए भूपिंदर नाथ किरपाल (बी. एन. किरपाल) भारत के 31वें मुख्य न्यायाधीश थे, जो 6 मई 2002 से 7 नवंबर 2002 को सेवानिवृत्ति हुए थे।
इन्ही जज साहब के घर पैदा हुआ एक नपुंसक बेटा सौरभ किरपाल उसके 2 भाई बहन भी हैं।
सौरभ कृपाल की पूरी शिक्षा विदेश से हुई और विदेश में रहते हुए इसके समलैंगिक संबंध एक विदेशी नागरिक से बन गए जो कि पिछले 20 सालों से अपने पार्टनर निकोलस जर्मेन बच्चन के साथ रिलेशनशिप में हैं। निकोलस एक यूरोपीय हैं और नई दिल्ली में स्विस फेडरल डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेन अफेयर्स में काम करता हैं यानि कि एक जासूस है। सौरभ कृपाल इस व्यक्ति को अपना पति और खुदको उसकी पत्नी मानता है।
यहां तक तो सब ठीक था कोई दिक्कत नहीं थी किसी को लेकिन जज साहब के इस नपुंसक बेटे ने जिद पकड़ ली कि मुझे भी जज बनना है और इसकी जिद के पीछे हैं वह विदेशी ताकतें जो हमारे कोर्ट और सिस्टम में घुसकर अपनी मनमर्जी से इस देश को चलाना चाहते हैं।
अब आप समझ सकते हैं कि सौरभ कृपाल असल में क्या बला है यही वह आदमी है जिसने भारत से धारा 377 को खत्म करवाया आपने एक NGO का नाम सुना होगा नाज फाउंडेशन इसी ngo ने धारा 377 खत्म करवाई थी।
अब आप बड़ी आसानी से समझ सकते हैं कि किस प्रकार पहले धारा 377 खत्म करवाएगी अब समलैंगिक विवाह को वैध कराने के लिए भी नाज फाउंडेशन एंड अदर ग्रुप सुप्रीम कोर्ट के जजों की एक गैंग है जिसे हम कॉलेजियम सिस्टम कहते है लिबरल, वामी,प्रोफेसर वकील और फेमनिस्ट महिलाएं भी हैं यह सब अब सौरभ किरपाल को जज बनाने पर भयकर जोर से अड़े हुए हैं
अब आप सोचेंगे कि अड़े क्यों हैं तो इसका कारण है क्यों की सरकार अब तक इस सौरव कृपाल की फाइल जो कॉलेजियम सिस्टम जज बनाने के लिए भेजता है वह केंद्र सरकार 4 बार वापस कर चुकी है। और सुप्रीम कोर्ट का जो जज नियुक्त करने का कॉलेजियम सिस्टम है वह भी जिद पर अड़ा है और बार-बार सौरभ कृपाल की फाइल को केंद्र के पास भेजता है कि आप उनको ही जज बनाने की सहमति दो केंद्र सरकार हर बार कहती है कि आप हर बार वही नाम रिपीट क्यों करते हो क्या भारत में इन लोगों के अलावा कोई भी जज बनने के लायक नहीं है और अंत में भारत सरकार ने लिख कर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम को बताया कि आप जिस सौरभ कृपाल नाम के व्यक्ति को जज बनाने पर अड़े हुए हो उसके खिलाफ भारत की गुप्तचर एजेंसियों ने जो गुप्त रिपोर्ट दी है उसमें स्पष्ट लिखा है कि यह व्यक्ति को अगर जज बनाया तो भारत के लिए बहुत खतरनाक साबित होगा क्योंकि इस व्यक्ति के संबंध एक ऐसे विदेशी नागरिक से हैं जो अपने देश की गुप्तचर एजेंसी के लिए काम करता है
और सरकार ने कहा है की हम ऐसे व्यक्ति को भारत का जज बनाने की अनुमति नहीं दे सकते ।
और इसी जवाब के साथ केंद्र सरकार ने वह रिपोर्ट भी गोपनीय दस्तावेज के रूप में सुप्रीम कोर्ट को सौप दी जो भारत की गुप्तचर एजेंसी ने सौरभ कृपाल के बारे में बहुत मेहनत से बनाई थी जिसमें उन सभी अधिकारी कर्मचारियों के नाम भी थे जिन्होंने वह गुप्त रिपोर्ट केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के लिए दी थी। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने वह रिपोर्ट पढ़ी और केंद्र सरकार ने भी उसको जवाब के रूप में पेश किया तो सुप्रीम कोर्ट ने और कॉलेजियम सिस्टम ने अपने अहंकार मैं आकर उस गोपनीय दस्तावेज में भारत के जो गुप्तचर अधिकारी और कर्मचारियों के नाम थे वह नाम पब्लिक डोमेन में डाल दीये!
उस गुप्त रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में डालने के पीछे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम की जो मनसा और उद्देश था मैं यह था कि भारत की गुप्तचर एजेंसियों के सभी अधिकारी और कर्मचारी चिंतित हो सके और साथ ही सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ किसी भी प्रकार की रिपोर्ट भविष्य में तैयार न कर सके।
यहां आप इस प्रकार समझ सकते हैं। की अगर आप या कोई भी सरकार अपनी गुप्तचर एजेंसियों के लोगों के नाम ओपन कर देंगे तो पहली बात तो वह गुप्तचर नहीं बचे, दूसरी बात उनकी जान को खतरा तीसरी बात अभी तक उन्होंने जो भी गुप्त रूप से कार्य किये होगे वह सब ओपन और जब बहुत से लोगों को यह पता चलेगा कि यह ही व्यक्ति है जो भारत सरकार का जासूस है तो उन्हें कोई भी दुश्मन देश या व्यक्ति उनको जान से निपटा देगा। ऐसे में कौन व्यक्ति होगा जो अपनी जान पर खेलकर भारत के लिए गुप्तचरी करेगा जासूस बनेगा।
सुप्रीम कोर्ट की ऐसी हरकत को कोड़ करते हुए भारत के कानून मंत्री किरण रिजूजी ने कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए एक मुहिम चला रखी है और उसी समय कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट को चेतावनी भी दी कि अगर आपने दोबारा किसी भी प्रकार की गुप्त रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में डाला तो यह ठीक नहीं होगा।
बस यहीं से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम ने अपने रुख में परिवर्तन लाते हुए आगे बढ़ने की जो निती थी वह बदल दी और जो ग्रुप और लोग धारा 377 खत्म करवाने में सफल हुय थे वही ग्रुप और लोगों को फिर से एक्टिव कर दिया गया की आप लोग सब फिर से मिलकर समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता दिलाने के लिए लग जाओ।
अब आप कहोगे की इस सब से सौरभ कृपाल जज कैसे बन जाएगा भाई यही पर सुप्रीम कोर्ट के जो मीलोर्ड साहब हैं उन्होंने पूरा ज्ञान लगा लिया कि पहले समलैंगिक संबंधों को कानूनी रूप से वैधता देंगे हम! फिर सौरभ कृपाल और विदेशी पुरुष की दोनों की शादी हो जाएगी तो कानूनी रूप से सौरभ कृपाल उस विदेशी व्यक्ति की पत्नी कहलाएगा और भारत का नागरिक तो है ही वह अब आप और भारत की सरकार उसको जज बनने से नहीं रोक सकते क्योंकि ऐसा कई मामलों में और हमारे कानून में भी संविधान में भी है कि पति या पत्नी दोनों में से कोई भी विदेशी हो तो उसे भारत में नागरिकता देने में सरकार मना नहीं कर सकती।