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दलित महिला खिलाड़ी पीटी उषा हमारा गौरव।

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कहाँ हो हिंदू ओबीसी?
अमेरिका में जातिवाद विरोधी इतना बड़ा आंदोलन चल रहा है। कैलिफ़ोर्निया में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों पार्टी इस मुद्दे पर एकजुट हो गई है। 26 अमेरिकी यूनिवर्सिटी में जातपात विरोधी नियम बन गए हैं। सिएटल शहर में जातिवाद विरोधी क़ानून बन गया है। कई शहर बाबा साहब जयंती पर इक्वैलिटी डे मना रहे हैं। यूएन में भारत सरकार ने इतना बड़ा समारोह कर दिया।
इन सबमें एससी हैं, एसटी हैं, सिख हैं, बौद्ध हैं, रविदासिया हैं, मुसलमान और जैन हैं।
कुछ सवर्ण हिंदू भी हैं। कुछ पक्ष में हैं। ज़्यादातर विपक्ष में हैं।
पर कोई है जो लापता है। न विरोध में है। न समर्थन में है। वह कहीं है ही नहीं।
वह हिंदू ओबीसी है।
अमेरिका में इस पार से उस पार घूम गया। एक दो छोड़कर, न कहीं कुशवाहा मिला, न यादव, न कुर्मी, न लोधी, न गुर्जर, न कुम्हार, न कलवार, न तेली, न चौरसिया। सभी ओबीसी जातियों के नाम गिन लीजिए। उत्तर भारत के हिंदू ओबीसी अमेरिका में कहीं दिखते ही नहीं हैं।
दरअसल अमीरी और तरक़्क़ी की तलाश में, साल में एक करोड़ से ऊपर वाली नौकरियाँ लेने विदेश गए लोगों में ये जातियाँ लगभग नदारद हैं। लगभग 80% सवर्ण जातियों के लोग हैं।
ऐसा क्यों है?
ये पिछड़ापन ऐतिहासिक है। धार्मिक आधार पर शिक्षा से दूर रखे जाने का नतीजा।
IIT और केंद्रीय संस्थानों में 27% ओबीसी आरक्षण 2011 में जाकर लागू हुआ। तब तक विदेश जाने की कई बसें छूट चुकी थीं।
शिक्षा में ओबीसी को पीछे रखा गया। नतीजे अब आ रहे हैं।
भरपायी आसान नहीं है। ओबीसी नेता भी बच्चे-बच्चियों को ठेकेदारी और नेतागीरी में लगाते रहे। बाबा साहब जैसा रोल मॉडल ओबीसी में नहीं है।
ओबीसी अमीरी की इस ग्लोबल टॉप रेस में आ ही नहीं पाया।
क्या है समाधान? आप बताएँ।

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