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दो घटनाएँ हुई हैं…दोनों को ध्यान से सुनिए.
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में यादव समाज के एक व्यक्ति को कथा सुनाने के अपराध में बेइज्जत किया गया और उसका सिर मूड़ दिया गया.
सज़ा देने वालों को कथा सुनाने का अपराध इतना बड़ा लगा कि उस व्यक्ति के ऊपर एक महिला के मूत्र का छिड़काव भी किया गया. ये दुष्कृत्य कथावाचन पर एकाधिकार समझने वाले लोगों ने किया.
दूसरी घटना ओडिशा की है जहाँ गंजाम जिले में गो-तस्करी के शक में दो दलित युवकों को बुरी तरह पीटा गया. उनका आधा सिर मुंडवाया गया. उन्हें घुटनों के बल रेंगने, घास खाने और नाली का पानी पीने के लिए मजबूर किया गया.
उत्तर प्रदेश और ओडिशा; इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है और दिल्ली में तो अपने सिंदूरलाल जी बैठे ही हुए हैं. ऐसे में अब सवाल ये है कि इस तरह की घटनाओं के लिए असली जिम्मेदार कौन है?
भाजपा का दलित और पिछड़ा विरोधी चरित्र, या उन राज्यों का ख़राब लॉ एंड ऑर्डर? क्योंकि ये पहली घटना नहीं है…ऐसी घटनाओं की लिस्ट बहुत लंबी है…मसलन कुछ समय पहले मध्य प्रदेश में, जहाँ भाजपा की ही सरकार है, भाजपा के एक नेता ने आदिवासी समाज के एक व्यक्ति के सिर पर पेशाब कर दिया था…और घटना के ख़िलाफ़ बोलने पर मेरे ऊपर FIR दर्ज़ की गई थी. खैर…
मुझे जानना है कि इस तरह की घटनाएँ भाजपा शासित राज्यों में इतनी अधिकता से कैसे हो जाती हैं? मुझे जानना है कि क्या किसी पिछड़े वर्ग के व्यक्ति द्वारा कथावाचन करना कोई अपराध है? अगर अपराध है तो उसके लिए भारतीय न्याय व्यवस्था में क्या प्रावधान है? कथावाचक के मान-मर्दन के लिए जिम्मेदार लोगों को सज़ा मिलने की कितनी संभावना है?
पहलगाम आतंकी हमला देश में हुआ पहला आतंकी हमला नहीं था…देश लंबे समय से आतंकवाद से लड़ रहा है…और हमने अपने हज़ारों नागरिक आतंकी हमलों में खोए हैं…
हर बार ये हमले पूरे देश के विरुद्ध माने गए…और मृतकों को देश का नागरिक माना जाता रहा…पर भाजपा सरकार की कृपा से ऐसा पहली बात हुआ जब पूरे देश ने मृतकों की सूची में हिंदू और मुसलमान नाम छाँटे…
…माहौल बनाया गया कि आतंकियों ने धर्म पूछकर मारा…एक पूरे समाज को आतंकवादी और उनका साथी बताने की कोशिश की गई…
…जबकि सच ये है कि सरकार अभी तक हमलावरों को पकड़ना तो दूर उनकी सही पहचान तक नहीं जुटा पाई है…और अब खबर आ रही है कि सरकार ने पहलगाम हमले के लिए जिम्मेदार आतंकियों के ग़लत स्केच जारी किए थे.
अब सवाल ये है कि जिस ग़लत जानकारी के आधार पर देश की एक बड़ी आबादी को अपमानित किया गया, उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा…और जो कष्ट पहुँचा है, उसकी भरपाई कैसे होगी?
एक सबसे जरूरी सवाल ये है कि आख़िर भारतीय जनता पार्टी किन लोगों की पार्टी है? सरकार चलाने वाले लोग कौन लोग हैं?
ये लोग दलितों को अपमानित करते हैं, पिछड़ों को अपमानित करते हैं, महिलाओं को अपमानित करते हैं, अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित और अपमानित करते हुए उनकी वफ़ादारी पर सवाल उठाते हैं…आख़िर ये कौन लोग हैं? ये किस हक़ से ऐसा करते हैं? और ये किन लोगों की पार्टी है?
क्या ये कहना ग़लत होगा कि भारतीय जनता पार्टी दरअसल देश के बहुसंख्यक सवर्ण समाज के पुरुषों के वर्चस्व वाली पार्टी है?
सच ये है कि भाजपा में मौजूद बाक़ी समाजों के प्रतिनिधि दरअसल प्रतिनिधि नहीं कठपुतलियाँ हैं, जो अपने समाज का हित करने का ढोंग करते हैं और उन्हें बरगलाते हैं…और अगर ऐसा नहीं है तो ऐसी घटनाओं पर भाजपा में मौजूद इन कठपुतलियों ने अब तक कोई व्यापक आंदोलन क्यों नहीं किया?
भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा अल्पसंख्यकों के लिए क्या कर रहा है?
सच ये है कि देश के लिए आतंकवाद से ज़्यादा ख़तरनाक जातंकवाद है…क्योंकि इसे फैलाने में बहुत सारे लोग शामिल हैं जिन्हें सरकार का मूक समर्थन मिला हुआ है.
एक बेहद अहम सवाल ये भी है कि गाय के नाम पर जिस तरह से देश भर में लिंचिंग की गई है, उससे गोपालन को बढ़ावा मिलेगा या लोग हतोत्साहित होंगे?
पहले गाय के नाम पर मुस्लिम समाज को निशाना बनाया जाता था, अब दलितों को भी टारगेट किया जा रहा है…मेरा विश्वास कीजिए…जो लोग ख़ुद को सुरक्षित समझ रहे हैं और ऐसी घटनाओं के प्रति तटस्थ हैं, वो भी दरअसल सुरक्षित नहीं हैं…भरोसा न हो तो कुछ दिन इंतज़ार कर लीजिए!
आज देश को आतंकवाद के साथ-साथ जातंकवाद से लड़ने की भी जरूरत है, जिसके लिए सबसे पहले इसकी जड़ पर प्रहार करना होगा.
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