Descobrir PostagensExplore conteúdo cativante e diversas perspectivas em nossa página Descobrir. Descubra novas ideias e participe de conversas significativas
क़ुतुबमीनार के सहन में मौजूद ये कब्र सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की है आज के दिन ही, 4 जनवरी 1316 ई. को दिल्ली में 50 साल की उम्र में उनकी वफ़ात हो गयी थी। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को हिंदुस्तान को मंगोल हमलावरों से बचाने के अलावा उनकी इन्तेजामि इस्लाहात, मेहसुलात और सल्तनत में कीमतों पर कंट्रोल समेत ढेरों काम के लिए याद किया जाता है।
जब सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने हुकूमत संभाली थी तब मंगलों ने दुनिया भर में अफरा-तफरी मचा रखी थी। ख़्वारज़्म से लेकर ईरान, इराक समेत बगदाद जैसे बड़े शहर को मंगोलो ने खाक में मिला दिया था। अब जब मंगोल हिंदुस्तान को रौंदते हुए मंगोलिया जाने की कोशिस कर रहे थे। तब अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी जहानत से उनकी कोशिशों को नाकाम बना दिया। और मंगोलों से हुयी एक झड़प के बाद 8000 मंगोलो के सर को कलम कर के दिल्ली में उस वक्त बन रहे सीरी फोर्ट के मीनारों में चुनवा दिया, और मंगोलो को तजाकिस्तान के रास्ते से होकर गुजरने के लिए मजबूर कर दिया।
इसके अलावा सुल्तान बनते ही अलाउद्दीन खिलजी ने सबसे पहले टैक्स सिस्टम को सुधारा उन्होंने सिस्टम से बिचौलियों को हटाकर सीधे आम आदमी से जोड़ा बिचौलियों के हटने किसानों और गरीबो को बहुत फायदा हुआ। इस टैक्स सिस्टम को शेर शाह सूरी से लेकर मुग़लों तक ने इस्तेमाल किया।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की किताब "The Cambridge Economic History of India" में इस बात का ज़िक़्र है, की ख़िलजी का टैक्स सिस्टम हिंदुस्तान का सबसे अच्छा टैक्स सिस्टम था जो अंग्रेजों के आने तक चला।
अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तान बनते ही बड़ी तेजी से अपनी सल्तनत को फैलाया रणथम्भौर, चित्तौड़, मालवा, सिवान, जालोर, देवगिरी, वरंगल, जैसी सारी रियासतें सुल्तान के झोली में आ गिरीं। ख़िलजी ने अपनी जिंदगी की कोई भी जंग नहीं हारी लेकिन एक बीमारी से हार गया और कम उम्र (49-50 वर्ष) में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।
सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी के गुज़र जाने के दसियों बरस बाद भी लोग उनके दौर को ये कह कर हसरत से याद करते रहे की मरहूम सुल्तान के वक़्त में रोटी की इतनी क़ीमत नहीं थी और ज़िन्दगी बसर करना इतना मुश्किल नहीं था।
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दौर में 11 ग्राम चांदी के एक सिक्के के एवज़ में 85 किलो गेंहू मिला करता था। खाने की चीज़ों के ऐसे कम दाम उनकी हुकूमत के ख़त्म होने तक क़ायम रहे। बारिश हो या ना हो, फ़सल अच्छी हो या ख़राब हो जाये, खाने की चीज़ों के दाम रत्ती भर भी नहीं बढ़ते थे।