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नवरात्रि में क्यों बोये जाते हैं जौ
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नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा करने का विधान है। शक्ति स्वरूपा मां भगवती की विधिवत पूजा करने के साथ कलश की स्थापना की जाती है। स्थापना के समय कलश के चारों ओर जौ बोने की परंपरा है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर जौ क्यों बौएं जाते हैं और इनके रंगों के हिसाब से क्या संकेत मिलते है। आइए जानते हैं
1. नवरात्रि में कलश के सामने एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी में जौ या गेहूं को बोया जाता है और इसका पूजन भी किया जाता है। बाद में 9 दिनों में जब ज्वारे उगाते हैंतो उसके बाद उनका नदी में विसर्जन किया जाता है।
2. जवारे को जयंती और अन्नपूर्णा देवी माना जाता है। माता के साथ जयंती और अन्नपूर्णा देवी की पूजा भी जरूरी होती है।
3. मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में सबसे पहली फसल जौ ही थी। इसे पूर्ण फसल भी कहा जाता है।
4. जौ या गेहूं अंन्न है और हिन्दू शास्त्रों में अन्न को ब्रह्म माना गया है। इसीलिए भी नवरात्रि में इसकी पूजा होती है।
5. जब भी देवी या देवताओं का हवन किया जाता है तो उसमें जौ की आहुति का बहुत महत्व होता है।
6. जौ बोने से वर्षा, फसल और व्यक्ति के भविष्य का अनुमान भी लगाया जाता है। कहतेकि जौ उचित आकार और लंबाई में नहीं उगे तो उस वर्ष कम वर्ष होगी और फसल भी कम होगी। इसे भविष्य पर असर पड़ता है।
7. बोये गए जौ के रंग से भी शुभ-अशुभ संकेत मिलते हैं। मान्यता है कि यदि जौ के ऊपर का आधा हिस्सा हरा हो और नीचे से आधा हिस्सा पीला हो तो इसका आशय यह है कि आने वाले साल में आधा समय अच्छा होगा और आधा समय कठिनाइयों से भरा होगा।
8. यदि जौ का रंग हरा हो या फिर सफेद हो गया हो, तो इसका अर्थ होता है कि आने वाला साल काफी अच्छा जाएगा। यही नहीं देवी भगवती की कृपा से आपके जीवन में अपार खुशियां और समृद्धि का वास होगा।
9. कहते हैं कि नवरात्र में बोई गई जौ जितनी बढ़ती है उतनी ही माता रानी की कृपा बरसती है। इससे व्यक्ति के घर में सुख-समृद्धि भी बनी रहने के संकेत मिलते हैं।
10. मान्यता है कि यदि जौ के अंकुर 2 से 3 दिन मैं आ जाते हैं तो यह बेहद शुभ माना जाता है और यदिजौ नवरात्रि समाप्त होने तक जौ न उगे तो यह अच्छा नहीं माना जाता है। हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है कि यदि आपने उचित तरीके से जौ नहीं बोया है तो भी जौ नहीं उगता है। ऐसे में ध्यान रखें कि जौ को अच्छे से बोएं।