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3 سنوات - ترجم

A different type of Christmas on a cruise this year with most of my family with my dad watching above. Cruise-Mas. Happy New Year!

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A different type of Christmas on a cruise this year with most of my family with my dad watching above. Cruise-Mas. Happy New Year!

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A different type of Christmas on a cruise this year with most of my family with my dad watching above. Cruise-Mas. Happy New Year!

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80 साल की उम्र के राजा छत्रसाल जब मुगलों से घिर गए और बाकी राजाओं से कोई उम्मीद नहीं बची, तो एक मात्र आशा, बाजीराव पेशवा।
संदेश भेजा,
जो गति ग्राह गजेंद्र की सो गति भई है आज।
बाजी जात बुन्देल की बाजी राखो लाज।।
जिस प्रकार गजेंद्र मगरमच्छ के जबड़ो में फंस गया था ठीक वही स्थिति मेरी है, आज बुन्देल हार रहा है , बाजी हमारी लाज रखो।
यह पढ़ते ही बाजीराव खाना छोड़कर उठे, उनकी पत्नी ने कहा, "खाना तो खा लीजिए।"
तब बाजीराव ने कहा -
अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि,
"एक क्षत्रिय ने मदद मांगी और ब्राह्मण भोजन करता
रहा।"
बाजीराव भोजन की थाली छोड़कर अपनी सेना के साथ राजा छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े। दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके।
योद्धा बाजीराव बुंदेलखंड आया और बंगस खान की गर्दन काट कर जब राजा छत्रसाल के सामने गए तो छत्रसाल ने बाजीराव को गले लगाते हुए कहा -
जग उपजे दो ब्राह्मण: परशु और बाजीराव।
एक डाहि रजपुतिया, एक डाहि तुरकाव।।
बाजीराव पेशवा गजब के योद्धा थे हमे फिल्मी भाँडो की किंग खान पठान की झूठी वाहवाही करने की बजाय अपने वीर योद्धाओ का जीवन अपने बच्चो को बताना चाहिए ताकि हमारे बच्चे अपने इतिहास के असली हीरो के जीवन से कुछ सीख सके।

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जब पंडित जी ने कहा - 'मुझे बधाई न दें, ये मेरा नव वर्ष नहीं...
आज भले पूरी दुनिया नया वर्ष मना रही है, लेकिन भारत में एक बड़ा वर्ग है, जो इसे नए वर्ष की मान्यता नहीं देता। इस वर्ग के अपने तर्क व तथ्य हैं,जो उचित भी हैं।
सामान्यत: भारत में इस अंग्रेजी नव वर्ष का विरोध नहीं होता। मगर एक महान व्यक्तित्व ऐसे भी हुए, जिन्होंने इस परंपरा का पुरजोर विरोध करते हुए 01 जनवरी पर नव वर्ष की शुभकामनाएं देने वाले अपने शिक्षक से कहा - 'मुझे बधाई न दें, ये मेरा नव वर्ष नहीं।'
ये शख्स थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शुरुआती प्रचारकों में से एक पंडित जी सनातन संस्कृति के उपासक थे।
यह किस्सा सन् 1937 का है, जब वे छात्र जीवन में थे और कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज में अध्ययनरत थे। तब कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक ने 01 जनवरी को कक्षा में सभी,विद्यार्थियों को नव वर्ष की बधाई दी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जानते थे कि शिक्षक पर अंग्रेजी संस्कृति का प्रभाव है। इसलिए पंडित जी ने भरी कक्षा में तपाक से कहा- 'आपके स्नेह के प्रति पूरा सम्मान है आचार्य, किंतु मैं इस नव वर्ष की बधाई नहीं स्वीकारूगा क्योंकि यह मेरा नव वर्ष नहीं।
यह सुन सभी स्तब्ध होगए। पंडित जी ने फिर बोलना शुरू किया-'मेरी संस्कृति के नव वर्ष पर तो प्रकृति भी खुशी से झूम उठती है और वह गुड़ी पड़वा पर आता है। यह सुनकर शिक्षक
सोचने पर मजबूर हो गए। बाद में उन्होंने स्वयं भी कभी अंग्रेजी नववर्ष नहीं मनाया।

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