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26 दिसंबर 1530 यानी आज से 492 साल क़ब्ल मुग़ल सल्तनत के बानी बादशाह ज़हीर-उद्-दीन मुहम्मद बाबर की वफ़ात हुई थी।
ज़हीर उद्-दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 ईस्वी में अन्दिजान में हुआ था जो फ़िलहाल उज़्बेकिस्तान का हिस्सा है। आप के वालिद का नाम उमर शेख़ मिर्ज़ा और वालिदा का नाम कुतलुग निगार ख़ानम था।
ज़हीर उद्-दीन मुहम्मद बाबर को पहले आगरा में दफ़नाया गया था लेकिन बाबर की इच्छा थी कि उन्हें काबुल में दफ़्न किया जाए। उनकी इस इच्छा शेर शाह सूरी ने पूरा की और उनकी क़ब्र मुबारक को काबुल के बाग़-ए-बाबर में स्थानांतरित कराया।
मुस्लिम तारीख़ और हिंदी मुसलमान - शिद्दत पसंदों ने तारीख़ में मुस्लिम हुक्मरानों को एक विदेशी आक्रमणकारी के तौर पर पेश किया और हिंदी मुसलमानों ने वतनपरस्ती और ला-दीनीयत को तरजीह देते हुए मुस्लिम हुक्मरानों के झूठे और ग़लत इतिहास को स्वीकार किया। आज देखा जाए तो आम तौर पर न तो मुसलमानों को ही अपनी तारीख़ का ज़्यादह इल्म है और न ही दिलचस्पी।
आप तमाम से यही कहना चाहूंगा कि अपनी तारीख़ को पढ़ें और समझें और जो गलत तारीख़ पेश करे या मुस्लिम हुक्मरानों को विदेशी आक्रमणकारी बोले तो उनसे तार्किक बहस करें लेकिन तार्किक बहस भी आप तब कर पाएंगे जब आप को इल्म होगा। मस्जिद ए अल् बाबरी की शहादत से हमें सबक लेने की ज़रूरत है।
मुहम्मद बिन क़ासिम, महमूद ग़ज़नवी, मोहम्मद गौरी, क़ुतुबुद्दीन ऐबक़, रज़िया सुल्तान, अलाउद्दीन ख़िलजी, फिरोज़ शाह तुग़लक, बाबर, हुमायूं, अकबर, शाहजहां, औरंगज़ेब, बहादुर शाह ज़फ़र, हैदर अली, टीपु सुल्तान के साथ-साथ बाक़ी तमाम हुक्मरां, नवाब, निज़ाम और तारीख़ी सिपहसालारों के बारे में भी हमें इल्म होना चाहिए.
इस से अलावा मैं समझता हूं कि आप को शेख़ मुहम्मद इकराम की तीन किताबें ज़रूरी पढ़नी चाहिए बल्कि उन्हें तीन किताब न कहकर तीन ज़िल्दें भी कहना मुनासिब होगा :
• आब-ए-कौसर
• रूद-ए-कौसर
• मौज-ए-कौसर
शेख़ मुहम्मद इकराम ने आब-ए-कौसर में 711 से 1526 के दौर, रूद-ए-कौसर में 1526 से 1800 के दौर और मौज-ए-कौसर में 1800 से 1947 के दौर के बारे में लिखा है.
आज के लेख का इत्माम मुग़ल वंश के आख़िरी हुक्मरां बहादुर शाह ज़फ़र के इस शेर पर करना चाहूंगा।
ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से
दिल्ली 'ज़फ़र' के हाथ से पल में निकल गई
पहली तस्वीर ओमान के मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट (सांसद) "अहमद अल-बरवानी" की हैं। अहमद अल-बरवानी ने फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप जीतने वाली अर्जेंटीना फ़ुटबॉल टीम के कप्तान "मेस्सी" को क़तर के अमीर शैख़ तमीम बिन हमद अल-सानी द्वारा पहनाए गए अरबी लिबास (बिश्त) को ख़रीदने की बात कही है।
अहमद अल-बरवानी ने उस बिश्त की क़ीमत एक मिलियन डॉलर (इंडियन तक़रीबन 83 करोड़ रुपए) लगाई है।
पहली तस्वीर ओमान के मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट (सांसद) "अहमद अल-बरवानी" की हैं। अहमद अल-बरवानी ने फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप जीतने वाली अर्जेंटीना फ़ुटबॉल टीम के कप्तान "मेस्सी" को क़तर के अमीर शैख़ तमीम बिन हमद अल-सानी द्वारा पहनाए गए अरबी लिबास (बिश्त) को ख़रीदने की बात कही है।
अहमद अल-बरवानी ने उस बिश्त की क़ीमत एक मिलियन डॉलर (इंडियन तक़रीबन 83 करोड़ रुपए) लगाई है।
पहली तस्वीर ओमान के मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट (सांसद) "अहमद अल-बरवानी" की हैं। अहमद अल-बरवानी ने फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप जीतने वाली अर्जेंटीना फ़ुटबॉल टीम के कप्तान "मेस्सी" को क़तर के अमीर शैख़ तमीम बिन हमद अल-सानी द्वारा पहनाए गए अरबी लिबास (बिश्त) को ख़रीदने की बात कही है।
अहमद अल-बरवानी ने उस बिश्त की क़ीमत एक मिलियन डॉलर (इंडियन तक़रीबन 83 करोड़ रुपए) लगाई है।

यह कर्नाटक की रहने वाली आयशा ख़ान हैं। जिन्होंने AIR 17 में 105.75 स्कोर और 99.96 फ़ीसद के साथ कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) 2023 में टॉप किया है।
आयशा अपना ख़्वाब पूरा करने की कोशिश में कामयाब हो गई हैं। आयशा का कहना है- "बहुत छोटी उम्र से मैं एक वकील बनना चाहती थी"
बहन आयशा को दिली मुबारकबाद।