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काश ! भाषा ही ना होती
तो शब्दों के “तीर” नहीं होते
और रिश्तों में “बँटवारे” नहीं होते !
“”””महसूस कर पाना ही सबसे बड़ी ताक़त होती””””🫶🤲
इंसानियत क़ैद नहीं होती
इतने खड़े बीच दायरे नहीं होते ! ❌
“मुझ” से पहले मुझे “तेरी” आँखें दिख पातीं 👀
तो कड़वे बोल और बहस जीतने के
आँखों में सुलगते ये “अंगारे” नहीं होते !
मेरी-तेरी के बनिस्पत “हम” वाली बातें होतीं
उँगलियाँ “इक-दूजे” पर नहीं उठती 👉👈
तोहमतों के इतने कड़वे “नज़ारे” नहीं होते !😥
कितना बदल गया इंसां, कितना बदल गया ये समा🙇♀️
शुक्र है मेरी “कायनात” में मैंने सब संजो कर रखा है🙏✨
वरना वहाँ मेरे वाले प्यारे “टिमटिमाते सितारे” नहीं होते !✨✨