Discover postsExplore captivating content and diverse perspectives on our Discover page. Uncover fresh ideas and engage in meaningful conversations
वीरता , साहस कि भी सीमाएं है।
महाराणा प्रताप उस सीमा से भी आगे थे।
आज जब हम उनकी वीरता का वर्णन सुनते है तो काल्पनिक लगता है।
क्या मनुष्य इतना भी साहसी , निर्भीक हो सकता है।
वह मुगलों के सबसे शक्तिशाली शासक अकबर के सामने खड़े थे।
सैन्य क्षमता , शस्त्र , संसाधन में कोई तुलना नहीं थी।
फिर भी उन्होंने युद्धभूमि को ही चुना , उनके हाथ में भाला! भारत के आत्मसम्मान , साहस का प्रतीक था।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम वीरता को वह आदर कभी नहीं दे पाये जो देना चाहिये।
हम अपने बच्चों को यह बता नहीं पाये की एक भाला ऐसा भी था जो इंद्र के वज्र से भी तीक्ष्ण था।
जब भी इतिहास के उस पृष्ठ को पढ़ता हूँ , जिसमें लिखा है अपने से पाँच गुनी सेना के सामने 6 घँटे युद्ध करने पश्चात , घायल होते सैनिक को देखकर। वह बीच युद्ध भूमि में यह निर्णय लेते है इस मुगल सैनिकों के महासागर को चीरते हुये अब मुगल सेनापति पर ही भाला चलेगा।
युद्घभूमि में ऐसे निर्णय कदाचित हुये हो। यह तो ऐसे है जैसे भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र में सुदर्शन चक्र उठा लिये हो।
चेतक की गर्दन पर हाथ रखते हुये उन्होंने कुछ कहा। अब वह घटित होने वाला है जिसका वर्णन युगों युगों तक होगा।
स्वामी कि मंशा को समझते ही उस अद्वितीय अश्व ने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा दिये।
तोप के गोलों , तलवारों , भालों , तीरों कि बौछार कि बीच से निकलते हुये उसने, विशालकाय हाथी पर छलांग लगा दी। इधर सात फिट का भाला हौदे को चीरता हुआ निकल चुका था।
यह मात्र वीरता ही नहीं है।
सामंजस्य , संतुलन , तारतम्य, साहस को एक साथ साधना है।
भारत माता सैदव गर्व करेंगी, उनके पुत्रों में महाराणा प्रताप जैसा वीर पैदा हुआ था।
Karan Prashuram Bhagat
Delete Comment
Are you sure that you want to delete this comment ?