Keşfedin MesajlarıKeşfet sayfamızdaki büyüleyici içeriği ve farklı bakış açılarını keşfedin. Yeni fikirleri ortaya çıkarın ve anlamlı konuşmalara katılın
भाई-बहनों, गीता का उपदेश अत्यन्त पुरातन योग है, श्रीभगवान् कहते हैं, इसे मैंने सबसे पहले सूर्य से कहा था, सूर्य ज्ञान का प्रतीक है, अत: श्री भगवान् के वचनों का तात्पर्य है कि पृथ्वी उत्पत्ति से पहले भी अनेक स्वरूप अनुसंधान करने वाले भक्तों को यह ज्ञान दे चुका हूँ, यह ईश्वरीय वाणी है जिसमें सम्पूर्ण जीवन का सार है एवं आधार है, मैं कौन हूँ? यह देह क्या है? इस देह के साथ क्या मेरा आदि और अन्त है? देह त्याग के पश्चात् क्या मेरा अस्तित्व रहेगा? यह अस्तित्व कहाँ और किस रूप में होगा?
मेरे संसार में आने का क्या कारण है? मेरे देह त्यागने के बाद क्या होगा, कहाँ जाना होगा? किसी भी जिज्ञासु के हृदय में यह बातें निरन्तर घूमती रहती हैं, हम सदा इन बातों के बारे में सोचते हैं और अपने को, अपने स्वरूप को नहीं जान पाते, गीता शास्त्र में इन सभी के प्रश्नों के उत्तर सहज ढंग से श्री भगवान् ने धर्म संवाद के माध्यम से दिये हैं, इस देह को जिसमें 36 तत्व जीवात्मा की उपस्थिति के कारण जुड़कर कार्य करते हैं, क्षेत्र कहा है, और जीवात्मा इस क्षेत्र में निवास करता है, वही इस देह का स्वामी है।
परन्तु एक तीसरा पुरुष भी है, जब वह प्रकट होता है, अधिदैव अर्थात् 36 तत्वों वाले इस देह (क्षेत्र) को और जीवात्मा (क्षेत्रज्ञ) का नाश कर डालता है,यही उत्तम पुरुष ही परम स्थिति और परम सत् है, यही नहीं, देह में स्थित और देह त्यागकर जाते हुए जीवात्मा की गति का यथार्थ वैज्ञानिक एंव तर्कसंगत वर्णन गीता शास्त्र में हुआ है, जीवात्मा नित्य है और आत्मा (उत्तम पुरुष) को जीव भाव की प्राप्ति हुई है, शरीर के मर जाने पर जीवात्मा अपने कर्मानुसार विभिन्न योनियों में विचरण करता है।