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चार मण के 4 पाये - चालिस मण की खाट
अस्सी मण का कोठडा - सौ मण का #जाट 💪

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चार मण के 4 पाये - चालिस मण की खाट
अस्सी मण का कोठडा - सौ मण का #जाट 💪

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ख़बर है छत्तीसगढ़ के रायपुर से,

यहां एक व्यक्ति अपनी गोद में रशियन लड़की को बैठाकर कार चला रहा था जिसके कुछ ही देर बाद यह कार एक स्कूटी में टक्कर मार देती है,

स्कूटी पर बैठे हुए लोग घायल हो जाते हैं, तो मौके पर पुलिस बुलाई जाती है मगर

पुलिस से रशियन लड़की भिड़ जाती है, वह पुलिस वालों से बहस करने लगती है, रशियन लड़की के बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।

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ख़बर है छत्तीसगढ़ के रायपुर से,

यहां एक व्यक्ति अपनी गोद में रशियन लड़की को बैठाकर कार चला रहा था जिसके कुछ ही देर बाद यह कार एक स्कूटी में टक्कर मार देती है,

स्कूटी पर बैठे हुए लोग घायल हो जाते हैं, तो मौके पर पुलिस बुलाई जाती है मगर

पुलिस से रशियन लड़की भिड़ जाती है, वह पुलिस वालों से बहस करने लगती है, रशियन लड़की के बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।

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ख़बर है छत्तीसगढ़ के रायपुर से,

यहां एक व्यक्ति अपनी गोद में रशियन लड़की को बैठाकर कार चला रहा था जिसके कुछ ही देर बाद यह कार एक स्कूटी में टक्कर मार देती है,

स्कूटी पर बैठे हुए लोग घायल हो जाते हैं, तो मौके पर पुलिस बुलाई जाती है मगर

पुलिस से रशियन लड़की भिड़ जाती है, वह पुलिस वालों से बहस करने लगती है, रशियन लड़की के बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।

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शास्त्रार्थ का सार्वजनिक निमंत्रण

प्रिय शंकराचार्यों, हम लोग भी आ रहे हैं। आठ सौ साल का अनुभव है कि आप लोग धर्मांतरण रोकने में विफल रहे। धर्म गरीब की झोपड़ी में ही ज्यादा सुरक्षित रहा। तलवार और लालच दोनों का निषेध ग़रीबों ने बेहतर किया।

आप लोगों ने प्रयास कर लिया। अब औरों को भी नेतृत्व का अवसर दीजिए।

धर्म ओबीसी, एससी और एसटी तथा क्षत्रिय व वैश्य के भी नेतृत्व में आने से ज़्यादा सुरक्षित रहेगा। आप लोग भी रहिए। बाक़ी लोग भी रहें। सब रहें।

सिर्फ़ आपसे नहीं हो पाया।

वैसे शंकराचार्य कोई पोप या ख़लीफ़ा तो हैं नहीं कि सब लोग मानेंगे। भारतीय धर्मों की असंख्य धाराओं के लाखों अपने-अपने गुरू हैं। अपना-अपना मानते हुए भी एक विशाल महासमुद्र का हिस्सा है।

जो अनेक है, वह भी एक अखंड भारतीयता में समाहित है। वह द्वैत है, अद्वैत है, द्वेताद्वैत है, विशिष्टाद्वैत है, लौकिक है, नास्तिक है।

शंकराचार्य उनमें से ही एक परंपरा है।

पर सब मिलकर एक भी है।

इस साल कुंभ में संन्यास लेने वाले हर पाँच में से एक व्यक्ति यानी 20% अनुसूचित जाति और जनजाति से है। ओबीसी की गिनती अलग है। कई महामंडलेश्वर इन वर्गों से बन चुके हैं।

पटना के हनुमान मंदिर में दलित पुजारी हैं। सभी आशीर्वाद लेते हैं।

योगर्षि रामदेव इस युग के दुनिया के सबसे लोकप्रिय संत हैं, जिन्होंने स्वास्थ्य और वेदों की परंपरा को जोड़ा और अपना संदेश दिया। यादव हैं।

तमिलनाडु में हज़ारों ओबीसी अधीनम हैं तो कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा संत। महाराष्ट्र में तुकाराम की संत परंपरा है। वरकरी हैं।

मंदिरों पर ज़्यादातर नियंत्रण मध्यवर्ती जातियों और ओबीसी का ही है।

शंकराचार्य संस्था में भी ये बदलाव चाहिए। खोलना चाहिए। लेकिन उसके लिए शास्त्रों का ज्ञान ही नहीं, शास्त्रों का अनुशासन भी चाहिए। ये बदलाव क्रमिक होगा। जिनको जल्दी थी, वे चले गए। मर गए।

पुजारी संस्था अब लोकतांत्रिक हो रही है। परीक्षाएँ होने लगी हैं। विज्ञापन निकलने लगे हैं।

अब मैं कहूँगा कि ये बाबा साहब का सपना था जिसे हिंदू समाज अब पूरा कर रहा है तो आप कहेंगे कि कहाँ लिखा है?

बाबा साहब की सबसे चर्चित कृति “एनिहिलेशन ऑफ कास्ट” (1935) में लिखा है। अध्याय 24 पढ़ें।

वे निस्संदेह वर्तमान युग में हिंदुओं के सबसे बड़े समाज सुधारक थे। उन्होंने कहा था कि पुजारी पद सभी हिंदुओं के लिए खोल दिया जाए।

हम लोगों का ऐसा नहीं है कि जामा मस्जिद का इमाम, बुख़ारा के एक ही परिवार का सदस्य बनता रहेगा। या अजमेर दरगाह के ख़ादिम एक ही बिरादरी और परिवार के लोग बनते रहेंगे। न हमारे यहाँ कट्टर सैय्यदवाद है कि एक ही कबीले की महानता गाते रहेंगे।

हमारी पुजारी परंपरा बहुत खुल चुकी है।
बाक़ी कार्य प्रगति पर है।

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