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पोरबंदर जिला भाजपा परिवार एवं गुजरात के सर्वोत्तम नेत्र अस्पताल श्री रणछोड़दास बापू चैरिटेबल अस्पताल राजकोट ने आज जिला भाजपा कार्यालय में निशुल्क नेत्रमणि नेत्र यज्ञ शिविर शुरू किया और लाभार्थियो से मुलाकात की।
इस शिविर में 4 मरीजो को आंखों का निदान किया गया और 4 मरीजो को मोतियाबिंद के ऑपरेशन की आवश्यकता बताते हुए राजकोट अस्पताल भेजा गया जहां मोतियाबिंद का ऑपरेशन बिना किसी लागत के किया जाएगा।
पोरबंदर जिला भाजपा परिवार एवं गुजरात के सर्वोत्तम नेत्र अस्पताल श्री रणछोड़दास बापू चैरिटेबल अस्पताल राजकोट ने आज जिला भाजपा कार्यालय में निशुल्क नेत्रमणि नेत्र यज्ञ शिविर शुरू किया और लाभार्थियो से मुलाकात की।
इस शिविर में 4 मरीजो को आंखों का निदान किया गया और 4 मरीजो को मोतियाबिंद के ऑपरेशन की आवश्यकता बताते हुए राजकोट अस्पताल भेजा गया जहां मोतियाबिंद का ऑपरेशन बिना किसी लागत के किया जाएगा।
पोरबंदर जिला भाजपा परिवार एवं गुजरात के सर्वोत्तम नेत्र अस्पताल श्री रणछोड़दास बापू चैरिटेबल अस्पताल राजकोट ने आज जिला भाजपा कार्यालय में निशुल्क नेत्रमणि नेत्र यज्ञ शिविर शुरू किया और लाभार्थियो से मुलाकात की।
इस शिविर में 4 मरीजो को आंखों का निदान किया गया और 4 मरीजो को मोतियाबिंद के ऑपरेशन की आवश्यकता बताते हुए राजकोट अस्पताल भेजा गया जहां मोतियाबिंद का ऑपरेशन बिना किसी लागत के किया जाएगा।
तुम ही पिता तुम ही हो माता
तेरे बिना मुझे कुछ नही भाता
तुमसे बड़ा कोई विधाता नही दाता नही जगदाता नही
तुमसे ऊपर कोई सत्ता नही तुमसे ऊपर कोई संविधान नही तेरी भक्ति से बढ़कर कोई ज्ञान नही तुम्हारे समान कोई दानी नही
वेद उपनिषद शास्त्र श्रुति स्मृति पुराण आगम निगम तुम्हारे श्रीचरणों में नाक रगड़ते है ।
ब्रह्मा विष्णु नारद शारद सुरेश महेश शेष यम अग्नि सूर्य चंद्र वरुण राम कृष्ण सबने तेरा गुणगान किया है तेरा और मां भगवती का ध्यान किया है ।
जिसको है तेरे चरणों का सहारा वो कभी भी कहीं नही हारा ।
हम भी तेरे चरणों के दास है तू ही हमारी श्रद्धा बस तू ही विश्वास है ।
सर पे हाथ बनाये रखना अपने हृदय से लगाये रखना
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*🔥ॐ दुं दुर्गायै नमः।।🔥*
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*💫शाबर मन्त्र-:💫*
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*यद्यपि शाबर मन्त्र के जनक ऋषि 'साबरी' कहे जाते हैं, तथापि इन मन्त्रों को लोकप्रियता दिलाने का श्रेय नवनाथों को जाता हैं।*
*नवनाथों में प्रथम मत्स्येन्द्रनाथ, जिन्हें मछेन्द्रनाथ भी कहा जाता हैं। भगवान दत्तात्रेय से दीक्षा ग्रहण करने के उपरान्त उन्होंने नाथ संप्रदाय की स्थापना की। इसी नाथ पंथ के अगले विभूति 'श्री गोरखनाथ' हुए। इनके बाद क्रमशः जालंधरनाथ, कणीफानाथ, चर्पटीनाथ, नागनाथ, भृतहरिनाथ, रेवणनाथ, गाहिनीनाथ हुए जिन्होंने अपने तपोबल से भैरव, देवी, वैताल, महाकाली आदि देवी देवताओं से मनचाहे वरदान प्राप्त किये।*
दुर्गासप्तशतीमें कथित रहस्यत्रय किसी उपलब्ध पुराण,तन्त्रमें प्राप्त नहीं होते ,अतैव वे किस ग्रन्थके भाग हैं ऐसी शंका हमें अनेक वर्षोंसे रही है, इस विषय पर अपना मत प्रस्तुत कर रहे हैं विद्वज्जन संशोधन करें।
हमारे अध्ययनके अनुसार उपरोक्त सभी कारणोंसे प्राधानिक,वैकृतिक एवं मूर्तिरहस्य मार्कण्डेयपुराणके ही अनुपलब्ध भाग प्रतीत होते हैं-
(१) सुरथराजाको पूजनका उपदेश एवं पूजनविधान दोनों एक ही प्रसंगमें बताना अधिक संगत होता है, एक ग्रन्थमें देवीपूजाका उपदेश एवं ग्रंथान्तरमें पूजनविधिका वर्णन उचित नहीं प्रतीत होता।
तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम् ।
आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा॥ (सप्तशती १३.९, मार्कण्डेयपुराण ९३.९) इत्यादि उपदेशके पश्चात ही पूजनविषयक आशंका भी बन सकती हैं।