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प्रकृति की गोद में बसा हुआ पौड़ी शहर से मात्र 13km दूर खोलाचौरी में है यह सुंदर रिसोर्ट। यह पौड़ी- देहरादून जाने वाली रोड पे स्थित है। आप यहाँ किसी भी सीजन में घूमने आ सकते है और यहां से हिमालयन रेंज व बेहतरीन सनसेट का नज़ारा ले सकते हैं । ❤️

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प्रकृति की गोद में बसा हुआ पौड़ी शहर से मात्र 13km दूर खोलाचौरी में है यह सुंदर रिसोर्ट। यह पौड़ी- देहरादून जाने वाली रोड पे स्थित है। आप यहाँ किसी भी सीजन में घूमने आ सकते है और यहां से हिमालयन रेंज व बेहतरीन सनसेट का नज़ारा ले सकते हैं । ❤️

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प्रकृति की गोद में बसा हुआ पौड़ी शहर से मात्र 13km दूर खोलाचौरी में है यह सुंदर रिसोर्ट। यह पौड़ी- देहरादून जाने वाली रोड पे स्थित है। आप यहाँ किसी भी सीजन में घूमने आ सकते है और यहां से हिमालयन रेंज व बेहतरीन सनसेट का नज़ारा ले सकते हैं । ❤️

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उत्तराखंड के लोकगीतों की बात करे तो (#संगीता_ढौंडियाल) का नाम सबकी जुबा पर रहता है जिन्होंने उत्तराखंड के लोकगीतों के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति को एक अलग पहचान दी और उत्तराखंड की संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में अपना योगदान दिया।
पोस्ट को जरुर लाइक करे ❣️ ❣️ ❣️ ❣️
एक परिचय – (#संगीता_ढौंडियाल) उत्तराखंड की एक प्रसिद्ध लोक गायिका है जो जो वर्तमान में देहरादून में रहती है और पौड़ी गढ़वाल का बंग्रेदी गांव उनका जन्म स्थान है।
उन्हें बचपन से संगीत में बहुत रूचि थी, जब वह केवल 5 वर्ष की थी तब से उन्होने मंच कार्यक्रम देने शुरू कर दिए थे। गायन के साथ- साथ वह नृत्य और रंगमंच में भी रूचि रखती थी।
पिता को गुरु और लता मंगेशकर को प्रेरणा स्रोत मानती है: संगीता अपने पिता राम प्रसाद बड़वाल को अपना गुरु मानती है जिन्होंने बचपन से ही संगीत के क्षेत्र में उनका मार्गदर्शन किया, उनके पिता राम प्रसाद बड़वाल और दादा श्याम प्रसाद बड़वाल उत्तराखंड के लोकगीतों में अपना एक विशेष नाम रखते है। जिनके लोकगीतों को पहले रेडिओ में बहुत सुना जाता था। संगीता लता मंगेशकर को अपना प्रेरणा स्रोत मानती है जिनकी मधुर आवाज और जीवनी से से वो काफी प्रभावित हुई।
उन्होंने टी-सीरीज, नीलम,रामा और कई अन्य प्रसिद्ध कंपनियों के लिए 500 से अधिक एल्बमों के लिए गाया। उन्होंने कई गढ़वाली, जोन्सारी, कुमाउनी , हिमांचली , नेपाली ,हिंदी और भोजपुरी गीतों को गाया और उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों को एक नया आयाम देने के लिए अपना पूरा योगदान दिया।
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बॉलीवुड गीतों से उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों की और रुझान – संगीता बचपन में बॉलीवुड गीतों को बहुत सुनती थी और इनमे काफी रूचि भी थी लेकिन जब वो बचपन में अपने पिता के साथ पर्वतीय कलामंच में गयी और वहाँ गढ़वाली गीतों को सुना और अपनी संस्कृति की झलक लोकगीतों के माध्यम से देखीं धीरे धीरे उन्हें उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों में रुझान आने लगा और संगीता अपने उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों के माध्यम से अपनी संस्कृति को विश्व स्तर पर एक पहचान दिलाना चाहती थी।
#garhwali song
#uttarakhand
#uttarakhand cinema
#uttarakhand folk song

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उत्तराखंड के लोकगीतों की बात करे तो (#संगीता_ढौंडियाल) का नाम सबकी जुबा पर रहता है जिन्होंने उत्तराखंड के लोकगीतों के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति को एक अलग पहचान दी और उत्तराखंड की संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में अपना योगदान दिया।
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एक परिचय – (#संगीता_ढौंडियाल) उत्तराखंड की एक प्रसिद्ध लोक गायिका है जो जो वर्तमान में देहरादून में रहती है और पौड़ी गढ़वाल का बंग्रेदी गांव उनका जन्म स्थान है।
उन्हें बचपन से संगीत में बहुत रूचि थी, जब वह केवल 5 वर्ष की थी तब से उन्होने मंच कार्यक्रम देने शुरू कर दिए थे। गायन के साथ- साथ वह नृत्य और रंगमंच में भी रूचि रखती थी।
पिता को गुरु और लता मंगेशकर को प्रेरणा स्रोत मानती है: संगीता अपने पिता राम प्रसाद बड़वाल को अपना गुरु मानती है जिन्होंने बचपन से ही संगीत के क्षेत्र में उनका मार्गदर्शन किया, उनके पिता राम प्रसाद बड़वाल और दादा श्याम प्रसाद बड़वाल उत्तराखंड के लोकगीतों में अपना एक विशेष नाम रखते है। जिनके लोकगीतों को पहले रेडिओ में बहुत सुना जाता था। संगीता लता मंगेशकर को अपना प्रेरणा स्रोत मानती है जिनकी मधुर आवाज और जीवनी से से वो काफी प्रभावित हुई।
उन्होंने टी-सीरीज, नीलम,रामा और कई अन्य प्रसिद्ध कंपनियों के लिए 500 से अधिक एल्बमों के लिए गाया। उन्होंने कई गढ़वाली, जोन्सारी, कुमाउनी , हिमांचली , नेपाली ,हिंदी और भोजपुरी गीतों को गाया और उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों को एक नया आयाम देने के लिए अपना पूरा योगदान दिया।
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बॉलीवुड गीतों से उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों की और रुझान – संगीता बचपन में बॉलीवुड गीतों को बहुत सुनती थी और इनमे काफी रूचि भी थी लेकिन जब वो बचपन में अपने पिता के साथ पर्वतीय कलामंच में गयी और वहाँ गढ़वाली गीतों को सुना और अपनी संस्कृति की झलक लोकगीतों के माध्यम से देखीं धीरे धीरे उन्हें उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों में रुझान आने लगा और संगीता अपने उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों के माध्यम से अपनी संस्कृति को विश्व स्तर पर एक पहचान दिलाना चाहती थी।
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