40 w - Translate

🙏🙏

image
40 w - Translate

😂😂😂

image

image
40 w - Translate

Bubu in winter 😁😁

image
40 w - Translate

Bubu don 😎😎

image
40 w - Translate

तब अक्सर बारात बैलगाड़ी से आती थी। उस बैलगाड़ी के पीछे बाजा बंधा रहता था। बाजे में बियाह का गीत बजता रहता था। एचएमवी का एक या दो कैसेट होता था और बार बार वही रिपीट होता रहता था। कानों तक आवाज़ आती रहती थी-
"सखी फुल लोढ़य चलू फुलवरिया, सीता के संग सहेलिया"
गाड़ी लड़की वाले के द्वारे रुकती थी। बैलगाड़ी से बाजा उतार कर बांस में बांधकर टांग दिया जाता था। वही कैसेट फिर से लगा देते थे। जिसमें बजता रहता था कि
*मोहि लेलखिन सजनी मोरा मनमा, पहुनमा राघव"
बाराती नाश्ता करते। आराम करते। खाना खाते। शादी हो रही होती। और बांस में टंगे बाजे में उसी एक आवाज़ में गाना बज रहा होता-
"जोगिया करत बड़जोरी, सिंदूर सिर डालत हे"।
"सुतल छलियै हम बाबा के भवनमा, अचके में आएल कहार"।
रात में शादी हुई। सुबह विदाई का वक्त। वही बाजा। वही आवाज़।-
"ऐते दिन छलियै बाबा दुलरी तोहार हम आज मोरा जोगी लेने जाए"।
इन गानों को आवाज़ देने वाली थीं शारदा सिन्हा जी। जिन्होंने घर-आंगन में गाए जाने वाले गानों को आसमान में पहुंचा दिया था। और ये किया था उन्होंने सबसे पहले 1971 में। 53 बरस पहले। उनके पहले कैसेट में ये गाना था
"दुल्हिन धीरे धीरे चलियो ससुर गलिया"
"द्वार के छेकाई नेग पहिने चुकैयौ यौ दुलरुआ भैया"
बिहार की एक बड़ी आबादी की शादी में ये तमाम गाने 'राष्ट्र गीत' की तरह थे। बोलियों की दीवार को फांदकर इन विशुद्ध मैथिली गाने ने नई लकीर खींच दी थी। शारदा जी के गीतों ने भाषाई समझ की नई परिभाषा गढ़ दी थी।
फिर उन गानों को आवाज़ देकर देहरी से बाहर निकालने लगीं जो तब घर घर घूंघट में दबी रहती थी। -
"बाबा लेने चलियौ हमरो अपन नगरी"
फिर शारदा जी ने छठ के गानों को आवाज़ दी तो वो महापर्व का पर्याय बन गई।
"कांचहि बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए"।
समूचे बिहार में छठ घाटों पर शारदा जी के गाने ऐसे बजते थे जैसे वो गीत नहीं प्रार्थना हो।
"उग' उग' हो सुरूज देब, भेलै अर्घक बेर"।
मधुबनी-सीतामढ़ी और सुपौल से लेकर पटना, आरा-बक्सर और कैमूर तक छठ में यही गाने बजते रहे बरसों तक। बाद के दिनों में भोजपुरी गीत/संगीत नए दौर में पहुँचा तो नए गायकों ने भी छठ गीत गाए और शारदा सिन्हा जी ने भी गियर बदलकर भोजपुरी की ओर रुख़ किया। एक से बढ़कर एक गाने गाए। छठ के भी। बिबाह के भी। और फिल्मों के भी। मगर छठ के तमाम गीतों को छांटने पर कनेक्ट वही करता है जो पहली बार गया था शारदा जी ने-
"पटना के घाट पर हमहूं अरघिया देबै हे छठि मैया"!
छठ से इतर शारदा सिन्हा ने उन तमाम गाने को आवाज़ दी। उसे बड़े स्तर पर पहचान दिलाई जो एक परिधि में सिमटी हुई सी थी। उन्होंने सामा चकेवा का वो गीत गाया जो दशकों से घरों में महिलाएं गाती थीं-
"गाम के अधिकारी तोहैं बड़का भैया हो"
या फिर झिझिया का गीत हो। या विद्यापति के छंद को सुरों में पिरोया। विद्यापति को सुरों से जो श्रद्धांजलि दी थीं जो अद्भुत थी। बाद में उन्होंने भोजपुरी फिल्मों में भी गना शुरू किया। मैथिली से शुरू होकर बॉलीवुड तक पहुंची तो आवाज़ आई-
"कहे तोसे सजना, तोहरी सजनियां, पग पग लिये जाऊँ तोहरी बलैयां"।
बरसों बाद गैंग्स ऑफ बसेपुर में उनकी आवाज़ में गाना आया-
"तार बिजली से पतले हमारे पिया"।
यकीनन बेहतरीन है। बेहतरीन वो गीत भी है जो बिहार के उन बोली-भाषा से मिलकर लोकगीत बना और उसे शारदा जी ने आवाज़ दी-
"पनिया के जहाज से पलटनियां बनि अइएह पिया, लेने अइएह' हो पिया सिंदूरवा बंगाल से"।
मांग में चमकता लाल सिंदूर। माथे पर बड़ा सा टिकुली। लाल लिपिस्टिक। और मुंह में पान। खिलखिलाते चेहरे वाली शारदा सिन्हा की ये पहचान थीं। हालांकि आखिरी दिनों में ईश्वर उनसे रुठ गए। जो पहचान थी उनकी वो छिन गई। शायद ये बड़ा सदमा था उनके लिए। अस्पताल में थी तब उनके बेटे ने उनका आखिरी गाना रिलीज किया वो भी छठ का-
"दुखवा मिटाईं छठी मइया, रउए असरा हमार"
ईश्वर फिर से निष्ठुर हो गए। शारदा जी विदा हो गई। उनकी विदाई की ख़बर के बाद मेरे दिमाग में बार उनका वो गीत घूम रहा है, जो ब्याह की अगली सुबह बेटी की विदाई के वक्त बैलगाड़ी के पीछे लगे बाजे में बजता हुआ जाता था-
"बड़ रे जतन सं सिया धिया पोसलौं...ओहो धिया राम लेने जाई।

image
40 w - Translate

दलित समाज से आने वाले सुल्तान सिंह का WWE में चयन हो गया है , अब WWE में दुनियाभर के रेसलर को पटखनी देने को तैयार हैं पहलवान सुल्तान सिंह .......
आप चाहे तो बधाई दें सकते हैं।

image
40 w - Translate

हिमाचली बिलासपुरी विवाह# जयमाला स्टेज पर होनी चाहिए या वेदिका में # यह जयमाला वेदिका में हुई हिमाचली पहाड़ी कल्चर

image
40 w - Translate

हिमाचली बिलासपुरी विवाह# जयमाला स्टेज पर होनी चाहिए या वेदिका में # यह जयमाला वेदिका में हुई हिमाचली पहाड़ी कल्चर

image