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गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने का पहला दिन — थोड़ा रूठना, थोड़ा मनाना
लगभग डेढ़ महीने की लंबी छुट्टियों के बाद आज फिर वही सुबह की हलचल शुरू हो गई। अलार्म की घंटी बजी तो बच्चों की आँखें थोड़ी और बंद हो गईं। छुट्टियों ने जैसे नींद की एक अलग ही लय बना दी थी — देर रात तक खेलना, देर सुबह तक सोना और दिन भर घर में धमाचौकड़ी।
आज जब कहा गया, “बेटा, उठो... स्कूल जाना है,” तो चेहरे पर साफ़ झलक रहा था — “क्या वाकई छुट्टियाँ खत्म हो गईं?”
थोड़ी देर तक अनसुना करने की कोशिश की गई, फिर धीमे-धीमे करवटें ली गईं, और अंत में जब उठना पड़ा तो चेहरा ऐसे बना जैसे बहुत बड़ा अन्याय हो गया हो।
फिर शुरू हुआ हमारा छोटा-सा ‘युद्ध’ —
थोड़ा रूठना,
थोड़ा मनाना,
कभी कपड़े पहनने में मिन्नतें करनी पड़ीं, तो कभी टिफिन के नाम पर लालच देना पड़ा। "आज स्कूल में दोस्तों से मिलोगे, नई क्लास है, नई कॉपियाँ हैं…" — ये सब बातें कई बार दोहराईं।
गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने का पहला दिन — थोड़ा रूठना, थोड़ा मनाना
लगभग डेढ़ महीने की लंबी छुट्टियों के बाद आज फिर वही सुबह की हलचल शुरू हो गई। अलार्म की घंटी बजी तो बच्चों की आँखें थोड़ी और बंद हो गईं। छुट्टियों ने जैसे नींद की एक अलग ही लय बना दी थी — देर रात तक खेलना, देर सुबह तक सोना और दिन भर घर में धमाचौकड़ी।
आज जब कहा गया, “बेटा, उठो... स्कूल जाना है,” तो चेहरे पर साफ़ झलक रहा था — “क्या वाकई छुट्टियाँ खत्म हो गईं?”
थोड़ी देर तक अनसुना करने की कोशिश की गई, फिर धीमे-धीमे करवटें ली गईं, और अंत में जब उठना पड़ा तो चेहरा ऐसे बना जैसे बहुत बड़ा अन्याय हो गया हो।
फिर शुरू हुआ हमारा छोटा-सा ‘युद्ध’ —
थोड़ा रूठना,
थोड़ा मनाना,
कभी कपड़े पहनने में मिन्नतें करनी पड़ीं, तो कभी टिफिन के नाम पर लालच देना पड़ा। "आज स्कूल में दोस्तों से मिलोगे, नई क्लास है, नई कॉपियाँ हैं…" — ये सब बातें कई बार दोहराईं।
गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने का पहला दिन — थोड़ा रूठना, थोड़ा मनाना
लगभग डेढ़ महीने की लंबी छुट्टियों के बाद आज फिर वही सुबह की हलचल शुरू हो गई। अलार्म की घंटी बजी तो बच्चों की आँखें थोड़ी और बंद हो गईं। छुट्टियों ने जैसे नींद की एक अलग ही लय बना दी थी — देर रात तक खेलना, देर सुबह तक सोना और दिन भर घर में धमाचौकड़ी।
आज जब कहा गया, “बेटा, उठो... स्कूल जाना है,” तो चेहरे पर साफ़ झलक रहा था — “क्या वाकई छुट्टियाँ खत्म हो गईं?”
थोड़ी देर तक अनसुना करने की कोशिश की गई, फिर धीमे-धीमे करवटें ली गईं, और अंत में जब उठना पड़ा तो चेहरा ऐसे बना जैसे बहुत बड़ा अन्याय हो गया हो।
फिर शुरू हुआ हमारा छोटा-सा ‘युद्ध’ —
थोड़ा रूठना,
थोड़ा मनाना,
कभी कपड़े पहनने में मिन्नतें करनी पड़ीं, तो कभी टिफिन के नाम पर लालच देना पड़ा। "आज स्कूल में दोस्तों से मिलोगे, नई क्लास है, नई कॉपियाँ हैं…" — ये सब बातें कई बार दोहराईं।