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तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक!
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक!!
अर्थात्:-- गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, विपत्ति के समय में आपको घबराकर हार नहीं माननी चाहिए। ऐसी स्थिति में आपको अपने अच्छे कर्म, सही विवेक और बुद्धि से काम लेना चाहिए।
आज 09/05/2024 बृहस्पतिवार को दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर #श्री_अयोध्या_धाम से #प्रभु_श्रीराम_चन्द्र_जी की आरती, अलौकिक व दिव्य श्रृंगार का आज का यह दर्शन कर पुण्य प्राप्त करें!🙏🙏
#प्रभु_श्रीरामलला_की_जय_हो!!
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🙏🏽💞जय गुरुदेव 💞जय माता दी💞🙏🏽
👉👉 💞💞 षट्कर्म 💞💞👇👇
💞शान्ति-वश्य-स्तम्भनानि विद्वेषोच्चाटने तथा।💞
💞मारणान्तानि शंसन्ति षट्कर्माणि मनीषिणः॥💞
👉💞गिरिराज हिमालय के उच्च शिखर पर आसीन गंगाधर देवाधिपति भगवान् शंकर की समाधि टूटने पर गिरिसुता जगत्-जननी जगदम्बा भगवती पार्वती विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़कर भगवान् से बोर्ली कि हे देव आजकल समग्र जगत् के प्राणी नाना प्रकार की व्याधियों से पीड़ित दरिद्रता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, अतः आप संसार के सकल दुःख-निवारण करने वाला कोई ऐसा उपाय बतलाने की कृपा करें जिससे रोगी, दरिद्री एवं शत्रु द्वारा सताये हुए प्राणी क्लेश- मुक्त हो सकें। सृष्टि-संहारकर्त्ता भगवान् त्रिलोचन कहने लगे कि, हे पार्वती ! आज मैं तुम्हारे सम्मुख संसार के समस्त क्लेशों से छुटकारा दिलानेवाले उन अमोघ मन्त्रों के सिद्धि के लिए षट्कर्मों का वर्णन करता हूँ, जिनके विधान पूर्वक सिद्धि कर लेने पर मनुष्य रोग, शोक, दरिद्रता तथा शत्रुभय से सर्वथा मुक्त हो सकता है और जगत् की उपलब्ध समस्त सिद्धियाँ उसे अनायास ही प्राप्त हो सकती हैं।।
👉षट्कर्मों के नाम
(१) शान्ति कर्म, (२) वशीकरण, (३) स्तम्भन, (४) विद्वेषण, (५) उच्चांटन एवं (६) मारण। इन छः प्रकार के प्रयोगों को षट्कर्म कहते हैं और इनके द्वारा नौ प्रकार के प्रयोग किये जाते हैं।
नौ प्रकार के प्रयोग हैं.....मारण, मोहन, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण , रसायन एवं यक्षिणी साधन। उपरोक्त नौ प्रकार के प्रयोगों की व्याख्या एवं लक्षण पण्डित जन इस प्रकार करते हैं।
👉षट्कर्म व्याख्या
(१) शान्ति कर्म- जिस कर्म के द्वारा रोगों और ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों को दूर किया जाता है, उसे शान्ति कर्म कहते हैं और इसकी अधिष्ठात्री देवी रति हैं।
(२) वशीकरण - जिस क्रिया के द्वारा स्त्री, पुरुष आदि जीवधारियों को वश में करके कर्त्ता के इच्छानुसार कार्य लिया जाता है उसको वशीकरण कहते हैं। वशीकरण की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती हैं।
(३) स्तम्भन - जिस क्रिया के द्वारा समस्त जीवधारियों की गति का अवरोध किया जाता है, उसे स्तम्भन कहते हैं। इसकी अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं।
(४) विद्वेषण - जिस क्रिया के द्वारा प्रियजनों की प्रीति, परस्पर की मित्रता एवं स्नेह नष्ट किया जाता है, उसे विद्वेषण कहते हैं। इसकी अधिष्ठात्री देवी ज्येष्ठा हैं।
(५) उच्चाटन - जिस कर्म के करने से जीवधारियों की इच्छाशक्ति को नष्ट करके मन में अशान्ति, उच्चाटन उत्पन्न की जाती है और मनुष्य अपने प्रियजनों को छोड़कर खिन्नतापूर्वक अन्यत्र चला जाता है, उसे उच्चाटन कहते हैं। इसकी अधिष्ठात्री देवी दुर्गा हैं।
(६) मारण- जिस क्रिया को करने से जीवधारियों का प्राणान्त कर्ता की इच्छानुसार असामयिक होता है, उसे मारण कहते हैं। इसकी अधिष्ठात्री देवी भद्रकाली हैं। और यह प्रयोग अत्यन्त जघन्य होने के कारण वर्जित है।
👉षट्कर्मों के वर्ण-भेद
षट्कर्मों के अन्तर्गत जिस कर्म का प्रयोग करना हो, उसके अनुसार ही वर्ण का ध्यान रखना चाहिए। साधकों की सुविधा के लिए वर्ण-भेद लिख रहे हैं, इसे स्मरण रखना चाहिए।शान्ति कर्म में श्वेत रंग, वशीकरण में लाल रंग(गुलाबी), स्तम्भन में पीला रंग, विद्वेषण में सुर्ख(गहरे लाल रंग), उच्चाटन में धूम्र रंग (धुयें के जैसा) और मारण ने काले रंग का प्रयोग करना चाहिए।।
शेष अगले पोस्ट में......
💞🙏🏽आप सभी साधकों को बैशाख अमावस्या की हार्दिक शुभकामनाएं एवम सादर जय गुरुदेव, जय माता दी,सुप्रभात🙏🏽
🙏🏽💞परम पूज्य गुरुदेव एवम भगवती सब पर दया करें💞🙏🏽