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🙏🙏जय सियाराम जी🙏🙏
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सगुनु खीरु अवगुन जलु ताता।
मिलइ रचइ परपंचु बिधाता॥
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भरतु हंस रबिबंस तड़ागा।
जनमि कीन्ह गुन दोष बिभागा॥
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भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी कहते हैं हे तात! (लक्ष्मण जी) गुरु रूपी दूध और अवगुण रूपी जल को मिलाकर विधाता इस दृश्य प्रपंच (जगत्) को रचता है, परन्तु भरत ने सूर्यवंश रूपी तालाब में हंस रूप जन्म लेकर गुण और दोष का विभाग कर दिया (दोनों को अलग-अलग कर दिया)।
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गहि गुन पय तजि अवगुण बारी।
निज जस जगत कीन्हि उजिआरी॥
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कहत भरत गुन सीलु सुभाऊ।
पेम पयोधि मगन रघुराऊ॥
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भावार्थ:-गुणरूपी दूध को ग्रहण कर और अवगुण रूपी जल को त्यागकर भरत ने अपने यश से जगत् में उजियाला कर दिया है। भरतजी के गुण, शील और स्वभाव को कहते-कहते श्री रघुनाथजी प्रेमसमुद्र में मग्न हो गए।
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सुनि रघुबर बानी बिबुध
देखि भरत पर हेतु।
सकल सराहत राम सो
प्रभु को कृपानिकेतु॥
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भावार्थ:-श्री रामचंद्रजी की वाणी सुनकर और भरतजी पर उनका प्रेम देखकर समस्त देवता उनकी सराहना करने लगे और कहने लगे कि श्री रामचंद्रजी के समान कृपा के धाम प्रभु और कौन है ?
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वंदउ राम लखन वैदेही।
जे तुलसी के परम् सनेही॥
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अनुज जानकी सहित निरंतर।
बसउ राम नृप मम् उर अतर॥
🙏🙏जय सियाराम जी🙏🙏