मासूम बच्चों को ज़िंदगी जीना सिखाने की बजाय मौत के फ़ायदों के लिए तैयार करने वाला ये मदरसा भारत बांग्लादेश सीमा पर है सब बच्चे स्कूली पढ़ाई छोड़ कर मदरसे में हैं इनको 12-14 वर्ष की आयु में भी उर्दू-अरबी के सामान्य शब्दों की जानकारी तो नहीं दी गई है परंतु मौत के बाद के सफ़र की पढ़ाई कराई जा रही है।

बच्चों के विकास के लिए ये ख़तरनाक है,बच्चों को स्कूल में होना चाहिए।

(वीडियो जन जागरण के उद्देश्य से पोस्ट किया गया है)

आपको लगता होगा इन मदरसो पढाई होती है।

हिन्दुओ सोते रहो सरकार के भरोसे
दिल्ली सरकार ने न जाने कितने हजार मदरसे खुलवा रखे हैं, कोई नही जानता

अगर केंद्र सरकार कोई सर्वे भी कराए तब भी सैकड़ो मदरसे छिपे रह जाएंगे, जो सरकारी रूपए से चलते हैं, लेकिन मान्य नही हैं।

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नि (निषाद)- यह स्वर अपनी तीव्रतासे सभी स्वरोंको दबा देता है, अतः निषाद कहा गया है। इसका स्वभाव ठंडा-शुष्क, रंग काला और स्थान नासिका है। इसकी प्रकृति जोशीली और आह्लादकारी है। इसके देवता सूर्य हैं। यह वातज रोगोंका शमन करता है।
उदाहरण-हाथीका स्वर।

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🙏🙏जय सियाराम जी🙏🙏
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रामसखाँ तेहि समय देखावा।
सैल सिरोमनि सहज सुहावा॥
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जासु समीप सरित पय तीरा।
सीय समेत बसहिं दोउ बीरा॥
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भावार्थ:-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि रामसखा निषादराज ने उसी समय स्वाभाविक ही सुहावना पर्वतशिरोमणि कामदगिरि दिखलाया, जिसके निकट ही पयस्विनी नदी के तट पर सीताजी समेत दोनों भाई निवास करते हैं।
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देखि करहिं सब दंड प्रनामा।
कहि जय जानकि जीवन रामा॥
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प्रेम मगन अस राज समाजू।
जनु फिरि अवध चले रघुराजू॥
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भावार्थ:-सब लोग उस पर्वत को देखकर 'जानकी जीवन श्री रामचंद्रजी की जय हो।' ऐसा कहकर दण्डवत प्रणाम करते हैं। राजसमाज प्रेम में ऐसा मग्न है मानो श्री रघुनाथजी अयोध्या को लौट चले हों।
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भरत प्रेमु तेहि समय जस
तस कहि सकइ न सेषु।
कबिहि अगम जिमि ब्रह्मसुखु
अह मम मलिन जनेषु॥
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भावार्थ:-भरतजी का उस समय जैसा प्रेम था, वैसा शेषजी भी नहीं कह सकते। कवि के लिए तो वह वैसा ही अगम है, जैसा अहंता और ममता से मलिन मनुष्यों के लिए ब्रह्मानंद है।
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वंदउ राम लखन वैदेही।
जे तुलसी के परम सनेही॥
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अनुज जानकी सहित निरंतर।
बसउ राम नृप मम उर अंतर॥
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🙏🙏जय सियाराम जी🙏🙏

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राजस्थान के थार मरुस्थल मे पानी की समस्या ख़त्म करने का सबसे सरल ओर कम खर्च का तरीका है तालाबों का संरक्षण ओर बहाव क्षेत्र में नये तालाबों का निर्माण।जबकि उल्टा हो रहा है सरकार नल से जल लाकर तालाबों की उपगिता ख़त्म कर रही हैं।अच्छा है नल से जल देओ पर तालाब मे जल संरक्षण करके उसी मे मोटर डालकर पूरे गाँव को नियमित सप्लाई दी जा सकती है।अतिरिक्त आवश्यकता होने पर नहर से सप्लाई दी जा सकती हैं।लोग सिर्फ़ शहर से आये जल पर निर्भर हो रहे हैं।क्या आपके गाँव का तालाब पीने योग्य है।

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बढेरा कैवता जिस साल सांगरी ज़्यादा लगती थी उण साल जमाना बढ़िया होता था।इस हिसाब से तो इस बार मौलो ही लागे है।

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पिछले तीन साल से हिरणों के लिए पड़त जमीन पर घास लगाने का प्रयास कर रहा हूँ।काजरी में नौकरी की वजह से रेगिस्तान की घासों का बीज भी ले आता हूँ ओर घास मैदान विकसित करने का तकनीकी ज्ञान भी।संस्थान के वैज्ञानिक भी मदद करते हैं पर सबसे बड़ी समस्या प्रोटेक्शन की है।धामण सेवण बुरड़ा अंजन जैसी रेगिस्तानी घासों को पनपने के लिए थोड़ा वक़्त चाहिए होता है ओर उसके लिए ज़रूरी है कि उक्त जगह को संरक्षित किया जाये।एक बार घास पनप जाने पर उसकी जड़ें गहरी हो जायोगी ओर फिर उसे गाँव के सांड,गायें ओर भेड़ बकरियाँ भी चरेगी तो उखड़ के नहीं आयेगी।वन्यजीवों के लिए भी चारा हो जायेगा।पर ये प्रयास सरकारी स्तर पर नहीं होता तब तक सफलता मुश्किल है क्योंकि भेड़ बकरी वालो को एक महीने के लिए भी इस जगह से रोकना मुश्किल है।वे पूरे दिन ओरण मे भेड़ बकरी चराते है ओर उगी घास ऊखाड़ के खा जाते हैं।तीस साल पहले बुजुर्ग बताते हैं कि ओरणो मे कमर जितनी बड़ी घासे हुआ करती थीं जहा आज केवल बिहाणी खड़ी नजर आती हैं क्योंकि भेड़ बकरी का अतिचारण प्राकृतिक रूप से उगी घास को भी बीज अवस्था तक पहुँचने नहीं देते ओर धीरे धीरे घास ख़त्म हो गई।ओरण से खेजड़ी काटते रहते हैं पूरे दिन।ओरण का उपयोग कीजिए पर दोहन मत कीजिए।भेड़ बकरी का पशुपालन आपका धंधा है आजीविका है पर समझने का प्रयास तो कीजिए।एक दो महीने तक दूसरे ओरण मे चराओ तब तक घास पनप जायेगी फिर आपके भी काम आयेगी। नहीं तो युवा साथियों तब तक ओरण मे घासों के बीज उछालते रहिए कम से कम एक साल तो उगेगी घास ओर वन्यजीव खायेंगे।जैसा मेरे साथ हो रहा है।पंचायत स्तर पर ये काम पूरे रेगिस्तान में किये जाने चाहिए। पंच सरपंच आधे भाग को संरक्षित करके भी घास लगवा सकते है।आवारा पशुओं को भी ओरण मे खाने को मिलेगा तो वे खेतों में नही घुसेंगे ।चार तार की तारबंदी से पेट चीरकर आपके खेतों में घुसने का उनका कोई शौक नहीं होता है मजबूर किया गया है उन्हें।

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