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यह ब्रिटेन के इम्पीरियल वॉर म्यूजियम में रखी एक तस्वीर है.... प्रथम विश्व युद्ध मे अंग्रेजों की तरफ से लड़ने ब्रिटिश आर्मी के एक हिन्दू सैनिक ने फ्रांस की एक भूखी महिला को अपना खाना दे दिया ।
जिसे ब्रिटेन ने अपने म्यूजियम में जगह दी....
कुछ ऐसा ही वाकया अंग्रेजो ने 1857 के समय का नोट किया था कि जमींदारों ने विद्रोह कर दिया किंतु उन्होंने वहां पर अकेले पड़े एक अंग्रेज को छोड़ दिया ये कहते हुए कि हमारी आपसे शत्रुता नही है उन केंद्र में बैठे विदेशियों से है जिन्होंने हमे गुलाम बनाया है
भारतीयों का किस प्रकार चरित्र हनन किया गया कभी दलित के नाम पर, कभी महिलाओं के नाम पर, किंतु वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग थी
कुछ तो नाइंसाफी हुई है हमारे इतिहास से
जब किसी का चरित्र हनन करना हो तो उसे जातियों में उलझा दो, वे एक दूसरे में लड़कर एक दूसरे की तमाम खामियां निकाल देंगे
चित्र: इंपीरियल युद्ध संग्राहलय मे आज भी इस अद्भुत दृश्य का चित्र रखा है ....🚩

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बैटरी सबसे पहले भारत मे बनी।
बैटरी बनाने की जो विधि है,जो आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकार कर रखी है,वो महर्षि अगस्त द्वारा दी गयी विधि है।
महर्षि अगस्त ने सबसे पहले बैटरी बनाई थी और उसका विस्तार से वर्णन भी किया है अगस्तसंहिता मे।
पूरा बैटरी बनाने की विधि या तकनीक उन्होंने दी है.
माने जो सभ्यता बैटरी बनाना जानते हो वो विद्युत् के बारे मे भी जानते होंगे क्योंकि बैटरी ये ही करता है, कर्रेंट फ्लो के लिए ही हम उसका उपयोग करते है।
ये अलग बात है के वो डायरेक्ट करेंट है और आज की दुनिया मे हम जो उपयोग करते है वो अल्टरनेटिव करेंट है। लेकिन डायरेक्ट कर्रेट का सबसे पहले जानकारी दुनिया को हुई तो वो भारत मे महर्षि अगस्त को ही है।
अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैः
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥
अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें।
फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercuryamalgamated zinc sheet) रखे।
इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई।
स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।
अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।
फिर लिखा गया हैः
वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्‌।
अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की।
किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।

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