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गाजा के 45 km लंबे और 10 km चौड़े क्षेत्र में 22 लाख लोग रहते है।
दुनिया की सबसे असुरक्षित, खतरनाक जगह है। लेकिन यह सबसे घनी जनसंख्या वाली जगह है।
समस्त तर्को के साथ यह स्वीकार करिये। कि यह कितने जोखिम लेने वाले लोग है।
कश्मीर में आतंकवाद से कश्मीरी पंडित पलायित हो गये। कभी शामली में लोग पलायित होते है। तो कभी बंगाल से भागते है।
भारत को व्यापारियों का देश कहते हैं। सही शब्द बनिया प्रयोग किया जाता है। जंहा लोग थोड़ी असुविधा हुई । तो भाग खड़े होते है।
आज एक बड़े वकील साहब के यहां गये थे।
चाय नाश्ता हुआ।
पूछे आपका घर कहा है ?
बताये इस गांव में है।
कहने लगे वहीं के एक बाबू साहब थे। धोती कुर्ता पहनते थे। फेटा मारते थे।
बड़े दिव्य पुरुष थे।
कोर्ट कभी आते तो लगता किसी रजवाड़ो से हो , बात करो तो ऋषि लगते थे
फिर नाम बताये।
साथ में श्रीनरसिंह थे।
बोले उन्हीं के डॉक्टर साहब लड़के है।
वकील साहब पूछे बाबू साहब कैसे है ?
हम चुप रहे। भावुकता से आँखे भर आईं।
लेकिन उनके व्यक्तित्व कि प्रंशसा सुनकर अच्छा लग रहा था।
धन, पद सब चला जाता है। लोग भूल भी जाते है।
लेकिन उज्ज्वल, महान व्यक्तित्व सदैव जीवित रहता है।
यरुशलम के संघर्ष कि कहानी बहुत पुरानी है। उसमें लाखों नही करोड़ो लोग मारे जा चुके है।
उसमें एक महान शासक का भी काल था। जिसने इस्लामिक जगत से के सबसे साहसी, बहादुर आक्रमणकारी सलायुदिन अयूबी को दो बार पराजित किया था।
यह किसी के लिये भी प्रेणना स्रोत हो सकता है।
उनका नाम है।
Baldwin 4... एक बार पहले भी लिख चुके है।
कुष्टरोग से ग्रसित यह शासक जिसका 70% शरीर मृत हो चुका है। वह हाथ से नही, पैरों से घुड़सवारी करता था।
9 वर्ष कि आयु में ही कुष्टरोग पता चल गया था। 16 वर्ष कि आयु में ही, क्रुसेड में इसने सलायुदिन को हरा दिया था। यरूशलेम को बचाया था।
कुष्टरोग से चेहरा क्षतिग्रस्त हो गया था। लोहे का मुखौटा पहनते थे। 24 वर्ष कि आयु में मृत्यु हो गई।
यद्यपि यह संसार योद्धाओं की वीरता से भरा है। लेकिन baldwin4 जैसे महान योद्धा कम हुये है। जो अपंगता में भी युद्धभूमि पर गये। और दुश्मन को पराजित किया।
Kingdom of heaven फ़िल्म जिन्होंने देखी होगी। वहां कुछ अंश है।
एक मित्र विनोद विश्वकर्मा जी की असामयिक मृत्यु पर छलकी Dr. Ravishankar Singh की पीड़ा... कोई मदद न कर पाने का अफसोस....👇
पता नहीं किस अवसादग्रस्त व्यक्ति ने यह सिद्धांत बनाया था कि अपना दुख, पीड़ा, परिस्थिति किसी से नहीं कहनी है।
तब से हर व्यक्ति तीसमारखाँ बनने लगा।
जो किसी लायक नहीं है, वह भी दूसरे का परिहास करने लगा। यह दिखाने के लिये कि मैं तुमसे सुखी, बहादुर हूँ।
एक दिन मैंने अपने पिताजी का मड़हा शेयर किया था।
कुछ धनाढ्य लोग मुझसे पूछे... "इसी में आप रहते हैं ?"
हम कहे "जी, इसी में रहते हैं।"
यह सत्य भी है। रात्रि में थोड़ी देर के लिये आता हूँ। उसी में सोते हैं। यद्दपि अपना सुंदर सा घर है। जो समस्त भौतिक सुविधाओं से सम्पन्न है। फिर भी आत्मा का सम्बंध तो मड़हे से है।
हमारे जीवन जीने और आदर्श को दूसरा नहीं तय कर सकता है।
इसके लिये किसी के अप्रवुल की आवश्यकता नहीं है।
दरिद्रता हो या वैभव हो। ईश्वर का आशीर्वाद समझकर स्वीकार करना ही धार्मिक होना है।
अपनी पीड़ाओं को व्यक्त करिये। हजार परिहास करेंगे, तो एक अपना भी मिल सकता है, जिसकी सलाह, सहयोग जीवन बदल देगा।।
मेरा तो बस इतना कहना है कि....
जब भी किसी रिश्ते में से किसी एक को निकलना हो तो...
बिना किसी साज़िश के...
बिना उस रिश्ते को ख़राब किए हुए...
बिना किसी को नीचा दिखाए...
बिना सही ग़लत की लड़ाई किए...
बिना किसी पर झूठे आरोप लगाए हुए...
शांति से और आपसी सहमति से उस रिश्ते से निकल जाना चाहिए..!!
सामने वाले को एक बार ज़ोर से गले लगा कर, जो की उस रिश्ते का हक़ था
सिवाय तुम ग़लत मै सही, मैंने ये किया, तुमने वो किया..
जिसे जाना होता है, वो जाता है दोस्तों,
तुम लाख रो लो, गा लो या मर लो और सत्य तो ये भी है कि मरते तुम भी नहीं...
जो सोचते थे की उसके जाने के बाद मर जाओगे..
तो छोड़ो, बढ़ो आगे, क्यूँ कि उसको किसी और का हाथ थामना होगा तो वो थाम ही लेंगे...
बस तुम अपने मन से सच्चे रहना ताकि वो कभी किसी चौराहे पे तुम्हें कभी दिख जाए तो...
रिश्तों को ऐसी ख़राब करके मत जाओ की कभी किसी चौराहे पे मिलो तो आँखे भी ना मिला पाओ..!!