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एक बार मड़हे में बहुत लोग बैठे थे। श्रीधर पंडित जी हमारे पुरोहित है।
वही प्रश्न किये, जो लगभग सबकी जिज्ञासा थी।
पंडित जी ने पिताजी से पूछा हनुमानजी एक रहस्य से लगते हैं। वह कौन है। उनकी शक्तियां क्या है।
थोड़ी देर मौन रहकर पिताजी बोले, हनुमानजी कोई रहस्य नही है। वह अपना परिचय बार बार देते भी है। उनके अंदर वही शक्ति है। जो ईश्वर के पास है।
मेरे लिये हनुमानजी, राम से भिन्न नही है। हनुमानजी के लिये राम ही सब कुछ है।
एक सुंदर प्रसंग है पंडित जी। जिसे गोस्वामी जी दोहे में लिखते है। वह हनुमानजी कि सम्पूर्ण व्याख्या है।
लेकिन उससे पहले कुछ महत्वपूर्ण तथ्य समझने की आवश्यकता है।
मनुष्य से लेकर देव तक अपना परिचय दो तरह से देते है।
एक यह कि मैं प्रमुख रूप से क्या और कौन हूँ।
दूसरा जो मैं हूँ, उसका प्रमाण कैसे सत्यापित होगा।
सत्यापन सदैव उससे ऊँची शक्तियों द्वारा होता है।
ऐसे समझिये कि कोई प्रमाणपत्र आप किसी कार्यलय लेकर जाते है। यह देखिये मेरा प्रमाणपत्र है। जो जिलाधिकारी द्वारा या उच्चाधिकारी द्वारा सत्यापित है।
देवता भी कहते है। मैं विष्णु, रुद्र, ब्रह्मा द्वारा भेजा गया हूँ।
लेकिन हनुमानजी कि स्थिति इससे भिन्न है।
उनका एक ही परिचय है।
उनकी एक शक्ति है।
उनका रोम रोम एक ही है।
वह है "राम "।
इसको गोस्वामीजी एक सुंदर प्रसंग में प्रस्तुत करते है। जब माता सीता के समक्ष मुद्रिका गिराते है। वह विस्मय होकर देखती है।
हनुमानजी सामने आकर अपना परिचय देते है।
रामदूत मैं मातु जानकी
सत्य शपथ करुनानिधान कि।
इस चौपाई में परिचय और सत्यापन एक ही हनुमानजी दे रहे है।
वह कह रहे है !
हे माता! मैं राम का दूत हूँ,
यह सत्य है, मैं राम कि शपथ लेकर कहता हूँ।
अपने भावुक चेहरे पर अंगोछा रखते हुये पिता जी कहते है। उनके लिये तो राम ही सब कुछ है। वह राम ही है।।
युवा पीढ़ी नारों और उत्तेजना में अपने मूल विचार से अलग हो जाती है।
उदाहरण एक है। लेकिन लागू तो सभी पर होता है।
कुछ राजपूत यह शेयर करते रहते है कि धर्म के चक्कर मे क्षत्रियत्व न चला जाय।
उनसे भी बड़े महापुरुष है जो लिखते है। इतने मुस्लिम राजपूत है।
श्रीमान, आप क्षत्रिय कैसे हो। मनमोहन सिंह ने बनाया है या मोदी ने बनाया है।
आपका क्षत्रिय कर्त्तव्य धर्म ने ही निर्धारित किया है। जिन्होंने इस कर्त्तव्य को निभाया वह आदरणीय है। लेकिन धर्म नही तो आप क्षत्रिय कैसे हो सकते है ?
वेदों ने पुरोहितों को निर्देश दिया कि राष्ट्र कि रक्षा करने वाले क्षत्रियों का राज्याभिषेक करें।
यदि वेद न हो तो कैसे क्षत्रिय रह सकते है। गीता में क्षत्रिय के कर्तव्यों को रेखांकित किया गया है। उसके अनुपालन से ही कोई क्षत्रिय हो सकता है।
धर्म ने क्षत्रिय बनाया है।
मीर कासिम कितने बड़े लड़ाका हो लेकिन क्षत्रिय नही हो सकते है। क्योंकि धर्म ने क्षत्रियों के कुछ जीवन मूल्य निर्धारित किये है।
जो धर्म ही त्याग दिया, वह क्षत्रिय कैसे हो सकता है। न ही रह सकता है।
किसी ने कभी अपना धर्म छोड़कर दूसरा मजहब या रिलीजन स्वीकार किया। उसी समय उसके जीवन मूल्य समाप्त हो गये। तो मुस्लिम राजपूत जैसे मूर्खतापूर्ण शब्द कहा से आ गये। राजपूत बनना ही है तो पहले धर्म स्वीकार करे।
धर्म ही नियामक है।
यह प्रलाप अज्ञानता है। मैं इस वर्ण का हूँ तो सर्वप्रथम वही है।।
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥
पितरौ यस्य तृप्यन्ति सेवया च गुणेन च।
तस्य भागीरथीस्नानमहन्यहनि वर्तते॥🙏🏻✨
जन्मदिन की अनंत अनंत शुभकामनाएं आदरणीय पिताजी 🌍❤️ मां गायत्री का आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे हैं✨ ईश्वर आपको सदैव स्वस्थ प्रसन्न एवं दीर्घायु रखें।