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दुकानदार ने कटहल के पेड़ को बचाया और आज उसका फल पाया, इसे ही करमा कहते है, कर्म किये जा बंदे फल की चिंता मत कर..

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जब शेर आपस में लड़ते हैं तो उनकी खाल यूँ बाजार में बिकती हैं...

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17 साल की उम्र में उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया।

25 साल की उम्र में उनकी माँ की बीमारी से मृत्यु हो गई।

26 साल की उम्र में वह अंग्रेजी पढ़ाने के लिए पुर्तगाल चली गईं।

27 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई.

उसके पति ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया। इसके बावजूद उनकी बेटी का जन्म हुआ.

28 साल की उम्र में उनका तलाक हो गया और उन्हें गंभीर अवसाद का पता चला।

29 साल की उम्र में, वह कल्याण पर रहने वाली एक अकेली माँ थी।

30 साल की उम्र में वह इस धरती पर नहीं रहना चाहती थी।
लेकिन, उसने अपना सारा जुनून उस काम को करने में लगा दिया जिसे वह किसी और से बेहतर कर सकती थी।
और वह लिख रहा था.

31 साल की उम्र में आख़िरकार उन्होंने अपनी पहली किताब प्रकाशित की।

35 साल की उम्र में, उन्होंने 4 किताबें जारी कीं और उन्हें वर्ष की लेखिका नामित किया गया।

42 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी नई किताब की रिलीज़ के पहले दिन ही 11 मिलियन प्रतियां बेच दीं।

ये महिला हैं जे.के. राउलिंग. याद रखें कि 30 साल की उम्र में उसने आत्महत्या के बारे में कैसे सोचा था?

आज, हैरी पॉटर 15 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का एक वैश्विक ब्रांड है।

कभी हार न मानना। अपने आप पर यकीन रखो। जोश में रहो। कड़ी मेहनत। अभी इतनी देर नहीं हुई है।

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मणिपुर में अफीम की खेती भी मुख्य कारण।
मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति कुकी है, जो मात्र डेढ़ सौ वर्ष पहले पहाड़ों में आ कर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नश्ल के लोग हैं। जब अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को वर्मा के पहाड़ी इलाके से ला कर मणिपुर में अफीम की खेती में लगाया। आपको आश्चर्य होगा कि तमाम कानूनों को धत्ता बता कर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है, और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का भाव है। मतलब नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे।
अधिकांश कुकी यहाँ अंग्रेजों द्वारा बसाए गए हैं, पर कुछ उसके पहले ही रहते थे। उन्हें वर्मा से बुला कर मैतेई राजाओं ने बसाया था। क्यों? क्योंकि तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे। सस्ते मजदूर के चक्कर में अपना नाश कर लेना कोई नई बीमारी नहीं है। आप भी ढूंढते हैं न सस्ते मजदूर? खैर...
आप मणिपुर के लोकल न्यूज को पढ़ने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि कुकी अब भी अवैध तरीके से वर्मा से आ कर मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में बस रहे हैं। सरकार इस घुसपैठ को रोकने का प्रयास कर रही है, पर पूर्णतः सफल नहीं है।
आजादी के बाद जब उत्तर पूर्व में मिशनरियों को खुली छूट मिली तो उन्होंने इनका धर्म परिवर्तन कराया और अब लगभग सारे कुकी ईसाई हैं। और यही कारण है कि इनके मुद्दे पर एशिया-यूरोप सब एक सुर में बोलने लगते हैं।
इन लोगों का एक विशेष गुण है। नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। क्या सरकार, क्या सुप्रीम कोर्ट? अपुनिच सरकार है! "पुष्पा राज, झुकेगा नहीं साला"
सरकार कहती है, अफीम की खेती अवैध है। ये कहते हैं, "तो क्या हुआ? हम करेंगे।" कोर्ट ने कहा, "मैतेई भी अनुसूचित जाति के लोग हैं।" ये कहते हैं, "कोर्ट कौन? हम कहते हैं कि वे अनुसूचित नहीं हैं, मतलब नहीं हैं। हमीं कोर्ट हैं।
मैती, मैतेई या मैतई... ये मणिपुर के मूल निवासी हैं। सदैव वनवासियों की तरह प्राकृतिक वैष्णव जीवन जीने वाले लोग। पुराने दिनों में सत्ता इनकी थी, इन्हीं में से राजा हुआ करते थे। अब राज्य नहीं है, जमीन भी नहीं है। मणिपुर की जनसंख्या में ये आधे से अधिक हैं, पर भूमि इनके पास दस प्रतिशत के आसपास है। उधर कुकीयों की जनसंख्या 30% है, पर जमीन 90% है।
90% जमीन पर कब्जा रखने वाले कुकीयों की मांग है कि 10% जमीन वाले मैतेई लोगों को जनजाति का दर्जा न दिया जाय। वे लोग विकसित हैं, सम्पन्न हैं। यदि उनको यदि अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया तो हमारा विकास नहीं होगा। हमलोग शोषित हैं, कुपोषित हैं... कितनी अच्छी बात है न?
अब मैतेई भाई बहनों की दशा देखिये। जनसंख्या इनकी अधिक है, विधायक इनके अधिक हैं, सरकार इनके समर्थन की है। पर कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी ये अपना हक नहीं ले पा रहे हैं। क्यों? इसका उत्तर समझना बहुत कठिन नहीं है।😊
यह सारी बातें फैक्ट हैं। अब आपको किसका समर्थन करना है और किसका विरोध, यह आपका चयन है। मुझे फैक्ट्स बताने थे, वह मैंने कर दिए 🙏

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रेवड़ी कल्चर का परिणाम, कर्नाटक विकास पर लगा विराम

“हमें इस साल (पांच रेवड़ी गारंटियों के लिए) 40,000 करोड़ रुपये अलग रखने पड़े हैं। इसलिए इस साल हम कर्नाटक में विकास नहीं कर सकते''

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