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मॉस्को में आयोजित अंतरराष्ट्रीय वुशु प्रतियोगिता में राजस्थान के नागौर जिले की बेटी मंजू चौधरी ने स्वर्ण पदक जीतकर समाज और देश का नाम रोशन किया है।
#istandwithmychampions
यूनिपोलर वर्ल्ड के लिये चालीस वर्ष तक शीतयुद्ध लड़ने वाले अमेरिका को भारत समझा रहा है कि यह दुनिया मल्टीपोलर है। कोई एक महाशक्ति रूल नहीं कर सकती है। हम अपने नेशनल इंट्रेस्ट में निर्णय लेंगें।
अमेरिका कि विवशता चीन है। वैसे तो चीन अमेरिका कि ही पैदावार है। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन 1993 में गोबलाइज़ दुनिया की अवधारणा दिया। जिसका सबसे अधिक लाभ चीन ने लिया। 30 वर्षों में ही महाशक्ति बन गया। यह काम अमेरिकी कम्पनियों ने किया।
आज चीन अपनी विस्तारवादी नीति से अमेरिका के गले फ़ांस बन गया है।
उसकी नजर में भारत है जो इसका काउंटर कर सकता है। भारत इस अवसर का लाभ तो चाहता है। लेकिन अपनी स्वंत्रत विदेशनीति को नहीं त्यागना चाहता।
इसका लिटमस टेस्ट हुआ यूक्रेन वार में, जंहा भारत पश्चिमी शक्तियों के साथ खड़ा नहीं हुआ।
यद्यपि भारत कोई महाशक्ति नहीं है। लेकिन वह एक प्राचीन सभ्यता है। जिसका तीसरी दुनिया के देशों में बहुत सम्मान है। यदि भारत यूक्रेन युद्ध में अमेरिका का साथ देता तो रूस कि अनैतिकता सिद्ध होती।
भारत ने ऐसा नहीं किया। उसने अप्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी देशों कि कठोर आलोचना ही किया। चीन के भय से अमेरिका सहित पश्चिम ने यह सब बर्दाश्त कर लिया।
रेसिसज्म और ईगो से लवरेज पश्चिमी दुनिया इसे भूल जायेगी, यह संभव नहीं है।
एक अस्थिर भारत ही उनके लिये मुफ़ीद है। उनके पास भारत के डाटा है। वह जानते है भारत कि फाल्ट लाइन क्या है।
मजहब, जाति, भाषा यह तीन ऐसे बिंदु है। जिन पर काम पश्चिमी एजेंसियों ने किया।
शाहीनबाग, दिल्ली दंगा यह प्रयोग हो चुके थे।
नूपुर शर्मा के केस को अंतराष्ट्रीय करने श्रेय मुस्लिम बदर्स हुड को है। जबकि सभी को पता था नूपुर शर्मा ने जो कुछ भी कहा। वह रहमानी की प्रतिक्रिया में कहा था।
मिस्र का मुस्लिम बदर्स हुड अमेरिका की उपज है। जिसे राष्ट्रपति ओबामा ने बनाया था। यदि आप कभी तारिक फतेह को सुने हो तो वह ओबामा के आलोचक इसलिये थे। भारत सरकार ने इसे जैसे तैसे नूपुर शर्मा की बलि देकर संभाल लिया।
BBC की डॉक्युमेंट्री का कोई औचित्य नहीं था। 25 वर्ष पूर्व हो चुकी एक घटना को अतिरंजित किया गया। लेकिन इसका उद्देश्य प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के लिये था।
केन्द्रीय सरकार पर पिछले 9 वर्षों में कोई भ्र्ष्टाचार का आरोप नहीं है। न ही उसका कोई ऐसा निर्णय है जो समाज विरुद्ध हो। यह एक सोसलिस्ट सरकार है। जिसने समाज के गरीब तबके को केंद्रित करके अपनी आर्थिक नीति बना रही है।
फिर भी इस सरकार के विरुद्ध भारत जोड़ो यात्रा का अर्थ क्या था। ' जोड़ो ' में पोलेटिकल करेक्टनेस कि थीम है। जिसे अमेरिका में बैठे लोगों ने बनाई थी। इस यात्रा में चलने वाले लोग राजनीति से कम NGO, मिशनरियों के अधिक थे। जार्ज सोरेस फण्डित ओपन सोसायटी NGO ने प्रमुख भूमिका निभाई।
आपने अभी देखा कैसे एक ट्रक ड्राइवर को दुबई से भारत लाकर पंजाब को जलाने कि कोशिश हुई थी। कनाडा, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड में हिंदू मंदिरों पर हमले किये गये।
अब अगला चरण जातीय जनगणना है। कोई भी गम्भीर एनालिस्ट इसे निर्थक कवायद कह सकता है।
इस दुनिया का कोई देश जनसंख्या अनुपात से सरकारी क्षेत्र भागीदारी तय नहीं कर सकता। कंपीटेंस का अपना महत्व है।
यदि ऐसा होता तो आज मार्क्सवाद सफल हो जाता। धनिकों के पैसे मजदूरों में बांटने वाले देश आज नष्ट हो गये। यह जरूर है यह कहने में अच्छा लगता है।
अब होना तो यह चाहिये था कि मंडल आयोग के प्रभावों पर रिसर्च होती। कैसे इस इल्यूजन ने एक बहुत बड़ी आबादी को मालिक से मजदूर बना दिया।
कैसे नाईयो के परम्परागत कार्य जिसके वह अधिकारसंपन्न थे। हबीब के सैलून में मजदूर बन गये।
कैसे फर्नीचर उद्दोग जिस पर लोहारों का कब्जा था। वह बड़ी बड़ी कम्पनियों ने हड़प लिया। फुटकर विक्रेता मुस्लिम बन गये और लोहार मजदूर बन गये।
कुछ चंद हजार सरकारी नौकरियों के लिये जातीय जनगणना से समाज को बिखण्डित कर उस फॉल्टलाइन को मजबूत किया जा रहा है। जिससे समाज और भी बिखण्डित हो जाय। हम एक दूसरे से लड़े, घृणा करें।
कर्नाटक चुनाव की विजय को कांग्रेस नेताओं ने भाजपा को दक्षिण से मुक्ति का नारा दिया है। यह संकेत है यह किसी राज्य कि विजय नहीं है। आने वाले समय मे बड़ी योजना का सूत्रपात हो रहा है। जँहा भाषा के आधार पर दक्षिण उत्तर को बांटा जायेगा। इसकी पूरी संभावना है कि दक्षिण में हिंदी भाषियों के विरुद्ध अभियान चले।
इस सारे घटनाक्रम में यहां के स्वार्थी नेताओं और विदेशी शक्तियों का हाथ है। जो सत्ता के लिये समाज, राष्ट्र को दांव पर लगा देते हैं।
उन लोगों के लिये लिख रहा हूँ। जो सम्बन्धों को लेकर मैसेज करते है। विचार तो सभी व्यक्त कर सकते हैं।
वैसे तो व्यक्ति व्यक्ति कि समस्या अलग अलग होती है। उसमें उनके स्वभाव, परिस्थितियों का दोष होता है। सुकरात, नीत्से, कबीर जैसे दार्शनिक जब रिश्तों से प्रताड़ित है तो हम सामान्य लोग है।
जानते है ! जिस समय अर्जुन ने परमेश्वर से कहा कि मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में लेकर चलिये।
वह पूरी तरह से समझ गये कि अर्जुन के मन में संशय क्या है।
अभी भगवान के पास फिर आते है , पहले कुछ मूल्यवान बात समझनी चाहिये।
चेतना तीन स्तरों में बंटी होती है।
1- सांसारिक
2- धार्मिक
3- आध्यात्मिक।
संसार, यही जो है। जिसे बुद्ध इच्छा कहते है। आदि शंकराचार्य माया कहते है। कपिल प्रकृति कहते है।
धार्मिकता का अर्थ है यह संसार ईश्वर द्वारा निर्मित है।
आध्यात्मिक का अर्थ यह संसार उस ईश्वर का विस्तार है।ईश्वर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
रिश्ते, नाते, पत्नी, पुत्र आदि सभी संसार है। यह हमारी इच्छा से बने है, या यह माया है।
चलिये कुरुक्षेत्र में चलते है।
अर्जुन का विषाद इस संसार का विषाद है। गुरु, भाई, पितामाह, मित्र से युद्ध करना है।
भगवान बात संसार से ही प्रारंभ करते है।
वह कर्त्तव्य, निष्काम कर्म योग बताते है।
फिर ज्ञान, विवेक से धर्म पर आते है।
अंत में आध्यत्म पर अपनी बात पूरी करते है।
हम सभी न तत्व ज्ञानी है न ही तपस्वी है।
बात हम भी संसार की करेंगें।
क्यों घुसे पड़े हो रिश्तों में,
कोई भी रिश्ता बस इतना ही है कि कर्त्तव्य पूरा करना है ! यह बाध्यता भी नहीं है।
हमसे महत्वपूर्ण यहां कुछ भी नहीं है।
जो स्वयं को महत्वपूर्ण नहीं समझते वह वैसे है जैसे तिनका होता है।
वह तिनका भंवर के साथ बहते हुये आनंदित होता है। वही भंवर एक दिन उसे डूबा देती है।
हमारी चिंतन प्रणाली ही गलत है। हमसे भी महत्वपूर्ण कोई है।
ऐसे ही लोगों को ही भगवान मूर्ख कि श्रेणी में रखते है।
Law of attraction कहता है। यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारा सम्मान , आदर करें तो स्वयं को महत्वपूर्ण बनाइये।
जिनके रिश्ते अच्छे दिखते हैं। वास्तव में वहां भी भय, लोकलाज, विवशता से सब चल रहा है।
इस संसार को यह संदेश दीजिये कि आप अकेले ही सब कुछ करने में सक्षम है।
यदि परिस्थिति ऐसी भी आये कि अपने ही लोगों के विरुद्ध धनुष उठाना हो तो संशय न हो ! जब यह सुनिश्चित हो कि आप सत्य पर है।
यह सारा संसार ट्रैफिक रूल कि तरह चल रहा है। यहां जो कल नैतिकता थी, वह आज अनैतिकता होगी। जो कल अनैतिक था, आज नैतिक हो सकता है।
समाज के बनाये नियम, कानून हमारे जीवन से महत्वपूर्ण नहीं है। हम है तो सब कुछ है।
भगवान तो थोड़ा और आगे चले गये थे।
जीते तो पृथ्वी पर राज्य करोगे, वीरगति मिलती तो स्वर्ग।
इसके बाद क्या संशय बच रहा है।
इसका कारण 'भय 'है।
सारे भय हमारे मन कि उपज है।
अभी तो मैं धर्म, आध्यत्म कि बात नहीं कर रहा हूँ।
इस संसार में एक ही बात महत्वपूर्ण है ! वह है आप।
यह न अहंकार है न ही स्वार्थ है।
यह ऐसे है जैसे शुगर कि बीमारी है। दवा स्वयं लेने कि आदत डालनी होती है। सुबह टहलने जाना होता है।
छोड़ो इन बातों को कौन सही है, कौन गलत है। कौन नाराज है कौन खुश है।
आज से, अभी से अब हम है। जो अपना ध्यान रख सकता है।।
अपने को ( हिन्दू ) और उनको ( मुसलमानों ) समझने के लिए इससे सरल शब्दों में नहीं समझा जा सकता.
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आज मैंने the karela story देखी।
इस विषय पर परिचर्चा कि बाढ़ सी आ गई है। होनी भी चाहिये।
यूटयूब पर व्याख्या दी जा रही है।
जो कि स्वस्थ है।
लेकिन मेरा मानना है कि सेमेटिक रीलजन इस्लाम, ईसाइयत और हिंदू धर्म मे मतभेद धर्म से अधिक मौलिक सिद्धांत का है।
हिंदू धर्म व्यक्ति को एक individual unit के रूप में देखता है। सेमेटिक मजहब व्यक्ति के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता, उसे community यानी कौम के रूप में देखता है।
Community कभी भी जीवन मूल्यों की बात नहीं करती है। वह किसी व्यक्ति के गुण दोष को नहीं देखती है।
कोई उस समुदाय में है तो सभी दोषों के बाद भी श्रेष्ठ है। क्योंकि यह आदेश खुदा का है।
जो उस समुदाय से बाहर है। उसके पास कितने भी महान गुण क्यों न हो लेकिन वह निम्नतर है। उसे काफ़िर करार दे दिया जाता है।
हिंदू धर्म इसके विरुद्घ बात करता है। वह व्यक्ति पर जोर दे रहा है।
यदि कोई व्यक्ति हिंदू है। लेकिन उसके आचरण बुरे है तो उसे श्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति हिंदू नहीं भी है। तो भी उसके आचरण अच्छे है तो श्रेष्ठ है।
हिंदू धर्म इससे भी सूक्ष्म धरातल पर जाता है। वह व्यक्ति को भी खंडित करता है।
यदि किसी व्यक्ति के पाँच गुण अच्छे है और तीन गुण बुरे है। तो आप उन पाँच गुणों का
नागा चैतन्य (Naga Chaitanya) की फिल्म 'कस्टडी' (Custody) इस शुक्रवार रिलीज हुई. ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है. फिल्म ने ओपनिंग डे पर अच्छा कलेक्शन किया, वहीं उम्मीद है कि इसका वीकेंड कलेक्शन भी उम्मीद के मुताबिक ही होगा. फिल्म का निर्देशन वेंकट प्रभु ने किया है. तमिल फिल्म को क्रिटिक्स की तरफ से मिली जुली प्रतिक्रिया मिली थी. नागा चैतन्य की इस फिल्म ने सामंथा रुथ प्रभु की 'यशोदा' और 'शाकुंतलम' के पहले दिन की कमाई को पीछे छोड़ बाजी मार ली है.