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दुर्गावती चंदेल जून 1564 के दिन जबलपुर के नरई नाले के पास वीरगति को प्राप्त हो गईं थीं। अबुल फज़ल' महारानी दुर्गावती के बारे में लिखता है - रानी अचूक निशानेबाज और कुशल शिकारी हैं, अगर वह किसी बाघ इत्यादि जंगली जानवरों के बारे में जान लेती हैं तो तब तक पानी नहीं पीती हैं, जब तक शिकार नहीं कर लेतीं।
रानी दुर्गावती चंदेल का शासनकाल गोंडवाना का स्वर्णयुग माना जाता है, रानी ने प्रजा के हितार्थ कई तालाब, कुएँ, धर्मशाला, बावड़ी इत्यादि का भी निर्माण करवाया। जिनमें उनके नाम से रानीताल, उनके दीवान आधार सिंह के नाम से आधारताल और और उनकी प्रिय दासी के नामपर चेरीताल अभी भी जबलपुर में हैं। गोंडवाना की लूट से अबुल फज़ल को इतना धन और हाथी प्राप्त हुए थे कि उसके मन में बेईमानी भर गई थी, और उसने विद्रोह कर दिया था।
कर्नल विलियम हेनरी स्लीमन लिखता है लोगों की मान्यता है अभी भी रात को पहाड़ियों से रानी की आवाज सुनाई देती है, ऐसे लगता है जैसे वह अपने सैनिकों को बुला रहीं हैं।
महारानी दुर्गावती के बारे प्रायः यह बात प्रचलित है कि वह कालिंजर के चंदेल राजा कीरत राय की कन्या थीं, उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को दुर्गाष्टमी के दिन हुआ था। उनका विवाह गढ़ा के राजा संग्रामशाह के पुत्र दलपत शाह के साथ हुआ था। विवाह कैसे हुआ था और किन परिस्थितियों में हुआ यह बात अस्पष्ट है।
अबुल-फज़ल के अकबरनामा के अनुसार रानी दुर्गावती महोबा के चंदेल राजा शालीवाहन की कन्या थीं, उनका विवाह गढ़ा के दलपत शाह के साथ हुआ था।
अबुलफज़ल एक बात का जिक्र करता है, वह लिखता है वहाँ (गोंडवाना) यह बात प्रचलित है कि दलपत शाह राजा संग्रामशाह का औरस पुत्र नहीं है, बल्कि एक राजपूत सरदार का पुत्र है, संग्राम शाह ने उसे जन्म के साथ ही गोद ले लिया और अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।

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